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उच्चकोटि का ग्रन्थ है। उसी की श्रेणी में 'मेरुमन्दर पुराणम्' ग्रन्थ है । वर्तमान जैन समाज में इस ग्रन्थ का प्रचलन अधिक हो गया है। इसमें कथावस्तु के साथ-साथ जैन सिद्धान्त की रहस्यपूर्ण बातों को तमिल जनता को उपयोगार्थ प्रदान किया गया है। इसके रचयिता 'वामनाचार्य' हैं जो तमिल प्रान्त की प्रसिद्ध नगरी 'काजीपुरम्' के त्र लोक्यनाथ मन्दिर (महावीर स्वामी का मंदिर) में रहते थे। अब यह स्थान तिरूपत्ति कुण्ड्रम' व 'जिनकांची' कहलाता है। अब भी वहां पर आचार्य का चरणचिह्न विद्यमान है। आचार्य देशभूषण महाराज ने इस ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद करके हिन्दी जगत् की जनता के सम्मुख तमिल साहित्य की महत्ता को प्रकट किया है । इस महान ऐतिहासिक कार्य को सम्पन्न करके उन्होंने जो अनूठा कार्य किया है उसके लिए तमिलनाडु जैन समाज, तमिल भाषाविद् व साहित्यकार आचार्यश्री के चिरऋणी रहेंगे। इसमें आचार्यश्री का अनन्य अनुग्रह है कि उन्होंने उधर भारत के जैन समाज को तमिल साहित्य की महत्ता ज्ञात करने हेतु महान कार्य किया है। आचार्यश्री प्रकाण्ड विद्वान्, महान तपस्वी और ज्ञानी हैं। उनकी मातृभाषा कन्नड़ होते हुए भी वे संस्कृत, हिन्दी, प्राकृत, के प्रतिभासम्पन्न महान् योगी हैं । आपने अनेक ग्रन्थों की रचना की है। कन्नड़ भाषा साहित्य को भी हिन्दी में अनुवाद करके प्रकाशित कराकर अविस्मरणीय कार्य किया है। उनके दिव्य चरणों में मैं बार-बार ममोस्तु करता हूं।
वर्तमान दिगम्बर जैन समाज में आप अग्रगण्य आचार्य हैं। आपने अनेकों विद्वानों को तैयार किया है। त्यागी, मुनि, आर्यिकाओं को दीक्षित कराकर अनगार धर्म को अक्षुण्ण बनाया है। आपके तत्वावधान व प्रतिबोध के कारण अनेकों दिगम्बर जैन मंदिरों का निर्माण होकर प्रतिष्ठा हुई है । आप पंचमकाल में पंचम गति का मार्ग बताने वाले पंचाननवत् भव्ययोगी महापुरुष हैं। मुनिधर्म-विरोधी शृगालों के लिए सिंह-पुरुष हैं। नमिल भाषा के जैन प्रन्यों को नामावलि
(अ) साहित्य अन्य :-१, पेरगत्तियम, २. तोलकाप्पियम्, ३. तिरुक्कुरल, ४. सिलप्पदिकारम्, ५. जीवक चिन्तामणि, ६. हरिविरुत्तम, ७. चूलामणि, ८.पैरुङ कथ, ६. वलयापदि, १० मेरु मन्दर पुराणं, ११. नारद चरितं, १२. शान्ति पुराणं. १३. उदयणकुमार विजयम्, १४. नागकुमार काव्यं, १५. कलिगत्तुप्परणि, १६. यशोधर काव्यम्, १७. रामकथा, १८. किलि विरुत्तम्, १९. एलिविरुत्तम, २० इलन्दिरैयन, २१. पुराण सागरम्, २२. अमिरद पदि, २३. मल्लिनाथ पुराणम्, २४. पिंगल चरित, २५. वामन चरित, २६. वर्धमानं ।
(आ) व्याकरणग्रन्थ : १. नन्नूल, २. नम्बियकप्पोरुल, ३. याप्परूंगलम, ४. याप्रुगत्मकारिक, ५. नेमिनादम, ६. अविनयम, ७. वेण्बापाट्टियल, ८. सन्दनूल, ६. इन्दिरकालियम, १०. अणिथियल, ११. वाप्पियल, १२. मौलिवरि, १३. कडिय नन्नियल, १४. कावकैप्पाडिनियम, १५. सङ्गयाप्पु, १६. सेटयुलियल, १७. नक्कीरर् अडिनूल, १८. कैक्किले सूत्तिरम, १९. नत्तत्तम, २०. तक्काणियम ।
(इ) नीति ग्रंथ : १. नालडियार, २. पलमोलिनानूरु, ३. एलादि, ४. सिरुपंचमूलम, ५. तिर्णमाले नदेबदु, ६. आचार क्कोवै, ७. अरनेरिच्चारम, ८. अरुङ्गलच्चेप्पु, ६. जीवसम्बोधन, १०. ओवै (अगयित्तल सूडि) ११. नानमणि कडिंग, १२. इन्नानार्पदु, १३. इनियवै नार्पदु, १४. तिरिकडुगम, १५. नेमिनाद सदगमं ।
(ई) तर्क ग्रन्थ : १. नीलकेशि, २. पिङ्गलकेशि, ३. अंजनकेशि, ४. तत्तुव दर्शन, ५. तत्वार्थ सूत्तक ।
(उ) संगीत ग्रन्थ : १. पेरुङ कुरुगु, २, पैरुनार, ३. सैयिट्रियम, ४, भरत सेना पदियम, ५. सयन्तम, ६. इसत्तमिल सम्युल कोव, ७. इस नुनुक्कम, ८. सिट्रिसे, ६. पैरिस।
(ऊ) प्रबन्धप्रन्य: तिरुक्कलम्बगम्, २. तिरुनन्दादि, ३. तिरुवंबावै, ४. तिरुपामाल, ५. तिरुप्पूगल, ६. आदिनार पिल्लतमिल, ७. आदिनादर उला, ५. तिरुमेट्रिसयन्दादि, ६. धर्मदेवि अन्दादि, १०. तिरुनादर कुन्द्रत्तु पत्तुपदिगम।
(ए) नाटक ग्रन्थ : १. गुणनुल, २. अगत्तियम, ३. कूत्तनूल सन्दम । (ऐ) चित्रकलाग्रन्थ : १. अवियनूल (ओ) कोष ग्रन्थ : १. चूडामणि निघन्टु, २. दिवाकरम्, ३. पिङ्गलान्द । (ओ) ज्योतिष अन्य : १. जिनेन्द्रमाल, २. उल्ल मुडयान ।
(अंः) गणित प्रस्थ : १. केट्टियर सुवडि, २. कणक्कदिकारम, ३. नल्लिनक्क वायपाडु, ४. सिरुकुलि वायपाड, ५. कोषवाय इलक्कम्, ६. पेरुक्कलवायपाडु।
उपर्युक्त सूची में अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हैं और अनेक ग्रन्थ अप्राप्य व लुप्त हैं किन्तु अन्य ग्रन्थों की व्याख्या व टीका में इन ग्रन्थों का नामोल्लेख पाया जाता है। इस विस्तृत ग्रंथ सूची से यह स्पष्ट है कि तमिलनाडु में जैन धर्म एवं साहित्य के विकास में जैनाचार्यों का विशेष सहयोग रहा है । न साहित्यानुशीलन
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