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________________ एक उदात्त पुरुष आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज निश्चय ही एक उदात्त पुरुष हैं। यहाँ 'उदात्त' शब्द का प्रयोग हम दोनों ही अर्थों में कर रहे हैं-(1) उदार, और (ii) ऊर्ध्वमुखी चेतना के अध्यात्मपुरुष । दक्षिण भारत की भाषाओं में उपलब्ध प्राचीन जैन धर्मग्रन्थों को उत्तर भारत की भाषाओं हिन्दी व मराठी में अनुदित करके आपने एक सुदृढ़ साहित्यिक-सांस्कृतिक समन्वय सेतु का निर्माण किया है। चारों जैन सम्प्रदायों के धर्मगुरुओं के साथ एक ही मंच पर बैठ कर आपने उनके समन्वय की दिशा में तो विचार-विमर्श किया ही है, विश्व धर्म सम्मेलन के मंच पर समासीन होकर आपने मानव धर्म की कल्पना को साकार करने की दिशा में भी चिन्तन किया है। आपकी उदार, सहिष्णु और गुणग्राही दृष्टि के कारण आपकी धर्मसभाओं में केवल जैन ही नहीं, वैष्णव, आर्यसमाजी, मुस्लिम, सिख, हरिजन, गिरिजन सभी ने सम्मिलित होकर धर्मलाभ किया है। सामाजिक कल्याण और उसके निरन्तर उत्कर्ष के लिए भी आपने अपनी योजनाओं को साकार किया है । आपकी प्रेरणा से नवनिर्मित जिनालयों, तीर्थ क्षेत्रों अथवा जीर्णोद्धार किये गए धर्मस्थलों में पहुंचकर मानव-मन को असीम शांति का अनुभव होता है। विद्यालयों तथा गुरुकुलों की संस्थापना द्वारा भी आपने शिक्षा को सर्वजन सुलभ बनाने का प्रयास किया है। इधर, कोथली में लगभग एक करोड़ रुपये की लागत से निर्माणाधीन श्री देशभुषण चिकित्सालय तो उनकी जनकल्याणकारी उदार योजनाओं की विशाल झांकी प्रस्तुत कर रहा है जहाँ दूर-दूर से आये हुए रोगग्रस्त प्राणी आधुनिकतम चिकित्सा-" सुविधाएँ प्राप्त करके करुणाविगलित हृदय से आचार्यश्री को कृतज्ञतापूर्वक स्मरण किया करेंगे। ___ वस्तुत: आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज की निवृत्ति भावना आदर्श है। निवृत्ति की साधना उन्होंने मात्र मोक्षलक्ष्मी का वरण करके आत्म-कल्याण के लिए ही नहीं की वरन् भव्य जीवों के कल्याण के लिए भी वे निरन्तर अनेक लोकोपकारी योजनाओं की कल्पना और उनका क्रियान्वयन करके मानव-मात्र की मोक्ष-कामना कर रहे हैं । ऐसे हैं आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी! आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी की साधना और रचनात्मक कार्यों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि 'साकेत' में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने भगवान् श्री रामचन्द्र जी से आत्मस्वीकृति के रूप में जो अपेक्षाएँ की थीं उन्हें वर्तमान में आचार्यश्री पूरा कर रहे हैं "भव में नव वैभव व्याप्त कराने आया, नर को ईश्वरता प्राप्त कराने आया। संदेश यहाँ मैं नहीं स्वर्ग का लाया, इस भूतल को ही स्वर्ग बनाने आया ॥" aper DNA आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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