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________________ दसरी प्रतिमा गंधावल नामक ग्राम में मिली है। गंधावल ग्राम जैन अवशेषों से भरा हुआ है। यहाँ शैव, वैष्णव व जैन अवशेष बहुतायत से मिले हैं। यहां पर पार्श्वनाथ, अभिनंदननाथ व सुमतिनाथ को की खड्गासन में निर्मित परमारकालीन प्रतिमाएं गंधर्वसेन के मंदिर के आसपास पड़ी हैं। यहाँ पर संग्रहालय में भी लगभग ६५ तीर्थकर प्रतिमाएं सुरक्षित हैं। गंधावल की यह अच्युतादेवी की प्रतिमा लेखयुक्त नहीं है । मूर्ति निर्मिति की शैली के आधार यह प्रतिमा १० वीं शताब्दी की विदित होती है। इसके अतिरिक्त कांस्य व पीतल की कुछ लघु आकार की अच्युता देवी की प्रतिमा सुन्दरसी, जामनेर व पचोर ग्राम के दिगम्बर जैन मंदिरों में सुरक्षित हैं। पचोर में एक पाषाण निर्मित प्रतिमा असुरक्षित पड़ी हुई है। महावीर भगवान् के २५००वें निर्वाण महोत्सव पर उज्जैन के उत्साही जैन पुरातत्व प्रेमी पं० सत्यंधर कुमार जी सेठी, मक्सी पार्श्वनाथ तीर्थ के मंत्री श्री झांझरी जी के मालवप्रान्तीय जैन पूरातत्व अभिरक्षण समिति के तत्वावधान में इस दिशा में लगभग ३ वर्षों से जैन पुरातत्वीय संपदा के संकलन का कार्य चल रहा है उसमें मुझे भी कार्य करने का सुअवसर मिला व अनेकों स्थानों पर मालवा भूमि में जैन मूर्तियों, शिलालेख, ताम्रलेखों, हस्तलिखित ग्रन्थों की सूचना मिली, जिनका विवरण तैयार किया जा रहा है। निश्चय ही मध्यकाल में मालवाभूमि अपनी पूर्व की जैन पुरातत्व संपदा से मंडित रही व उसमें अच्युता देवी की पाषाण एवं धातु प्रतिमाएं विशिष्ट कलागत सौन्दर्य को उजागर करती हैं। विद्यादेवियों का माहात्म्य नीलांजना अप्सरा के नृत्य में जीवन की क्षणभंगुरता को दृष्टिगत कर भगवान् श्री वृषभ देव को वैराग्य हो गया। उन्होंने सिद्धार्थक वन में सब परिग्रह का त्यागकर चैत्र कृष्ण नवमी के दिन दीक्षा ग्रहण की। तपोवन में कच्छ-महाकच्छ के पुत्र नमि-विनमि भगवान के गणों का स्तवन करते हुए भोग सामग्री की याचना कर रहे थे । भवनवासियों के अन्तर्गत नागकुमार देवों के इन्द्र धरणेन्द्र ने अपना आसन कम्पायमान देखकर इस प्रकरण को जान लिया। जिन भक्त धरणेन्द्र ने दिति तथा अदिति नामक देवियों के साथ आकर नमि-विनमि को उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर विजयाध पर्वत का आधिपत्य एवं विद्याकोश दिए। आदेति देवी ने उन्हें विद्याओं के आठ निकाय दिए तथा गान्धर्व सेन नामक विद्याकोष बतलाया । विद्याओं के आठ निकाय इस प्रकार थे। (१) मनु, (२) मानव, (३) कौशिक, (४) गौरिक, (५) मान्धार, (६) भूमितुण्ड, (७) मूलवीर्यक, (८) शङ कुक । दिति ने भी उन्हे निम्नलिखित आठ निकाय प्रदान किए (१) मातङ्ग, (२) पाण्डुक, (३) काल, (४) स्वपाक, (५) पर्वत, (६) वंशालय, (७) पांशुमूल, (८) वृक्षमूल । इन सोलह निकायों की नीचे लिखी विद्याएँ कही गई है : प्रज्ञप्ती रोहिणी विद्या विद्या चाङ्गारिणीरिता। महागौरी च गोरी च सर्वविद्याप्रकर्षिणी ।। महाश्वेताऽपि मायूरी हारी निर्वज्ञशावला। सा तिरस्कारिणी विद्या छाया सङ्क्रामिणी परा ।। कुष्माण्डगणामाता च सर्वविद्याविराजिता । आर्यकष्माण्डदेवी च देवदेवी नमस्कृता ॥ अच्युतार्यवती चाऽपि गान्धारी निवृतिः परा। दण्डाध्यक्षगणश्चापि दण्डभूतसहस्त्रकम् ।। भद्रकाली महाकाली काली कालमुखी तथा। एवमाद्याः समाख्याता विद्या विद्याधरेशिनाम्॥ हरिवंशपुराण २०/६२-६६ प्रज्ञप्ति, रोहिणी, अङ्गारिणी, महागौरी, गौरी, सर्व विद्याप्रकर्षिणी, महाश्वेता, मायरी, हारी, निर्वज्ञशाडवला, तिरस्कारिणी., छायासंक्रामिणी, कुष्माण्ड गणमाता सर्वविद्याविराजिता, आर्यकुष्माण्डदेवी, अच्युता, आर्यवती, गान्धारी, निर्ववृति, दण्डाध्यक्षगण, दण्डभूतसहस्रक, भद्रकाली, महाकाली, काली और कालमुखी- इन्हें आदि लेकर विद्याधर गजाभों को अनेक विद्याएं कही गई हैं। . विद्याधरों की एक सौ दस नगरियों में विद्याधर निकायों के नाम से युक्त तथा भगवान वषभदेव, धरणेन्द्र और दितिअदिति देवियों की प्रतिमाओं से सहित अनेक स्तम्भों का पौराणिक उल्लेख भी प्रथमानुयोग के धर्मग्रंथो में मिलता है। विद्यादेवियों की प्राचीन प्रतिमाएँ बड़ी मात्रा में अभी उपलब्ध नहीं हुई है किन्तु मूतिशास्त्र पर प्रकाश डालने वाले 4. आशाधर (१२२८ ई०) के 'प्रतिष्ठा सारोद्धार' के तीसवें अध्याय में विद्यादेवियों के नामोल्लेख में अनेक देवियों-रोहिणी, जाम्बूनदा, गौरी, गान्धारी, ज्वालामालिनि, महामानसी आदि के साथ अच्युता का भी विशेष रूप से वर्णन मिलता है। इससे यह प्रतीत होता है कि विद्यादेवी के रूप में अच्युता की प्रतिमाओं को १२वीं-१३वीं शताब्दी में मान्यता मिल गई थी। -सम्पादक १. डा. हीरालाल जैन : भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान, पृ. ३५६. आचार्यरत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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