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________________ जोर दिया गया है। कर्म सिद्धान्त का जिक्र भी है। सर्वत्र वीतरागी हितोपदेशी का वर्णन अधिक मात्रा में है । वाङमय के क्षेत्र में साहित्य का स्थान पहले है, उसके बाद व्याकरण का । साहित्य व काव्य के लिए व्याकरण लिखा जाता है। इसके वर्णन व लक्षण को प्रमाणित व परिमार्जित करने के लिए ही व्याकरण की रचना की जाती है। जब 'तोलकाधियम' ई० पू० तीसरी शताब्दी की मानी जाती है तो उसके पूर्व ही साहित्य व काव्य का अस्तित्व होना चाहिये इस दृष्टि से सोनकापियम के पूर्व ही जैन साहित्य के रचना-काल को मानना चाहिये तोलकापियम के अतिरिक्त नन्नूल, पाधेर गलकारी, पाप्पे कसे वृत्ति, नेमिनाथम avat पट्टियल आदि व्याकरण ग्रन्थ भी जैन आचार्यों की कृतियां हैं। 'तिक्कुरल तमिल भाषा का एक प्राचीन नीतिग्रन्थ है। वर्तमान में भी जैने तर जनता एवं तमिलनाडु सरकार भी इस ग्रन्थ को महत्ता देती है। इसको तमिलवेद भी कहते हैं । इसके रचयिता तिरुवल्लुवर थे । इनको जैन मानने में कुछ विद्वान हिचकिचाते हैं। कुछ विद्वान तटस्थ हैं। कुछ लोग सम्पूर्ण रूप से जैन आचार्य की कृति मानने को तैयार हैं। यह कुन्दकुन्द आचार्य की कृति मानी जाती है । इसका प्रमाण प्रोफेसर ए० चक्रवर्ती ने तिरुक्कुरल ग्रन्थ की प्रस्तावना में दिया है जो भारतीय ज्ञानपीठ से सन् १९४६ में प्रकाशित हुई थी । इसमें १३३० दोहे हैं। इन दोहों को धर्म, अर्थ, काम के अन्तर्गत तीन भागों में विभाजित किया गया है। कुल १३३ अध्याम हैं, प्रत्येक अध्याय में दस-दस दोहे हैं। ग्रन्थकर्ता ने इसके पहले दोहे में आदि भगवान् की स्तुति की है। तदनन्तर लगातार दस दोहों में वीतराग अरहंत, जितेन्द्रिय, कमलविहारी, सर्वज्ञ, कृतकृत्य आदि अर्थ वाले शब्दों का प्रयोग करके मंगलाचरण किया है। इन बातों यह निविवाद सिद्ध है कि इसके रचयिता जैन आचार्य ही है। वाङ्मय के विकास और सिद्धान्त की रचना में तमिल प्रान्त के आचार्यों ने अनुपम योगदान दिया है । उन आचार्यों के नाम इस प्रकार हैं— कुन्दकुन्द, समन्तभद्र, अकलंक, जिनसेन, गुणभद्र, विद्यानन्दी, पुष्पदन्त, महावीराचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती, मल्लिसेन, वीरन, समयदिवाकरमुनि वादीति सूरि आदि। ये सभी प्रांतीय भाषा के विद्वान होते हुए भी संस्कृत और प्राकृत के अकाट्य प्रतिभाशाली थे। वादीसह सूरि ने अपनी कृति क्षत्र चूडामणि में पाण्डिय नरेश राजराजचोल का गुणगान किया है। तमिल के प्राचीन ग्रन्थ एवं अभिलेखों में आचार्यों को अडिगल, कुरवर के नाम से तथा आर्यिकाओं को कुरन्तियर नाम से अभिव्यक्त किया गया है। तमिलनाडु की विरिकन्दराओं से प्राप्त अभिलेखों में निम्नलिखित आचार्य और आर्यिकाओं के नाम उपलब्ध हैं: आचार्यों के नाम :- (१) अवनन्दि, (२) अरिष्टनेमि, (३) अष्टोपवासी, (४) भद्रबाहु, (५) चन्द्रनन्दी, (६) दयापाल, (७) धर्मदेव, (८) एलाचार्य (२) गुणकीर्ति भट्टारक, (१०) गुणसेकर, (११) गुणवीर (१२) गुणवीर कुरवडियल (१३) इलयभट्टारक, (१४) इन्द्रसेन, (१५) कनकनन्दि, (१६) कनकचन्द्र, (१७) बलदेव मायक नन्दि कनकवीर, (१८) कुरसी कनकनन्द भट्टारक, (१९) कुरती तीर्थं भट्टारक, (२०) गुरु चन्द्रकीर्ति, (२१) माघनन्दि, (२२) मलैय तुवरसर, (२३) मल्लिसेन भट्टारक, (२४) मल्लिसेन वामनाचार्य (२५) मतिसागर, (२६) मौति भट्टारक, (२३) मि कुमन, (२०) मुनि सर्वनन्दि, (२१) आचार्य श्रीपाल (३०) मापनन्दि भट्टारक, (३१) अयंगाविदि संघनम्बी (३२) नागनन्दि, (३३) नलकूट अमलनेनि भट्टारक, (३४) नाट्टिय भट्टारक, (३१) परवादि मल्लिपुष्पसेन, (३६) वामनाचार्य, (३७) पार्श्व भट्टारक, (३८) पिट्टिणि भट्टारक, (३६) गुणभद्र, (४०) पुष्पसेन वामनाचार्य, ( ४१ ) शान्तिवीर कुरकर, (४२), श्री नन्दि, (४२) श्रीमलैकुल श्रीवर्द्धमान, (४४) अच्चनन्दिअडिगल, (४५) वादिराज, (४६) वज्रनन्दि, (४७) बेलिकों यर पत्तड लिगल, (४८) विशाखाचार्य, (४६) विनयभासुर कुडवाडि, (५०) तिरुक्क रण्डिपादमूलतर, (५१) गुणसागर, (५२) भवनन्दि, (५३) वीरसेन, (५४) नेमिचन्द्र, (५५) अकलंक, (५६) अभयनन्दि, (५७) वीरनन्दि (५८) इन्द्रनन्दि, (५९) गुणभद्र मामुनि (६०) वसुदेवसिद्धान्त भट्टारक (६१) तिरुनक्कदेवर, इत्यादि । " आयिकाओं के नाम : - ( १ ) अरिष्टनेमि कुरन्तियर, (२) अन्जयार, (३) गुणं ताङि कुरतियार, ( ४ ) इलनेसुरत्तु रतिवार, (५) बुन्दगिल, (६) कनकवीर कुरन्ति (७) कुंडल कुरतियार (4) मम्मेकुरशिवार (१) मिलनूर कुरतियार (१०) जलकूर कुरलियार, (११) गरिनेमि भट्टारक स्नातक अनशन कुरतियार, (१२) पेहर कुरतियार (१३) पिन्कुरत्तियार (१४) पूर्वनन्दि कुरतियार (१५) संघ कुरतिवार (१६) तिरुवि कुरतिवाद (१०) श्री विजय कुरशियार (१०) तिरुमलैकुरति (११) तिरुप्पत्ति कुरत्ति, (२०) तिरुचारणत्तु कुरत्ति, आदि । आचार्य श्री का अनन्य अनुग्रह अब तक तमिलनाडु के जैन आचार्य एवं आर्यिकाओं के नाम व उनकी साहित्य सेवा आदि का उल्लेख किया गया है। तमिल भाषा में जो पंच महाकाव्यों का जिक्र हमने किया था उनमें "जीवक चिन्तामणि" तमिल साहित्याकाश में जगमगाता सूर्य किरणवत् १८४ आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International " For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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