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मौर्य चन्द्रगुप्त विशाखाचार्य
-श्री चन्द्रकान्त बाली, शास्त्री
जैन-जगत् के बड़े-बडं तपस्वी, वीतराग, जितेन्द्रिय एवं मेधावी मुनियों, उपाध्यायों एवं आचार्यों ने अपने विचक्षण व्यक्तित्व के बल पर महान-से-महान् सम्राटों को श्रमन-जीवन यापन केलिए प्रेरित किया-यह बात जैन-समाज के लिए गौरवपूर्ण एवं महिमामयी मानी जाएगी। इसी संदर्भ में हम मौर्यवंशी-संक्षिप्त सीमा के अन्तर्गत गुप्तवंशी-चन्द्रगुप्त का समयांकन करने चले हैं। एतन्निमित्त कुछ-एक महत्वपूर्ण मुद्दों का सरल परिचय देना हम साम्प्रत समझते हैं।
मौर्यवंश : उक्त वंश की स्थापना किसने की? इसका समाधान अब इतना जटिल नहीं रहा। अब इतिहासकार इस बात पर सहमत हए जाते हैं कि मौर्यवंश की स्थापना नंदवंश में से आठवें नन्द मौर्यनन्द' ने की। इस प्रसंग में मौर्यनन्द का उल्लेख इसलिए भी अनिवार्य हो गया है कि जैन-समाज का इतिहास मौर्यनन्द के युग से स्पष्ट-से-स्पष्टतर होने लगा है। कहते हैं-मौर्यनन्द ने कलिंग देश पर आक्रमण किया था और वहाँ से महावीरस्वामी की प्रतिमा उठा लाया था। जैन-संदर्भो से यह भी ज्ञात हो जाता है कि आठवें नन्द (मौर्यनन्द) ने कलिंग पर कब आक्रमण किया था ? परन्तु उनकी संदर्भ-संप्रेषित तिथि भरोसे के योग्य नहीं है। यूनानी इतिहासकारों द्वारा प्रतिपादित भारतीय काल-संदर्भो के परिप्रेक्ष्य में हम जानते हैं कि आठवें नन्द ने ४५१ ई०पू० में कलिग देश पर आक्रमण किया था। इस बात की पष्टि 'खारवेल-प्रशस्ति' नाम से विख्यात अभिलेख से हो जाती है। इस प्रकार जैन-इतिहास से जुड़े हुए मौर्यनन्द को हम मौर्यवंश का प्रथम परुष मानते हैं।
चन्द्रगुप्त मौर्य नाम से विख्यात मगध-सम्राट् क्या मौर्यनन्द का पुत्र है ? इस प्रश्न के समाधान में अस्ति' और 'नास्ति'- दोनों किस्म के उत्तर मिलते हैं। जहाँ तक जैन-साक्ष्य का सम्बन्ध है, उससे पता चलता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य-पुत्र है। इस स्थापना की दढतर पष्टि 'मदाराक्षस' नामक संस्कृत नाटक से भी हो जाती है। परन्तु हम समझते हैं कि कालगत वैषम्य के कारण मौर्यनन्द और चन्द्रगुप्त के दरम्यान पिता-पुत्र के रिश्ते की संभावना क्षीण है। 'नन्द' की भ्रान्ति में आकर लोग-बाग चन्द्रगुप्त मौर्य को पद्मनन्द का पुत्र मान बैठे हैं। यह भी अश्रद्धय प्रसंग है। मौर्यनन्द और चन्द्रगुप्त मौर्य के मध्य तीसरे व्यक्ति की चर्चा एक वरेण्य सत्य के रूप में सामने आ रही है। मौर्यनन्द के पत्र एवं चन्द्रगुप्त के पिता के रूप में पूर्वनन्द' का उल्लेख मनोरंजक भी है और अभिनन्दनीय भी है। यही कारण है कि 'कामन्दकीय नीतिसार' के टीकाकार ने लिखा है : मौर्य कुलप्रसूताय' यह चन्द्रगुप्त का विशेषण है। इन सब संदर्भो के आलवाल में विकसित मौर्यवंश का परिचय इस प्रकार है :
१. जैन काल-गणना-विषयक प्राचीन परम्परा (हिमवन्त थेरावली) से ज्ञात होता है कि बीरनिर्वाण-संवत १४६=३७८ ई० पू० में प्राट न द ने कलिंग
पर चढ़ाई की थी। यह विश्वसनीय नहीं है। कारण, ४३०-३४२ ईसवी पूर्व में मगध पर नवम नंद शासन कर रहा था। अमवता यदि यह संख्या बीर
जन्म से मान ली जाय तो यथार्थपरक हो भी सकती है। यथा ५६६-१४६-४५० ई०पू० में प्राट नन्द ने कलिंग पर प्राक्रमण किया होगा। २. वेदवाणी, बहालगढ़ (सोनीपत) वर्ष ३३, अंक ७. ३. वीर निर्वाण-संवत् और जैन काल-गणना : मनि कल्याण विजय ; पृष्ठ १६६ । ४. द्रष्टव्य-अंक २ और श्लोक संख्या ६ । ५. (क) पूर्वनन्दसुन कुर्यात् चन्द्रगुप्तं हि भूमिपम् ॥
-कथा सरित्सागर : १,४/११९ (ख) योग या गेषे पूर्वनन्दसतस्ततः । चन्द्र गुप्तः कृतो राजा चाणक्येन महौजसा ।।
जैन इतिहास, कला और संस्कृति
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