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आगमों में समस्त मनुष्य-लोक की लम्बाई-चौड़ाई ४५ लाख योजन, तथा परिधि १४२३०२४६ योजन कही गई है। जम्बूद्वीप की भी परिधि का प्रमाण तीन लाख सोलह हजार दो सौ सत्ताईस योजन से कुछ अधिक बताया गया है। योजन का परिमाण भी आधुनिक माप का ४००० मील होता है।
किन्तु विज्ञानवेत्ताओं के अनुसार, वर्तमान विज्ञात पृथ्वी का व्यास ८००० मील है, तथा परिधि २५ सौ मील है। वर्तमान ज्ञात पृथ्वी को जम्बूद्वीप भी नहीं माना जा सकता, क्योंकि तब यह प्रश्न उठेगा कि इस जम्बूद्वीप में वर्णित भोगभूमियां कौन-सी हैं ? विदेह क्षेत्र कौन सा है जहां सतत, वर्तमान में भी, तीर्थकर विचरण करते हैं ? भोगभूमियों में मनुष्यों का शरीर ५०० धनुष प्रमाण तथा आयु भी लाखों करोड़ों वर्ष बताई गई है, ऐसा स्थान वर्तमान ज्ञात पृथ्वी में कहां है ?
इसी प्रकार, वर्तमान ज्ञात पृथ्वी को भरत क्षेत्र भी नहीं माना जा सकता, क्योंकि तब यह प्रश्न उठेंगे कि उसमें वैताढ्य पर्वत (विजयार्ध) कौन सा है ? इस पर्वत की ऊंचाई २५ योजन बताई गई है, तथा उसकी लम्बाई (पूर्व से पश्चिम तक) दस हजार सात सौ बीस योजन के करीब है । आखिर यह पर्वत कहां है।
(२) मनुष्य लोक में १३२-१३२ सूर्य-चन्द्र माने गए हैं । जम्बूद्वीप में भी दो सूर्य व दो चन्द्र बताए गए हैं। समस्त पृथ्वी पर तो चन्द्र-सूर्यादि की संख्या इससे भी अधिक, अनगिनत,बताई गई है। किन्तु, प्रत्यक्ष में तो सारी पृथ्वी पर एक ही सूर्य व एक ही चन्द्र दृष्टिगोचर होता है।
आगमों में बताया गया है कि जब विदेह क्षेत्र में रात (जम्बूद्वीप स्थित मेरु पवत के पूर्व-पश्चिम में स्थित होने से) होता है, तो भरतादि क्षेत्र में (मेरु पर्वत के उत्तर-दक्षिण में होने के कारण) दिन होता है। आजकल अमेरिका व भारत के बीच प्रायः ऐसा ही अंतर है । तो क्या अमेरिका को विदेह क्षेत्र मान लिया जाय ? और ऐसा मान लेने पर वहां वर्तमान में तीर्थकरों का सद्भाव मानना पड़ेगा ? विदेह क्षेत्र का विस्तार ३३६८४ योजन (लगभग) बताया गया है, क्या अमेरिका इतना बड़ा है ? विदेह क्षेत्र में मेरु पर्वत की ऊँचाई (पृथ्वी पर) एक लाख योजन बताई गई है, ऐसा कौन सा पर्वत आज के अमेरिका में है।
(४) जैन आगमानुसार, लवण-समुद्र इस जम्बूद्वीप को बाहर से घेरे हुए है । किन्तु वर्तमान पृथ्वी पर तो पांच महासागर व अनेक नदियां प्राप्त हैं । जैन आगमानुसार उनकी संगति कैसे बैठाई जा सकती है ?
(५) यदि वर्तमान पृथ्वी को जम्बूद्वीप का ही एक भाग माना जाय, तो भी कई आपत्तियां हैं। प्रथम तो समस्त पृथ्वी पर एक साथ दिन या रात होनी चाहिए । भारत में दिन हो और अमरीका में रात-ऐसा नहीं हो सकता, क्योंकि समस्त जम्बूद्वीप में एक साथ दिन या रात होते हैं।
(६) उत्तरी व दक्षिणी ध्रुव में अत्यधिक लम्बे दिन व रात होते हैं । इसकी संगति आगमानुसार कैसे सम्भव है।
(७) जैनागमों में पृथ्वी को चपटी व समतल माना गया है, फिर वैज्ञानिकों को यह गोल नारंगी की तरह क्यों दिखाई देती है ? दूसरी बात, सपाट भूमि में यह कैसे सम्भव है कि इस भमण्डल के किसी भाग में कहीं सूर्य देर से उदित हो या अस्त हो और कहीं शीघ्र , कहीं धूप हो कहीं छाया।
उपर्युक्त शंकाओं का समाधान आगम-श्रद्धाप्रधान दृष्टि से निम्नलिखित रूप से मननीय है :
हम आज जिस भूमण्डल पर हैं, वह दक्षिणार्ध भरत के छः खण्डों में से मध्यखण्ड का भी एक अंश है। मध्य खण्ड से बीचों बीच स्थित 'अयोध्या नगरी से दक्षिण पश्चिम कोण की ओर, कई लाख मील दूर हट कर , हमारा यह भू-भाग है।
१. बृहत्क्षेत्रसमास-५, ति. प. ४/६-७, हरिवंश पु. ५/५६०, जीवाभि. सू० ३/२/१७७ स्थानांग--३/१/१३२.. २. द्रष्टव्य-'जम्बूद्वीपः एक अध्ययन' (ले. प. आर्यिका ज्ञानमती जी), आ० देशभुषण म० अभिनन्दन ग्रन्थ (जैन धर्म व आचार खण्ड),
पृ० १७-१८, ३. भवेद् विदेयोराद्यं यन्मुहूर्तत्रयं निशः । स्यात् भारतैरवतयोः, तदेवान्त्यं क्षणत्रयम्, स्वाद ।
भवेद बिदेहयोः रात्रेः तदेवान्त्यं क्षणत्रयम् (लोक प्रकाश-२०/११६-११७) ।। भगवती सू. ५/१/४-६, ४. बलं विभज्य भूभागे विशाले सकलं समे (आदिपुराण-४४/१०६)। रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ (जीवा
जीवा. सू, ३/१२२) बहसमरमणिज्जे भूमिभागे (जम्बू० ५० श्वेता०, २/२०)। रयणप्पभापुढवी अंते य मज्झे य सत्वत्थ समा बाहल्लेण (जीवाजीवा० सू. ३/१/७६)।
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्स
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