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________________ पुत्र और अजितसेन मुनि के शिष्य जिनदेवण ने बेल्गोल नगर में जिन मन्दिर का निर्माण करवाया। दण्डनायक एच ने भी कोपड़, बेलगोल आदि स्थानों पर अनेक जिन मन्दिरों का निर्माण करवाया ।' आचलदेवी ने पार्श्वनाथ मन्दिर का निर्माण भी बेल्गोल तीर्थ पर ही करवाया । मन्दिर निर्माण में जन साधारण के अतिरिक्त राजा भी अपना पूर्ण सहयोग देते थे । गङ्ग नरेशों ने वल्लङ्गरे में एक विशाल जिन मन्दिर व अन्य पाँच जिन मन्दिरों का निर्माण करवाया तथा बेल्गोल नगर में परकोटा, रङ्गशाला व दो आश्रमों सहित चतुर्विंशति तीर्थंकर मन्दिर का निर्माण करवाया । राजाओं के अतिरिक्त उनकी पत्नियों द्वारा करवाये गए मन्दिर निर्माण के उल्लेख भी मिलते हैं।' मललकेरे (मनकेरे ग्राम में ईश्वर मन्दिर के सम्मुख एक पत्थर पर लिखित एक लेख में वर्णन मिलता है कि सातण्ण ने मनलकेरे में शान्तिनाथ मन्दिर का पुनर्निमाण तथा उस पर सुवर्ण कलश की स्थापना कराई । (vi) मूर्ति निर्माण - आलोच्य अभिलेखों के अध्ययन से तत्कालीन मूर्ति निर्माण की परम्परा का भी हमें ज्ञान होता है । भारतवर्ष में अवगवेगोलस्य बाहुबलि की प्रतिमा सुप्रसिद्ध है। एक अभिलेख के अनुसार इस मूर्ति की प्रतिष्ठापना चामुण्डराज करवाई थी । अखण्डबागिलु की शिला पर उत्कीर्ण एक लेख में वर्णन आता है कि भरतमध्य ने बाहुबलि की मूर्ति का निर्माण कराया की मूर्तियों के अतिरिक्त अन्य तीर्थकरों आदि की मूर्तियों के निर्माण के उल्लेख भी अभिलेखों में उपलब्ध होते हैं । तञ्जनगर के शत्तिरम् अप्पाउ श्रावक ने प्रथम चतुर्दश तीर्थकरों की मूर्तियाँ निर्माण कराकर अर्पित की। ' एक अन्य अभिलेख' में भी श्रावक द्वारा पञ्चपरमेष्ठी की मूर्ति निर्मित कराकर अर्पण करने का उल्लेख मिलता है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि उस समय मूर्तियों का निर्माण दानार्थ भेंट करने के लिए भी करवाया जाता था। (vii) जीर्णोद्वार - पुराने मन्दिरों व बस्तियों आदि का जीर्णोद्धार करवाना भी उतना ही पुण्य का काम समझा जाता था, जितना कि नए मन्दिरों को बनवाना | श्रवणबेलगोला के अभिलेखों में भी जीर्णोद्धार सम्बन्धी उद्धरण पर्याप्त मात्रा में देखे जा सकते हैं। शासन बस्ति के एक लेख के अनुसार गङ्गराज ने गङ्गादि परगने के समस्त जिन मन्दिरों का जीर्णोद्वार कराया। महामण्डलाचार्य देवकीर्ति पण्डितदेव ने प्रतापपुर की रूपनारायण बस्ति का जीर्णोद्धार व जिननाथपुर में एक दानशाला का निर्माण करवाया ।" इसके अतिरिक्त पालेद पदुमयण्ण ने एक बस्ति का" तथा मन्त्री हुल्लराज ने बंकापुर के दो भारी और प्राचीन मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाया ।" इसके अतिरिक्त अन्य अभिलेखों" में भी बस्तियों और मन्दिरों का जीर्णोद्धार करवाने के उल्लेख मिलते हैं। (viii) निषद्या निर्माण - अर्हदादिकों व मुनियों के समाधिस्थान को निषद्या कहते हैं । श्रवणबेलगोला के अभिलेखों में निषद्या निर्माण से सम्बन्धित अनेक उल्लेख प्राप्त होते हैं। इसका निर्माण प्रकाशयुक्त व एकान्त स्थान पर किया जाता था। यह बस्ति से न तो अधिक दूर तथा न ही अधिक समीप होता था। इसका निमाण समतल भूमि तथा क्षपक बस्ति की दक्षिण अथवा पश्चिम दिशा में होता था । अभिलेखों के अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि निषद्या गुरु, पति, भ्राता माता आदि की स्मृति में बनवाई जाती १. २. ३. ४. ५. ६. श्री चामुण्डे राजे करवियले (जं० शि० सं० भाग एक से० सं० ७५). -वही - ले० सं० ११५. -वही - ले० सं० ४४१. ८. ६. १०. ११. १२. जै० शि० सं० भाग एक ले० सं० १४४ -- वही- ल े मं० ४९४. - वही - ल स ० १३६ -वही से सं० ४४-५३ ૨૪ - - वही— ल सं० ४६६. - -वही - ल े० सं० ४३७. - वही= ल े० सं० ५६. -वही - ल े० सं० ४०. वहीं ल े० सं० ४७०. १३. -वही - ल े० सं० १३७. १४. वही ले० सं० १३४. १०३ तथा ४६६. - Jain Education International आचार्य रत्न भी देशभूषणजी महाराज अभिनन्दनाथ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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