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________________ जैन सांस्कृतिक गरिमा का प्रतीक बन्देलखण्ड श्री विमलकुमार जैन सोरया बुन्देलखण्ड भारत का एक ऐसा भू-भाग है जो मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के लगभग 22 जिलों की सीमा में आता है। भारतीय साहित्य, कला, संगीत, वास्तुकला आदि विविध क्षेत्रों में धर्म एवं संस्कृति की व्यापकता बुन्देलखण्ड में बहुत फलवती हुई है। सामान्य रूप से इस क्षेत्र ने साहित्य-सेवियों में वाल्मीकि, वेदव्यास, गुणभद्र, भवभूति, मित्रमिश्र, जगनिक, तुलसी, केशव, भूषण, पद्माकर, बिहारी, चन्द्रसखी, ईसुरी, रायप्रवीण, सुभद्राकुमारी, सेठ गोविन्ददास, मैथिलीशरण गुप्त, वृन्दावनलाल वर्मा जैसे शतशः साहित्य-देवताओं को जन्म देने का गौरव प्राप्त किया है-तो शौर्य नक्षत्रों में रणबांकुरे आल्हा-ऊदल, विराटा की पद्मिनी, छत्रसाल, हरदौल, अकलंक, निकलंक, दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई, चन्द्रशेखर आजाद जैसे सहस्रों वीरों को उत्पन्न करने का गौरव लिए है। सोनागिर, खजुराहो, देवगढ़, चन्देरी, थूबौन, अजयगढ़, ग्वालियर, पपौरा, नैनागिरि, कुण्डलपुर, पावागिर, मदनपुर, द्रोणगिर, चित्रकूट, ओरछा, कालिंजर, अमरकंटक, सूर्यमंदिर सीरोन आदि स्थापत्य-कला के अद्वितीय कलागढ़ और तीर्थों को अपने अंचल में संजोए बुन्देलखण्ड के शताधिक क्षेत्र आज भी इस भू-भाग की गरिमा को युगों-युगों के थपेड़े खाकर जीवित रखे हैं। संगोत-सम्राट तानसेन, मृदङ्गाचार्य कुदऊ, विश्वजयी गामा, चित्रकार कालीचरण जैसे अगणित रससिद्ध कलावंत उपजाकर तथा पन्ना की हीरा खदान, भेडाघाट का संगमरमर तथा विन्ध्य शृखलाओं में सुरक्षित सोना, चांदी, मैगनीज, तांबा, लोहा, अभ्रक आदि खनिज सम्पत्ति के भण्डारों से युक्त आज भी बुन्देलखण्ड भारत को प्रतिष्ठा में अपना स्थान रखे है । ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी से आज तक की सामाजिक, धार्मिक, नैतिक, आचरणिक, व्यावहारिक आदि विविध आयामों की प्रामाणिक जानकारी के लिए बुन्देलखण्ड भारत में गौरव का स्थान प्राप्त किए है। यहां शिल्प कला, संस्कृति, शिक्षा, साहस, शौर्य अध्यात्म का धनी, प्रकृति और खनिज पदार्थों का जीता-जागता गढ़ रहा है। यहां के जनमानस में सदैव आचरण की गंगा प्रवाहित होती रही है। कला और संस्कृति के अद्वितीय गढ़ यहां की गरिमा के प्रतीक बने हैं। यहां का कंकर-कंकर शंकर की पावन भावना से धन्य है। विश्व में भारत जहां अपनी आध्यात्मिक गरिमा और संस्कृति-सभ्यता में सदैव अग्रणी रहा है। वहां बुन्देलखण्ड भारत के लिए अपनी आध्यात्मिक परम्परा और संस्कृति में इतिहास की महत्त्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करने में अग्रसर रहा है। अध्यात्म की प्रधानता हमारे देश की परम्परागत निधि रही है तथा भारतीय संस्कृति में अध्यात्म की मंगल ज्योति सदैव प्रकाशवान रही है। भारत का दर्शन-साहित्य-मूर्तियाँ-भाषाएं-वास्तुकलाएं-शासन व्यवस्थाएं सभी में अध्यात्म की आत्मा प्रवाहित है। धार्मिक भावनाओं को शाश्वत बनाए रखने के लिए ही विपुल परिमाण में मंदिरों और मूर्तियों का निर्माण किया गया है। मंदिरों की रचना और उनमें चित्रित कलाएँ उस युग की सामाजिक और धार्मिक परम्पराओं की ऐतिहासिक थाती हैं। हमें प्रामाणिक इतिहास की पुष्टि और संस्कृति का स्वरूप इन्हीं प्रतिमानों से उपलब्ध हुआ है। बुन्देलखण्ड में स्थपतियों, शिल्पियों, कलाकारों एवं कला-प्रेरकों ने अध्यात्म-प्रधान कृतियां निर्मित की। उनका झुकाव प्रायः कला की अपेक्षा परिणामों की ओर विशेष रहा है। अतः कलागत विलक्षणता इने-गिने स्थानों में ही देखने को मिलती है। आदिमयुगीन एवं प्रागैतिहासिक काल की संस्कृति का जीता-जागता चित्रण यदि भारत में आज भी जीवन्त है तो उसका केन्द्र बुन्देलखण्ड ही है। उस युग के चित्र व कलाएं आज भी मंदिरों एवं गुफाओं में विद्यमान हैं। यहां के प्रायः जैन मंदिर और मूर्तियां, गढ़, गुफाएं, बीजक पट, शिलालेख आदि इस बात के साक्षी हैं, कि भारतीय परम्पराओं में जन-जीवन, सामाजिक व्यवस्था और धार्मिक परम्परा कहां कब और कितनी फलीभूत एवं पल्लवित हुई है। __ ऐतिहासिक दृष्टि से हम आदिम युग से लेकर वर्तमान काल तक भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत श्रमण संस्कृति का पर्यावेक्षण इतिहास-क्रम के आधार पर ६ भागों में विभक्त कर सकते हैं : (१) प्रागैतिहासिक काल-जो ईस्वी पूर्व ६०० से भी पहले माना गया है--में मंदिरों के निर्माण होने के प्रमाण साहित्य में उल्लिखित हैं : (२) मौर्य और शुंगकाल-ईस्वी पूर्व ५००-मंदिरों का प्रचुर मात्रा में निर्माण कार्य हुआ। इस युग की मुद्राओं पर अंकित मंदिरों के चिह्न इस सत्य के साक्षी हैं। विदिशा, बूढ़ी चन्देरी (बुन्देलखण्ड के ऐतिहासिक स्थल हैं) की खुदाई के समय प्राप्त विष्णु मंदिर, पार्श्वनाथ मंदिर, शान्तिनाथ मंदिर के अवशेष ई० पूर्व २०० जैन इतिहास, कला और संस्कृति १४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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