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________________ पर निजाम ने एक आज्ञा निकाली कि जैन मुनि हमारे राज्य में विहार तो कर सकते हैं किन्तु आहार के लिए वह रात को बारह बजे निकलें और दिन में एकान्तवास करें। सभी को ज्ञात है कि जैन मुनि प्रायः प्रातःकाल में 8-०० बजे तक चर्या के लिये जाते हैं और सायंकाल सूर्य छिपने के उपरान्त निश्चित स्थान के अतिरिक्त कहीं नहीं जाते । अतः इस धर्मविरुद्ध आज्ञा के सम्बन्ध में निजाम साहब को समझाया गया। महापुण्यवान श्री समसकरण सेठी महोदय ने निजाम साहब से मिलकर यह आज्ञा निरस्त करवा दी। निजाम साहब ने एक अन्य आज्ञा प्रसारित कराई जिसका भाव इस प्रकार था कि हमारे राज्य में जैन मुनियों के अतिरिक्त अन्य साधु नग्न नहीं फिर सकते । उस समय उन्होंने यह इच्छा भी प्रकट की थी कि जिन महात्मा के साथ पुलिस व प्रजा ने उपसर्ग किया था वे हमारे राज्य में पूनः आवें, हम उनका स्वागत करेंगे। उस समय मुनिश्री का चातुर्मास नागपुर में हो रहा था । निजाम साहब द्वारा व्यक्त सद्भावनाओं की सूचना उन्हें तार द्वारा दी गई। चातुर्मास समापन के पश्चात् उन्हें संघ सहित भगवान् गोम्मटेश्वर की विश्वविख्यात प्रतिमा के दर्शन के निमित्त जाना था। मुनिश्री यद्यपि स्तुति एवं उपसर्गों में तटस्थ भाव रखते हैं किन्तु जैन धर्म की प्रभावना के हेतु वे निजाम स्टेट से होकर ही निकले। निजाम साहब ने अपने दरबारियों के साथ आकर आपका राजसी स्वागत किया और उन्हें आदर के साथ बड़े जुलूस में हैदराबाद ले गए । निजाम साहब ने उन्हें श्री मन्दिर जी के दर्शन कराए और केसर बाग़ में ठहराया तथा एक विशेष आज्ञा द्वारा आठ दिन के लिए नगर में मांस एवं मदिरा की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगवा दिया। आचार्यश्री के धर्मप्रवचन में सभी सम्प्रदाय के व्यक्ति सम्मिलित होते थे। उनकी धर्मदेशना से सभी मुग्ध हो गए और ऐसा लगा कि आंध्र राज्य में १० शताब्दियों पूर्व का जैन वैभव एक बार फिर से अंगड़ाई ले रहा है। मुनि श्री देशभूषण जी की प्रतिष्ठा में निजाम साहब ने यह आज्ञा निकाली कि हमारे राज्य में जहां भी मुनिश्री जाएं वहां. सभी इनकी सेवा करें और कहीं भी इनके विहार पर आपत्ति न आए। कलकत्ता के प्रतिबन्ध का निषेध आचार्यश्री ने सन् १९५८ में कलकत्ते के वर्षायोग का आयोजन विशेष कारणों से किया था। भगवान महावीर स्वामी ने अपनी साधना के सन्दर्भ में प्रायः सम्पूर्ण बंगाल राज्य की यात्रा की थी और अपनी धर्मवाणी से तत्कालीन समाज को नई दिशा दी थी। भगवान महावीर की पदयात्राओं से पवित्र बंगाल राज्य में विगत पाँच-छ: वर्षों में कोई भी दिगम्बर आचार्य एवं मुनि नहीं गए थे। आचार्यश्री के मन में दिगम्बर मुनि के सम्पूर्ण राज्य में विचरण की परिकल्पना सदा से रहती आई है। इसी कारण अधिक आयु होने पर भी आचार्यश्री ने कलकत्ते की ओर प्रस्थान किया था। मुनिश्री का कलकत्ता आगमन पर विशेष स्वागत हुआ। उनके समर्थ व्यक्तित्व एवं कृतित्व के प्रति सम्मान प्रकट करने की भावना से पश्चिमी बंगाल राज्य के प्रमुख शासनाधिकारी, बुद्धिजीवी, पत्रकार एवं विभिन्न सामाजिक, धार्मिक संगठनों के प्रमुखों ने एक विशेष अपील निकाली थी। उनके आगमन पर बेलगछिया के मन्दिर का वर्षों से सूखा कुआँ स्वतः ही जल से भर गया था। उनकी मुद्रा, तपश्चर्या एवं योगसार की व्याख्या का रसपान करने के लिए जैन एवं जैनेतर समाज बड़ी संख्या में पधारता था। आचार्यश्री की धर्मकीर्ति एवं लोकप्रियता से किन्हीं कारणों से द्वेष रखने वाले सज्जनों ने उनकी धवल कान्ति एवं यश को मलिन करने की भावना से एक षड्यन्त्र का आयोजन किया और उनके नग्न विचरण के सम्बन्ध में भ्रान्त वातावरण बनवा दिया। सभी को विदित है कि महानगरी कलकत्ता में कार्तिक महोत्सव के अवसर पर जैन रथयात्रा परम्परा से निकलती आई है। इस यात्रा में दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों बड़े उत्साह से सम्मिलित होते हैं । पारसनाथ बाबा की इस ऐतिहासिक रथयात्रा को देखने के लिए लाखों बंगाली भाई-बहिन प्रातःकाल से ही सड़क के दोनों ओर एकत्रित हो जाते हैं। किन्तु धर्मद्वेषी व्यक्तियों को अपनी स्वार्थ साधना के समय धर्म की गौरव-परम्पराओं का ज्ञान भी नहीं रहता और वे अपने हित-साधन के लिए उन गौरवशाली परम्पराओं को तोड़ने में भी नहीं हिचकिचाते। ऐसे ही व्यक्तियों की प्रेरणा से किन्हीं सज्जनों ने आचार्यश्री द्वारा रथयात्रा में नग्न मुनि के रूप में सम्मिलित होने एवं नगर-विचरण पर प्रशासन के अधिकारियों से मिलकर प्रतिबन्ध लगवा दिया । समर्थ दिगम्बर मुनि श्री देशभूषण जी महाराज ने दासता के युग में भी राजे-रजवाड़े एवं ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा लगाई गई प्रतिबन्धात्मक आज्ञाओं का डटकर एक सत्याग्रही के रूप में प्रबल विरोध किया था। उनके द्वारा किए गए तर्कसम्मत सत्याग्रहों के कारण अनेक देशी रियासतों के राजा, नवाबों एवं ब्रिटिश शासन के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने राज्य में से दिगम्बर जैन मुनि के विचरण पर से प्रतिबन्ध हटा लिया था । सन् १९५८ में तो परिस्थितियाँ बिल्कुल ही बदल गई थीं। महात्मा गांधी के अहिंसक आन्दोलन के कारण भारत पराधीनता की बेड़ियों को तोड़ चुका था। हमारे देश में एक ऐसी धर्मनिरपेक्ष सरकार की स्थापना हो चुकी थी जो किसी भी धर्म आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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