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________________ - के अनुयायी को अपनी परम्परागत समाराधना का संवैधानिक अधिकार देती थी। अतः इस प्रकार के प्रतिबन्ध को स्वीकार करना वास्तव में धर्म का अपमान था । पुलिस ने आचार्यश्री के स्वतन्त्र विचरण पर प्रतिबन्ध लगाने के लिए मन्दिर के चारों तरफ घेरा डाल दिया और आचार्य श्री ने भी दिगम्बर जैन धर्म एवं साधुओं के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाने वाली अनुचित निषेधाज्ञा का उल्लंघन करने की स्पष्ट घोषणा कर दी थी । जैन समाज में प्रतिबन्ध के समाचार से गहरी बेचैनी एवं हृदयविदारक पीड़ा थी । सम्भावना यह थी कि आचार्य श्री के प्रतिबन्ध तोड़ने पर पुलिस उन्हें गिरफ्तार कर लेगी। आचार्यश्री ने भगवान् पार्श्वनाथ का पावन स्मरण किया और उनकी स्तुति में भक्ति स्त्रोत्रों का पाठ किया। उसके उपरान्त आश्चर्यजनक ढंग से प्रतिबन्ध को तोड़ते हुए वे रथयात्रा में सम्मिलित हो गये । उनकी सिंह की सी गति एवं तपश्चर्या को देखकर पुलिस स्तब्ध रह गई । राजकीय आज्ञा से बंधे हुए पुलिसकर्मियों ने उन्हें अपनी विवशता बताते हुए दिगम्बर परिवेश में नगर विचरण के लिये रोकने का प्रयास किया। तभी जैन समाज के प्रयासों से पुलिस कमिश्नर महोदय ने आचार्यबी के चरों में उपस्थित होकर निवेदन किया कि उनके नगर-विहार पर से सरकारी प्रतिबन्ध उठा लिया गया है । सभी श्रावक-श्राविकाओं की आंखों में दीपमालिका का उज्ज्वल प्रकाश आलोकित हो उठा और आचार्यश्री विशाल जनसमूह के साथ रथयात्रा में ससंघ चलने लगे । बंगाल की धर्मप्राण जनता ने इन्द्रियजयी मुनिश्री की मुक्तकंठ से जयजयकार की और बंगाल की तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती पद्मजा नायडू ने हरीसन रोड पर पुष्पवृष्टि द्वारा उनका स्वागत किया । वास्तव में आचार्यश्री का स्वागत गौरवशाली निर्ग्रन्थ परम्परा का अभिनन्दन मात्र था । पदयात्राओं और धर्मसभाओं के सन्दर्भ में आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज का सम्पर्क सामान्य से सामान्य नागरिक और विशिष्ट बुद्धिजीवी, समाजसेवी, धर्माचार्य, राजनेता सभी से हुआ है। सभी आपकी धर्मप्रभावना और ज्ञानज्योति से प्रभावित हुए हैं । विश्व धर्म सम्मेलन, भगवान् महावीर स्वामी के २५००वें परिनिर्वाण महोत्सव, श्रवणबेलगोला में भगवान् बाहुबलि के महामस्तका 'भिषेक, 'भगवान् महावीर और उनका तत्वदर्शन ग्रन्थ विमोचन, लालकिला के निकटस्थ परिन्दों के धर्माच हस्पताल के विस्तार योजना समारोह अथवा महाराजश्री के जन्मजयन्ती के अवसरों पर देश के शीर्षस्थ नेता एवं बुद्धिजीवी सर्व श्री डॉ० राधाकृष्णन्, डॉ० जाकिर हुसैन, डॉ० स्ट्रीन अली अहमद, डॉ० गोपाल स्वरूप पाठक, श्रीमती इन्दिरा गांधी, लालबहादुर शास्त्री, गोविन्द बल्लभ पंत, सम्पूर्णानन्द, मोहनलाल सुखाड़िया, यू० एन० ढेबर, निजलिंगप्पा, ब्रह्मानन्द रेड्डी, प्रकाशचन्द्र सेठी, कमलापति त्रिपाठी, शिवचरण माथुर, पद्मजा नायडू, धर्मवीर, प्रफुल्लचन्द्र सेन, देवराज असं, रामकृष्ण हेगड़े, महारानी गायत्री देवी, सेठ जुगकिशार बिड़ला आदि ने आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी का सान्निध्य पाकर अध्यात्म-लाभ किया है। भारत गणतंत्र के प्रथम राष्ट्रपति राजर्षि डॉ० राजेन्द्रप्रसाद ने आचार्यश्री के द्वारा प्रकाश में लाए गये ज्ञान-विज्ञान के विविध आयामों को उद्घाटित करने वाले अंकलपि में निबद्ध 'प्राचीन ग्रन्थ 'विरि भूवलय' को संसार के आठवें आश्चर्य के रूप में स्वीकार करते हुए आचार्यश्री की शास्त्रान्वेषी दृष्टि और परम उपयोगी कार्यों को अहर्निश करते रहने के उनके संकल्प के प्रति आस्था व्यक्त की थी । भारत के उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट ) के न्यायमूर्ति माननीय श्री टी० एल० वेंकटरमण अय्यर श्री दिगम्बर जैन धर्मशाला, पहाड़ी धीरज, दिल्ली में जब दिनांक २०.२.१६५६ को आचार्य के दर्शनार्थ पधारे तो उनकी वीतरागी दिगम्बर मुद्दा तथा अगाध ज्ञानज्योति एवं धर्मचर्चा ने उन्हें अत्यधिक प्रभावित किया था। उस अवसर पर न्यायमूर्ति श्री अय्यर ने संस्कृत भाषा में आचार्यश्री की वाङ्मय स्तुति करते हुए जो भाव प्रकट किए थे उन्हें अविकल रूप में यहाँ (हिन्दी अनुवाद सहित ) प्रस्तुत किया जा रहा है "न पुनः आत्मानं समर्थ मन्ये तवाचि अवनीयत्वात् गुरो रशाया किञ्चिदेव वश्यामि अस्माकं पुराणेषु देवाश्वायुराश्वेति अस्माभिः पज्यंते । न पुनरस्माभिः असुरा: दृष्टाः विगतरूपः अमानुषरूपः चेति गुण। देवः चेति गुणः असुरः इत्ययं असभिः प्रच्छति सर्वेरेव अयं अत्रातः अवगन्तव्यः । असुभिः रमन्ते इति असुराः । येषां शरीरस्यैव आशा वर्तते इति असुराः । ये चिन्तयंति अयमेव देहाः मुख्या अस्य देहस्य पोषणार्थं सर्वं कर्तव्यं इति ये ये चिन्तयन्ति ते सर्वे असुराः । ये पुनः चिन्तयन्ति अस्माद्देहात् व्यतिरिक्ताः कश्चिद् वर्तते सह अस्माभिः ज्ञातव्याः । इति ये ये चिन्तयन्ति के ते देवाः । इत्ययं अतः अस्मात्तस्मात् अस्माभिः देवपथमनुसरद्भिः आत्मा अवगन्तव्यः । कालजयी व्यक्तित्व Jain Education International For Private & Personal Use Only ४७ www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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