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________________ जैन मुनियों हेतु निवास की उचित व्यवस्था न होने पर उन्होंने किसी अन्य स्थान पर जाकर चतुर्मास करने का निश्चय किया। भगवती चामुण्डा माता की प्रेरणा से कुछ साधुओं ने आचार्य रत्नप्रभ सूरी से ओसिया में ही चातुर्मास करने की प्रार्थना की जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। एक दिन ओसिया के राज-परिवार के किसी बालक को काले नाग ने डस लिया । परिणामस्वरूप उस बालक की अकाल मृत्यु हो गई । लेकिन आचार्य रत्नप्रभ सूरी ने अपने आध्यात्मिक प्रभाव से उस बालक को पुनः जीवित कर दिया। इस चमत्कार से प्रभावित होकर राजा और उसकी प्रजा भेंट सहित आचार्य के पास पहुंचे। लेकिन आचार्य महोदय ने भौतिक भेंट लेने से मना कर दिया । अतः राजा ने आचार्य रत्नप्रभ सूरी से प्रार्थना की कि वे यह बतलायें कि उनकी क्या इच्छा है ताकि वह उसे पूरा कर आचार्य की सेवा का लाभ उठायें। तब आचार्य रत्नप्रभ सूरी ने कहा कि उनकी तो एक मात्र इच्छा यही है कि ओसिया के सभी लोग जैन धर्म स्वीकार कर लें। इस प्रकार जो लोग आचार्य रत्नप्रभ सूरी से दीक्षित हुए, वे और उनके वंशज ओसवाल कहलाये। आचार्य रत्नप्रभ सूरी का ओसियां की जनता पर इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि वहां के राजा ने स्वयं भी जैन धर्म अंगीकार कर लिया और वहां की चामुण्डा माता की पशुबलि को बन्द करवा दिया। इस घटना के बाद वहां की अधिष्ठात्री देवी को सच्चियाय माता कहकर उनकी पूजा की जाती है । - अब प्रश्न उठता है कि ओसवाल जाति की उत्पत्ति कब हुई ? जैन मुनियों ने ओसवाल जाति की उत्पत्ति का समय वीर निर्वाण सम्वत् ७० (४५७ ई० पू०) माना है।' महामहोपाध्याय पण्डित गौरीशंकर हीराचन्द आझा ने इस तिथि को कल्पना पर आधारित माना है, क्योंकि ४५७ ई० पू० तक तो ओसिया नगर की स्थापना भी नहीं हुई थी। उन्होंने ओसवाल जाति की उत्पत्ति ११वीं शताब्दी ईसवी के आसपास स्वीकार की है। श्री के सी जैन ने भी अपने ग्रन्थ में यह स्वीकार किया है कि हमें नवीं शताब्दी से पूर्व ओसवाल जाति का उल्लेख नहीं मिलता है। हमारी मान्यता है कि ओसवाल जाति की उत्पत्ति हवीं शताब्दी के प्रारम्भ में कभी हुई थी। "नाभिनन्दन-जिनोद्धार प्रबन्ध" नामक ग्रन्थ (जिसकी रचना कक्क सूरी ने(१३३८ ई०) की थी), सूचित करता है कि ओसिया में ओसवालों के १८ गोत्र निवास करते थे। उनमें से एक “वैसाथ" गोत्र के लोग भी थे लेकिन गोष्ठिकों से सैद्धान्तिक मतभेद होने के कारण वे किराडू में जाकर बस गये थे । -ओसिया के महावीर मन्दिर की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि जैन साहित्य में ओसिया का उल्लेख एक जैन तीर्थ स्थान के रूप में हुआ है। यहां पर कई वैष्णव तथा जैन मन्दिर बने हुए हैं जिन पर परवर्ती गुप्त स्थापत्य का प्रभाव है। यहां का महावीर मन्दिर तो जैन-स्थापत्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह मन्दिर अपनी उचित व्यवस्था के कारण आज भी पूर्णतया सुरक्षित है । दूर से देखने पर तो यह मन्दिर एक देव विमान समान दिखलाई देता है। एक किवदन्तो के अनुसार, भगवान् महावीर के निर्वाण के ७० वर्ष पश्चात् आचार्य रत्नप्रभ सूरी ने इस मन्दिर में प्रतिमा की स्थापना की थी। ऐसा प्रतीत होता है कि आचार्य रत्नप्रभ सूरी ने इस क्षेत्र में जैन धर्म का प्रचार किया, और इस मन्दिर में प्रतिमा स्थापित कर उसे प्रारम्भिक स्वरूप प्रदान किया था। मन्दिर के कलात्मक स्वरूप को देखने से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस मन्दिर के निर्माण में शताब्दियों की कला का प्रयोग किया गया है परन्तु क्योंकि आचार्य रत्नप्रभ सूरी ने ही यहां जैन धर्म का प्रचार किया था, इसलिए यहां जैन धर्म से सम्बन्धित जो अवशेष हैं, उन सब की अनुश्रुतियों का सम्बन्ध उक्त जैन मुनि से जुड़ गया है । महावीर-मन्दिर की एक श्लोक-बद्ध प्रशस्ति (वि० सं० १०१३-६५६ ई०) से यह ज्ञात होता है कि यह मन्दिर प्रतिहार नरेश वत्सराज के समय (हरिवंश पुराण के अनुसार शक संवत् ७०५-७६३ ई०) में विद्यमान था।' इसी प्रकार एक अन्य लेख (वि० सं० १०७५-१०१६ ई०) से यह संकेतित होता है कि इस मन्दिर का द्वार दो व्यक्तियों ने मिलकर बनवाया था। मन्दिर के द्वार, मूर्तियों तथा स्तम्भों पर उत्कीर्ण लेखों (९७८ से १७०१ ई० ) से यह जानकारी मिलती है कि इस मन्दिर का तोरण द्वार कई बार * जैन, के०सी०, पूर्वोक्त, पृष्ठ १८३ २. ओझा, पूर्वोक्त, पृष्ठ २६ ३. वही। जैन के०सी०, पूर्वोक्त, पृष्ठ १८३ ५. मुनि ज्ञान सुम्दर जी, भगवान् पार्श्वनाथ की परम्परा का इतिहास, फ्लादो, १६४३, पृष्ठ १५६ पर उधत । ६. शर्मा, दशरथ, पूर्वोक्त, पृ० ७२ ७. ओझा, पूर्वोक्त, पृष्ठ २६ जैन इतिहास, कला और संस्कृति १४३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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