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________________ मालवा से प्राप्त अच्युता देवी की दुर्लभ प्रतिमाएँ -डॉ० सुरेन्द्र कुमार आर्य भारतीय जैन मूर्तिशिल्प में अश्व पर सवारी किये अच्युता, अच्छुप्ता या अच्छुम्ना देवी की प्रतिमाएं कम मिलती हैं। एक प्रतिमा उज्जैन स्थित दिगम्बर जैन पुरातत्व संग्रहालय जयसिंहपुरा में सुरक्षित है। दो अन्य जो विगत दो वर्षों में पुरातात्विक सर्वेक्षण करते समय मुझे झर ग्राम व गंधावल ग्राम में मिली हैं। यहां पर इसी देवी की प्रतिमा पर चर्चा की जायेगी। श्वेताम्बर साहित्य में इस देवी को अच्युप्ता कहा गया है व इसके लक्षण बतलाये गये हैं कि यह देवी घोड़ पर आरूढ़ है व चतुर्हस्ता है एवं चारों हाथों में धनुष, तलवार, ढाल व तीर लिए हुए हैं 'सव्यपाणि-धृतका कवराऽन्यस्फुरद्विशिखखङ्गधारिणी। विद्युद्दामतनुरश्ववाहनाऽच्युप्तिका भगवती।' दिगम्बर साहित्य में भी इस देवी को अश्ववाहना व तलवारधारिणी कहा गया है 'धौतासिहस्तां हयगेऽच्युते त्वां हेमप्रभां त्वां प्रणतां प्रणौमि ।' प्रारंभिक प्रतिमा जो जैनसंग्रहालय जयसिंहपुरा, उज्जैन में सुरक्षित है वह काले स्लेटी पत्थर पर उत्कीर्ण एवं अभिलेखयुक्त है। यह प्रतिमा लगभग ३२ वर्ष पूर्व बदनावर नामक ग्राम से जमीन के नीचे से मिली थी। इस प्रतिमा के लेख से वर्द्धमानपुर की स्थिति का विवाद समाप्त हो गया था । आचार्य जिनसेन ने इसी स्थान पर अपनी प्रसिद्ध कृति हरिवंशपुराण पूर्ण की थी और यहीं पर प्रसिद्ध शांतिनाथ का मंदिर था । डॉ०वि० श्री वेलणकर ने बदनावर (उज्जैन धार के मोटरमार्ग पर बड़नगर से १२ कि० मी० पश्चिम दिशा में स्थित) से हीरालाल सिखी के खेत से ६२ जैन प्रतिमाएं प्राप्त की थीं। बाद में यहीं से पं० सत्यंधर कुमार सेठी ने इस अभिलेखयुक्त प्रतिमा को प्राप्त किया एवं उसे उज्जैन संग्रहालय में सुरक्षित रखा।। प्राचीन बर्द्धमानपुर व आज के बदनावर से प्राप्त इस प्रतिमा में देवी घोड़े पर आरूढ़ है। प्रतिमा चतुर्हस्ता है, दोनों दाहिने हाथ भग्न हैं, ऊपर के बायें हाथ में एक ढ़ाल है और नीचे का हाथ घोड़े की लगाम या वल्गा संभाले हुए है। दाहिना पैर रकाब में है और बायां उस की जंघा पर रखा हुआ है। इस प्रकार मूर्ति का मुख सामने व घोड़े का उसके बायीं ओर है। देवी के गले में गलहार है व कान में कर्णकुण्डल । प्रतिमा के मुख के आस पास प्रभामंडल है, उसके पास तीन तीर्थकर प्रतिमाएँ पद्मासन में अंकित हैं । चारों कोनों में भी छोटी-छोटी जैन तीर्थकर प्रतिमाएं हैं। नीचे २ पंक्तियों का लेख है जिसके अनुसार अच्युता देवी की प्रतिमा संवत् १२२६ (ई० ११७२) में कुछ कुटुम्बों के व्यक्तियों ने वर्द्धमानपुर के शांतिनाथ चैत्यालय में प्रस्थापित की थी। डॉ० हीरालाल जैन ने अपने लेख में यह सिद्ध किया है कि यही वह स्थान है और इसका नाम वर्द्धमानपुर था जहां शांतिनाथ मंदिर में शक संवत ७०५(ई०७८३) में आचार्य जिनसेन ने हरिवंशपुराण की रचना पूर्ण की थी।' प्रतिमा के नीचे अभिलेख का वाचन इस प्रकार है :-संवत १२२६ वैसाख वदी। शुक्रवारे अद्य वर्द्धनापुरे श्री शांतिनाथचेत्ये सा श्री गोशल भार्या ब्रह्मदेव उ देवादि कुटुम्ब सहितेन निज गोत्र देव्याः श्री अद्युम्नाया प्रतिकृति कारिता। श्री कुलादण्डोपाशाय प्रतिष्ठिता।" १२ वीं शताब्दी के कुछ अभिलेखयुक्त प्राप्त मूर्तियों के ढ़ेर से एक अन्य अच्युतादेवी की प्रतिमा झर नामक ग्राम में मिली है। यहां पर विशाल जैनमंदिर रहा होगा व इन्द्र, यम, वरुण, ईषान्य व नैऋत्य देवता की लाल पत्थर पर उत्कीर्ण प्रतिमाएं मिली हैं। यह स्थान उज्जैन से ४५ कि. मी. पश्चिम दिशा में उज्जैन-रतलाम मोटरमार्ग पर रुणीजा नामक ग्राम के पास है। लाल पत्थर पर धोड़े पर आसीन देवी के आभूषण अत्यन्त सुन्दर रूप से उकेरे गये हैं। तलवार व ढाल स्पष्ट आयुध दृष्टिगोचर होते हैं। शेष दो हाथ . भग्न हैं। अश्व की बनावट में कलात्मकता नहीं है । देवी के मुख के चारों ओर प्रभामंडल है। ऊपर एक तीर्थकर पद्मासन में अंकित - है। शिल्प के आधार पर व अन्य प्रतिमाओं के अभिलेख से यह मूर्ति १२वीं शताब्दी की प्रतीत होती है। जैन इतिहास कला और संस्कृतिः .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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