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धर्मध्वजा, परम तपस्वी, बालब्रह्मचारी, सरस्वतीपुत्र, प्रखर मनस्वी आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी को युवावस्था मे पदनिक्षेप करते हुए मनुष्य भव की उपयोगिता का परिज्ञान हो गया था । इसीलिए उन्होंने जिनशासन की शरण ली -
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पारि सरणं पव्वज्जामि, अहं सरणं पव्वज्जामि, सिद्धे सरणं पव्वज्जामि, साहू केवलिपण्णत्तं धम्मं
सरणं
पव्वज्जामि, पव्वज्जामि
सरणं
जिनवाणी के अभिनव भाष्यकार आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्य
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