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कल्पना साकार होती है। आचार्यरन की देशभूषण जी सदा से ही मुनि सुशीलकुमार के इस धर्मप्रभावक रूप को संरक्षण, आशीर्वाद एवं सहयोग देते आए हैं।
आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज ने पांचवें विश्व धर्म सम्मेलन में २४ नवम्बर १९७४ को राष्ट्र की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी को अपना विशाल ग्रन्थ 'भगवान् महावीर और उनका तत्त्व दर्शन' भेंट किया था । इस विशालकाय धर्मग्रन्थ का विमोचन दिनांक २ दिसम्बर १९७४ को तत्कालीन उपराष्ट्रपति श्री गोपालस्वरूप पाठक द्वारा किया जाना था । विमोचन समारोह से पूर्व ही तत्कालीन प्रधानमन्त्री बोमती इन्दिरा गांधी को पुस्तक की प्रथम प्रति भेंट करना यही संकेतित करता है कि धर्म अनायास ही जब-तब राजनीति को प्रेरित करता है। आचार्यरत्न श्री देवसूप जी की दृष्टि में श्रीमती इन्दिरा गांधी जैनधर्म के सांस्कृतिक मूल्यों का समुचित प्रतिनिधित्व करती थीं और भगवान् महावीर स्वामी की २५०० वीं निर्वाण जयन्ती में उन्होंने विशेष सहयोग दिया था । आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी ने इस धर्मग्रन्थ के आशीर्वचन में लिखा है - "भारत की प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गान्धी, भारत सरकार के शिक्षामन्त्री प्रो० नूर हसन, उपशिक्षा मन्त्री श्री डी० पी० यादव तथा उनके सहयोगियों को हमारा शुभाशीर्वाद है जो भगवान् महावीर स्वामी के २५०० वें निर्वाणोत्सव को सफल बनाने और भगवान् महावीर के पावन सन्देशों के लोकव्यापी प्रचार में अपना पूर्ण सहयोग दे रहे हैं तथा इस उत्सव को राष्ट्रीय उत्सव का रूप प्रदान करके भगवान् महावीर के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं।"
भगवान् महावीर स्वामी के २५०० वें परिनिर्वाण महोत्सव पर भगवान् श्री पर प्रचार-प्रसार करने के निमित्त आयोजित 'जिणधम्म संगीति' को भी आचार्य रत्न श्री किया । दिनांक २९ व ३० नवम्बर १६७४ को सर्वसेवा संघ, वर्धा की ओर से दिल्ली में यह समारोह हुआ था । इस संगीति का उद्देश्य जैन धर्म के चारों सम्प्रदायों को मान्य एक ऐसी पुस्तक तैयार करना था जो जैन एवं जैनेतर, देश-विदेश के सभी जिज्ञासुओं को जिनवाणी और जैन धर्म का परिचय दे सके । सर्वसेवा संघ की ओर से विभिन्न धर्मों पर ऐसी अन्य पुस्तकें प्रकाशित भी हुई हैं । आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी के अतिरिक्त आचार्यश्री धर्मसागर जी, आचार्यश्री विजयसमुद्रसूरि जी, आचार्यश्री तुलसी जी आदि ने भी संगीति के इस सर्वजनकल्याणकारी उद्देश्य की सफलता के लिए आशीर्वाद दिया था ।
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दिनांक ८ दिसम्बर १६७४ को जैन बालाश्रन दरियागंज के निकट वाली सड़क पर बनाये गए आकर्षक मण्डप में वयोवृद्ध तपस्वी आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज एवं दिगम्बर के आदर्श साधक, युगप्रमुख पट्टाचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज के पावन सान्निध्य में मुनि दीक्षा का भव्य आयोजन सम्पन्न हुआ। इस वैराग्यपरक दीक्षा समारोह के अवसर पर धर्मसम्राट् श्री धर्मसागर जी ने भव्य आत्माओं को मुनि दीक्षा, आर्यिका दीक्षा एवं क्षुल्लक दीक्षाएँ प्रदान को आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी ने भी इस दीक्षा समारोह में मुनि श्री विद्यानन्द जी एवं आर्यिका ज्ञानमती जी को क्रमश: 'जैन शासन प्रभावक उपाध्याय' एवं 'आर्यिकारत्न' के गौरव से अलंकृत किया । इस भव्य दीक्षा समारोह में आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी एवं युगप्रमुख पट्टाचार्य निस्पृह सन्त परम तपस्वी श्री धर्म सागर जी महाराज का महातेज देखते ही बनता था। इन दोनों युगविभूतियों का दर्शन करके श्रावक समुदाय धन्य हो उठा था। दोनों संघों के २४ दिगम्बर मुनियों के एक साथ दर्शन कर सभी को यह लग रहा था कि जैन आगमों में वर्णित चतुर्थ काल दिल्ली में साकार हो गया है। पक्षियों के कलरव, निकटवर्ती मैदानों की हरियाली पुलकित तृणों की नोकों एवं मन्द मन्द विचरण करने वाली शीतल सुखद वायु ने भी दीक्षा के इस अभूतपूर्व समारोह की श्रीवृद्धि में सहयोग दिया था। दिगम्बरत्व के सम्मान में पृथ्वी एवं आकाश के सभी जीव मुक्त कंठ से गीत गा रहे थे ।
जिनेन्द्रदेव की वाणी का अन्तर्राष्ट्रीय स्तर देशभूषण जी महाराज ने आशीर्वाद प्रदान
कलकत्ता चातुर्मास
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज महानगरी दिल्ली में लगातार तीन चातुर्मास सम्पन्न करने के पश्चात् जीवन को ज्योतिर्मय बनाने के लिए भगवान श्री पार्श्वनाथ जी के पावन चरणों में धर्माराधन के लिए उत्सुक थे। इसी भावना से उन्होंने २४ दिसम्बर १९५७ को महानगरी दिल्ली से सिद्धक्षेत्र श्री सम्मेदशिखर जी की ओर विहार किया। लगभग एक हजार किलोमीटर की इस पदयात्रा में आपने सैकड़ों जनसभाओं को सम्बोधित किया और लाखों व्यक्ति आपके सम्पर्क में आए। सिद्ध साधना के महान् केन्द्र श्री सम्मेदशिखर जी पर पहुंच कर आपको विशेष आनन्द का अनुभव हुआ । ईषत् प्राग्भार में स्थित अनन्तानन्त सिद्धों के पावन स्मरण मात्र से आचार्य श्री को दिव्य प्रेरणा एवं नई शक्ति प्राप्त हुई । श्री सम्मेदशिखर की उत्तुंग शैलराशि किसके जीवन को ज्योतित नहीं कर देती ? इस परमवन्दनीय शैलराज का कण-कण मुनिगण एवं श्रावक समाज के लिए पूजनीय है ।
कालजयी व्यक्तित्व
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