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________________ जिन कल्पधारी साधु भी राशि में प्राप्त हुए हैं। तीन ऐसे उदाहरण पूर्वोक्त आयामपट्ट वाले विवस्त्र साधुओं को छोड़कर वसुदेव की प्रतिमा की सिंहासन वेदी पर हाथ जोड़े विवस्त्र एक साधु बड़े हैं। इनके पीछे तीन गृहस्व माला लिए खड़े हैं, तीनों के कंधे पर धोती है। यहाँ अर्द्धकालक का अभाव है। दूसरी ओर तीन स्त्रियाँ हाथ जोड़, चौथी कमल लिए हैं।' इसी प्रकार दूसरी प्रतिमा पर साध्वी है। तीसरी पर विवस्त्र साधु एक हाथ में पीछी लिए खड़ा है। एक प्रतिमा का टुकड़ा जिसपर दायीं ओर गृही, अर्द्ध फालक व साध्वी मात्र ही है । शेष यह साध्वो पीछी व दूसरे हाथ में फल लिए हैं। इसके वस्त्र ध्यान देने योग्य हैं नीचे एक वस्त्र उसके उपर चादर सी ओढ़े है, जिसकी गाँठ गले के नीचे हैं भीतर दूसरा हाथ है। प्रायः साध्वी एक साड़ी अथवा साड़ी पर लम्बा सिला कोट पहने बनाई गई है । जो कञ्चुक जैसा है । अहिच्छत्रा की मात्र प्रतिमा जिस पर स्त्री वर्ग दाँये व पुरुष वर्ग बाँए बनाया गया, जो कलाकार का नया प्रयोग या भूल कही जा सकती है। एक सर्वतोभद्र प्रतिमा की चौकी पर सुन्दरता से चारों ओर वंदन मुद्रा में पुरुष-स्त्री, साधु-साध्वी बने हैं । यह संवत् ७४ की है जो उस पर खुदा है तथा अहिच्छत्रा से प्राप्त हुई है । किन्तु मथुरा के चित्तीदार लाल पत्थर की बनी है । इस प्रकार अच्छिन्नरूप से ईसा की प्रथम व द्वितीय शती में चतुविध जैग संघ का शिल्प में प्रभूत मात्रा में विलेखन पाते हैं । किन्तु गुप्तकाल में धर्मचक्र के आस-पास दो या तीन उपासक घुटनों के बल बैठे बन्दन-मुद्रा में बनाने की प्रथा मात्र ही प्रतिमाओं पर दीख पड़ती है । TH -२६: आद्य तीर्थकर ऋषभदेव की चरण-चौकी पर चतुविध-संघ (सम्राट वि ६० ई०. कंकाली टीला, मखरा) १. जे – ३० प्राचीन भार वेषभूषा ० ३७ ले० डा० मोती चन्द्र । २. जे - १०८ ३. जे – २६ ४. जे – ३७ देखिए रेखाचित ५. जे – ६८४ । जैन इतिहास, कला और संस्कृति Jain Education International For Private & Personal Use Only ५५ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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