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________________ आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी आत्मप्रक्षालन एवं भावी जीवन की दिशा को निर्धारित करने के लिए सिद्ध भूमि को सम्मेदशिखर जी की शरण में आए थे। इस पावन पुण्यभूमि में शायद उन्होंने जैन धर्म एवं दिगम्बरत्व की प्रतिष्ठा करने का महान् स्वप्न संजोया होगा। श्री सम्मेदशिखर जी एवं निकटवर्ती तीर्थक्षेत्रों के दर्शन करते हुए आचार्यश्री आरा (बिहार) में आ गए। आरा अपनी सांस्कृतिक सम्पदा एवं लोककल्याण की प्रवृत्तियों के कारण आचार्यश्री को विशेष रूप से प्रिय रहा है । इन्हीं दिनों आचार्यश्री को दिगम्बरत्व की प्रतिष्ठा में व्यवधान स्वरूप आयी एक चुनौती को स्वीकार करना पड़ा। पश्चिमी बंगाल की राजधानी कलकत्ता में विगत ५०० वर्षों में किसी दिगम्बर साधु का विचरण नहीं हुआ था। इसी कारण कलकत्ते का सम्पन्न जैन समाज इच्छा होते हुए भी बंगाली बहुल क्षेत्र में दिगम्बर मुनि को चातुर्मास के लिए आमन्त्रित करते हुए भयभीत होता था। आरा प्रवास में आचार्यश्री को इस वस्तुस्थिति का पता लग गया । श्रावकों की एक बैठक में किसी सज्जन ने अपनी आन्तरिक व्यथा को प्रगट करते हुए कहा कि क्या पंचम काल में कोई ऐसा दिगम्बर जैन मुनि नहीं है जो कलकत्ता की ओर विहार कर सके ? इस चुनौती को दृष्टिगत करते हुए आचार्यश्री ने आरा से कलकत्ता की ओर विहार करने का संकल्प कर लिया । परम तपस्वी आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी के कलकत्ता की ओर प्रस्थान के समाचार से बंगाल एवं बिहार के जैन समुदाय में हर्ष की लहर दौड़ गई । कलकत्ते के जैन समाज ने इस अवसर पर बुद्धिमत्ता से बंगाल राज्य सरकार, कलकता के स्थानीय प्रशासन एवं बुद्धिजीवियों से सम्पर्क स्थापित कर जैन धर्म में दिगम्बरत्न की पृष्ठभूमि से उन्हें परिचित करा दिया जिससे किसी प्रकार की भ्रान्ति न रहे और अनावश्यक उपद्रव न हो । पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार, कलकत्ता महानगर के स्थानीय प्रशासन एवं बुद्धिजीवियों ने आचार्यश्री के कलकत्ता आगमन पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए जनता के नाम एक विज्ञप्ति प्रकाशित की दिनांक ४-५-१६५८ को कलकत्ता में प्रसारित प्रचारित की गई इस विज्ञप्ति का अविकल पाठ इस प्रकार है २२ कलकत्ता के विशिष्ट नागरिकों द्वारा दिगम्बर जैनाचार्य श्री देशभूषण जी महाराज का Jain Education International ससंघ कलकत्ता आगमन पर हार्दिक स्वागत आज का अद्भुत युग अमर जीवन देनेवाले आध्यात्मिक विचारों पर यम दण्ड का प्रहार कर रहा है। पाशविक प्रवृत्तियों तथा आसुरी भावनाओं का विश्वव्यापी प्रसार हो रहा है। लोकरुचि भी भोगाकांक्षी, विषयलोलुप तथा द्रव्य की दासी बन गयी है । जगत् भौतिक वस्तुओं का इतना अधिक दास बन गया है कि उनकी आराधना के लिए अपनी आत्मा का भी पूर्णतया हनन करने के लिए सदा तत्पर रहता है । स्थायी पतन के पथ में प्रवृत्त करनेवाली सामग्री अमृततुल्य लगती है । ऐसे वातावरण में फँसा हुआ व्यक्ति कैसे शाश्वत शान्ति, अमर जीवन और आनन्द को प्राप्त कर सकता है ? युगान्तर उत्पन्न करने की क्षमता असाधारण आत्माओं में ही पायी जाती है । ऐसी परिस्थिति में जबकि सर्वत्र असंयम के कीटाणु व्याप्त हों और संयम की साधना मोही मानव को यम-वाणी सी लगती हो, पवित्रता के निकुंज, श्रेष्ठ योगी का जीवन व्यतीत करनेवाले, महामना, बालब्रह्मचारी, परम विद्वान्, समस्त भारत में पैदल विहार कर अहिंसा के प्रकाश को फैलाने वाले, अष्टम आश्चर्य रूप 'भूवलय' ग्रन्थ के अनुवादकर्ता नम्म दिगम्बर जैनाचार्य श्री देशभूषणजी महाराज एवं उनके संघ का इस कलकत्ता महानगरी में पदार्पण का हम हार्दिक अभिनन्दन करते हैं । आशा है कि आपके सदुपदेश हम जैसे सांसारिक कार्यों में रत मनुष्यों के जीवन में अहिंसा, सत्य, अमीर्य, ब्रह्मचर्यं एवं अपरिग्रह जागृत कर हमें अपना आत्मकल्याण करने को प्रेरित करेंगे । हम आपके इस परम पवित्र सम्पर्क से अपने जीवन को पावन कर सकेंगे- ऐसा हमें विश्वास है । आचार्यरन श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्यः For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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