SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एक महान् सन्त-रत्न आचार्य सम्राट् श्री आनन्द ऋषि जी भारतवर्ष सदा से ही सन्तों की जन्मभूमि एवं कर्मभूमि के रूप में विश्रुत है। अनेक साधना-मार्ग होते हुए भी सभी का लक्ष्य सम्पूर्ण कर्मों का क्षय कर मोक्ष-प्राप्ति का रहा है। सभी संतों ने अपनी साधना एवं आराधना द्वारा स्व-पर का कल्याण करते हुए मानव जाति का मार्ग प्रशस्त किया है। यह सन्त-परम्परा अक्षुण्ण रूप से चली आ रही है । संसार के महाभंवर में जब-जब जीवन-नौका डूबने को आई, सन्तों ने अपने अनुभव एवं आत्म-शक्ति द्वारा उसे उबारा है। युग के सन्दर्भ में जिस इतिहास का निर्माण हुआ है, वह सभी सन्तों की प्रेरणा का प्रतिफल है। अतीत मे भगवान् महावीर, बुद्ध, नानक, विवेकानन्द आदि अनेक सन्त-पुरुषों ने भारत में ही नहीं, अपितु विश्व के कोने-कोने में ज्ञान, भक्ति, चारित्र एवं सदाचार तथा विश्व-वात्सल्य का अलख जगाया था। मानव को 'वसुधैव कुटुम्बकम' का पाठ पढ़ाया था। 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' का जीता-जागता नारा दिया था। 'आत्मन: प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत्' का सिद्धान्त दिया था। 'जीओ और जीने दो' वा उद्घोष किया था। मानवजाति पर यह उनका बहुत बड़ा उपकार है। उसी परम्परा में वर्तमान में भी ऐसे सन्त विद्यमान हैं जो अपने तन का कण-कण एवं जीवन का क्षण-क्षण जनहित में लगा रहे हैं। उन्हीं सन्तों की शृखला की कड़ी में हैं आचार्य श्री देशभूषण जी। जैन समाज में दो परम्पराएं चली आ रही हैं-दिगम्बर एवं श्वेताम्बर । दोनों का आराध्य एक है-कुछ आचार-विचार व क्रिया-भेद होते हुए भी जैन की दृष्टि से या सैद्धान्तिक दृष्टि से दोनों एक हैं । दोनों सम्प्रदायों में त्याग, तप, जप, स्वाध्याय आदि को महत्त्व दिया गया है। आचार्य देशभूषण जी एक महान् सन्तरत्न हैं । हमने उनको देहली चातुर्मास में निकटता से देखा है। वे उच्च विचारक, संगठन के हिमायती एवं समन्वयवादी सन्त हैं। उनकी हादिक भावना है कि सभी जैन भगवान् महावीर के नाम पर एक जगह आएं और समाज का नैतिक, धार्मिक एवं आध्यात्मिक विकास हो। इसीलिए उनका विहार-क्षेत्र दक्षिण से उत्तर रहा है। उनके ऋण से उऋण होने के लिए समाज के प्रमुख लोगों ने 'अभिनन्दन ग्रन्थ' भेंट करने का निर्णय किया। यह स्तुत्य है । इस ग्रन्थ-रत्न से जैन साहित्य में वृद्धि होगी। यह ग्रन्थ रत्न जैन इतिहास एवं दर्शन का सुन्दर, सुलभ ग्रन्थ बने । इससे प्रेरणा लेकर अनेक मुमुक्षु आत्माएं सम्यक्त्व को प्राप्त कर अन्धकार से प्रकाश की ओर आएं। यही मेरी हार्दिक शुभकामना है। 627 जैन धर्म के मुख्य नेता आचार्य श्री शांतिसागर जी (हस्तिनापुर वाले) आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज से मैंने जयपुर में दर्शन प्रतिमा का स्वरूप समझ कर धारण किया। उनके आशीर्वाद से मुझे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यग्चारित्र प्राप्ति का उपाय समझ कर ग्रहण करने का अवसर मिला। मैं उनका आभारी हूं। मेरी भावना है कि उनको रत्नत्रय की प्राप्ति हो। आप जैन धर्म के मुख्य नेता हैं और आपने में जैन धर्म का महान् प्रचार किया है । साहित्य भी लिखा है । वह धर्म का प्रचार करते रहें, यही विनय है । कालजयी व्यक्तित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy