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________________ भगवान महावीर स्वामी के २५०० वें परिनिर्वाण महोत्सव की राष्ट्रीय समिति तथा महासमिति ने १७ नवम्बर १६७४ को मध्याह्न में २ बजे रामलीला मैदान के ऐतिहासिक प्रांगण में एक विशाल जनसभा का आयोजन किया। "सभास्थल पर निर्मित तीन भव्य मवों में एक पर विराजमान थे श्रद्वेष आचार्य श्री विजयसमुद्र सुरीश्वर जी महाराज, आचार्य श्री देशभूषण जी महाराज, आचार्य श्री धर्मसागर जी महाराज, आचार्यश्री तुलसी जी महाराज, मुनि श्री सुशील कुमार जी महाराज, मुनि श्री विद्यानन्द जी महाराज, मुनि श्री नथमल जी महाराज, मुनि श्री जनकविजय जी महाराज तथा अन्य विद्वान मुनिगण । दूसरे मंच पर विराजमान थी हमारी प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी, शिक्षा मंत्री श्री नुरुल हसन, महासमिति के अध्यक्ष श्री कस्तूरभाई लालभाई, कार्याध्यक्ष साहू श्री शान्तिप्रसाद जैन, दिल्ली के मुख्य कार्यकारी पार्षद श्री राधारमण तथा अन्य विशिष्ट महानुभाव । तीसरे मंच पर विराजमान थीं साध्वी श्री विचक्षणश्री जी, साध्वी श्री कनकप्रभा जी, साध्वी श्री मृगावतीजी, आर्यिका श्री ज्ञानमती जी, साध्वी श्री प्रीतिसुधा जी एवं अन्य विदूषी साध्वियां । तीनों भव्य मंचों के सामने था विशाल जनसमुदाय । यह जनसमुदाय केवल दिल्ली का ही नहीं था अपितु सम्पूर्ण देश का प्रतिनिधित्व कर रहा था और सारा सभास्थल भगवान् महावीर की जय-जयकार से गूज रहा था। प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि धर्म में गहरी आस्था भारतीय जनता की सबसे बड़ी पूजी एवं शक्ति है । आधुनिकता की चमक-दमक में हमें अपनी ताकत को नहीं खोना है । धर्म में आस्था के कारण भारतीय जनता ने बड़ी-बड़ी कठिनाइयों का सफलता से मुकाबला किया है । धर्म के मामलों में हमारी मखौल उड़ाने वाले पश्चिम के कुछ देश अब उस सत्य को टटोलने की कोशिश कर रहे हैं। पश्चिम अब यह मानने लगा है कि जीवन में असली शान्ति भौतिकता की अन्धी होड़ में नहीं, अपितु सत्य, अहिंसा, सहिष्णुता और अपरिग्रह जैसे मूल्यों में आस्था से ही सम्भव है। जीवन में असली शान्ति के लिए वे भारत की ओर देखते हैं। प्रधानमन्त्री ने भगवान् महावीर को 'महाविजेता' की संज्ञा देते हुए कहा कि भगवान् महावीर ने सिखाया कि अपने से लड़ो, दूसरों से नहीं। अपने अन्तस को टटोलो, दूसरों का नहीं। आत्मविजय प्राप्त करें-द्वेष से नहीं, दोस्ती से; हिंसा से नहीं, अहिंसा से । दूसरे धर्म भी उतने ही सत्य हैं जितना कि अपना । भगवान् महावीर ने हमें यही सिखाया और भारतीय सभ्यता की हमेशा से यही सबसे बड़ी देन रही-सहना यानी सहिष्णुता । भगवान् महावीर के शाश्वत और सार्वकालिक सन्देश-अपरिग्रह को जीवन में उतारने की जोरदार अपील करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जरूरत से ज्यादा संचय ही झगड़े की मूल जड़ है। उन्होंने कहा कि कठिनाइयों के इस दौर में हम हौसला न खोए और भगवान् महावीर के आदर्शों पर चलकर देश को आगे बढ़ाने में मदद करें। उन्होंने विशेषतया युवकों से कहा कि वे भगवान महावीर के २५०० वें परिनिर्वाण वर्ष में, जबकि सम्पूर्ण विश्व में उनकी स्मृति में समारोह आयोजित किए जा रहे हैं, ऐसी हिसक कार्यवाहियों से बचें जिससे देश की एकता और हमारे बुनियादी ढांचे पर विपरीत प्रभाव न पड़े।" इस अवसर पर आचार्य श्री विजय समुद्र सूरीश्वर जी महाराज, आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज, आचार्यश्री तुलसी जी महाराज, आचार्यश्री धर्मसागर जी महाराज ने भगवान् महावीर के जीवन एवं उपदेशों पर प्रकाश डालते हुए उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अपित की। इस विराट् धर्मसभा के स्वरूप को देखकर ऐसा प्रतीत होता था कि पावापुर का परमपावन जल मन्दिर आज भी अपनी असंख्य प्रकाश रश्मियों से सन्तप्त मानवता को दिशाबोध दे रहा है। आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज, आचार्यश्री तुलसी जी महाराज, आचार्यश्री धर्मसागर जी महाराज, आचार्यश्री विजय समुद्र सूरीश्वर जी महाराज, आचार्यश्री आनन्द ऋषि जी महाराज और उनकी परम्परा के संघस्थ साधुओं एवं साध्वियों के प्रयास से भगवान् महावीर स्वामी के परिनिर्वाण महोत्सव के समय यह अनुभव होने लगा था कि सम्पूर्ण भारतवर्ष इन दो दिनों में महावीरमय हो गया है । काश ! यह चिरस्मरणीय क्षण सदा-सदा के लिए स्थायी रूप ले लेता तो विश्व में शान्ति एवं अहिंसा के अखण्ड साम्राज्य का स्वतः ही निर्माण हो जाता । आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज एक उदार एवं प्रगतिशील सन्त हैं। विश्व के सभी धर्मों के प्रति उनके मन में समादर का भाव है। उनकी मान्यता है कि सभी धर्मों के प्रवर्तकों ने संसारी प्राणियों के कल्याण के लिए मंगल उपदेश दिया है। ऐसे सभी महापुरुषों के चरणचिह्नों का अनुसरण करते हुए मनुष्य जाति को सुख एवं शान्ति की अनुभूति हो सकती है। आपके उपदेशों में इन सभी धर्मों के महापुरुषों की जीवन गाथा और प्रेरक वाणी सुलभ होती है। इसीलिए आचार्यश्री विभिन्न धर्मों के सन्त समागमों में भी सहर्ष सम्मिलित होते रहे हैं । मुनि श्री सुशीलकुमार जी के अनुरोध पर आप नई दिल्ली में आयोजित पांचवें विश्व धर्म सम्मेलन में विशेष रूप से सम्मिलित हुए। मुनि श्री सुशीलकुमार जी की मान्यता है कि मानव-जाति को आध्यात्मिक धरातल पर ही जोड़ा जा सकता है। उनके मतानुसार राजनीति जब धर्म से प्रेरणा लेती है और धर्म जब राजनीति को सहारा देता है, तभी कल्याणकारी राज्य को आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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