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________________ जैन धर्म और स्थापत्य का संगम तीर्थ-प्रोसिया डॉ. सोहनकृष्ण पुरोहित राजस्थान के ऐतिहासिक नगर जोधपुर से ५२ किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम दिशा में जैन धर्म और स्थापत्य का प्रमुख केन्द्र "ओसिया" स्थित है। ओसिया ग्राम में आज भी वैष्णव, शैव, और जैन मन्दिर विद्यमान हैं। इसलिए यदि इसे “मन्दिरों का नगर" कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। अभिलेखों और साहित्यिक ग्रन्थों में ओसियां को उपकेशपट्टन' अथवा उपशीशा' कहकर पुकारा गया है। इस नगर की स्थापना के सम्बन्ध में जनसाधारण में कई किंवदन्तियां प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार विक्रम सम्वत् प्रारम्भ होने के चार सौ वर्ष पूर्व भीनमाल में भीमसेन नामक राजा राज्य करता था। उसके श्रीपुञ्ज तथा उप्पलदेव नामक दो राजकुमार थे। एक बार दोनों राजकुमारों में किसी बात को लेकर झगड़ा हो गया। इसलिए श्रीपुञ्ज ने उप्पलदेव पर यह ताना कसा कि जो व्यक्ति अपने बाहुबल से राज्य स्थापित करता है, उसी को दूसरे पर प्रभुत्व जमाने का अधिकार होता है। अपने भ्राता के मुख से यह वाक्य सुनकर उप्पलदेव वहां से तुरन्त रवाना हो गया तथा अपने एक मंत्री को लेकर दिल्ली पहुंचा। वहां उसने साधु नामक राजा से एक नया राज्य स्थापित करने की स्वीकृति प्राप्त की तथा मारवाड़ के उपकेशपुर या ओसिया में अपने नवीन राज्य की स्थापना की । उप्पलदेव की अधिष्ठात्री देवी चामुण्डा थी। डा० डी० आर० भण्डारकर' का मत है कि भीनमाल के किसी परमार राजा पर शत्रु का अत्यधिक दवाब बढ़ जाने से उसने यहां आकर "ओसला" (शरण) लिया था इसलिए इस स्थल का नाम ओसिया पड़ा। डॉ०के०सी०जैन की मान्यता है कि भीनमाल से ओसिया आने वाला राजकुमार परमार-वंशीय नहीं, अपितु गुर्जर प्रतिहार वंश का था। जैनग्रन्थ "उपकेशगच्छ प्रबन्ध" (१३२६ ई०) के अनुसार सुर-सुन्दर नामक राजा के पुत्र श्रीपुञ्ज का पिता से झगड़ा हो जाने पर ओसिया राज्य की स्थापना की थी। महावीर-मन्दिर के एक लेख के अनुसार आठवीं शताब्दी के अन्तिम दशक तक यहां प्रतिहार नरेश वत्सराज का शासन था। ओसिया की स्थापना के सम्बन्ध में हमारी मान्यता है कि इसका संस्थापक संभवत: भीनमाल का कोई राजकुमार था। वह किस राजवंश का था ; इस सम्बन्ध में हमारा अनुमान है कि वह कोई चावड़ा वंशीय राजकुमार था। प्रतिहार और परमार वंश का इतिहास अब लगभग स्पष्ट हो चुका है और उसमें श्रीपुञ्ज या उप्पलदेव जैसे राजकुमारों का उल्लेख नहीं मिलता। जबकि चावड़ा वंश का इतिहास अभी भी अंधकार-पूर्ण है। इन परिस्थितियों में ओसिया राज्य की स्थापना का काल यदि छठी शती ई० में रखते हैं तो वह अनुचित नहीं कहा जा सकता। ओसवाल जाति का मूल निवास स्थान ओसिया को महाजनों की ओसवाल जाति की उत्पत्ति से भी सम्बन्धित माना जाता है। यहां जनसाधारण में प्रचलित एक कथानक के अनुसार ओसिया का राजा उप्पलदेव अथवा श्री पुञ्ज चामुण्डा देवी का कट्टर भक्त था। एक बार प्रसिद्ध जैनाचार्य रत्नप्रभ सूरी (भगवान् पार्श्वनाथ के सातवें पट्टेश्वर) अपने ५०० शिष्यों सहित चातुर्मास करने हेतु ओसिया आये ; लेकिन वहां पर १. ओझा, गौरीशंकर हीराचन्द, जोधपुर राज्य का इतिहास खण्ड १, पृष्ठ २८ गायकवाड़ ओरियण्टल सीरीज, बड़ौदा, ७६ पृष्ठ १५६ भण्डारकर, डी०आर०, प्रोग्रेस रिपोर्ट ऑव आयोलोजिकल सर्वे ऑव इण्डिया, वेस्टर्न सकिल', १६०७, पृष्ठ ३६ जैन, के०सी०, एशियेंट सिटीज एण्ड टाउन्स ऑव राजस्थान, पृ० १८० वही (लहर २, संख्या ८, पृष्ठ १४) ६. नाहर, पूर्ण चन्द्र, जैन इन्स्क्रिप्संस, कलकत्ता, १६१६-२६, संख्या ७८८ ७. शर्मा, दशरथ, राजस्थान यू दि एजिज, पृ० ११२, २८८, ४४०, ७०७, २२६, १३१ १४२ आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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