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पूज्य आचार्यश्री की आस्था विश्व-मानवता में है। इसलिए उनके उपदेश धर्मविशेष के अनुयायियों के लिए न होकर समग्र मानवता के लिए होते हैं। उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषका का दिगम्बर साधक के रूप में प्रत्यक्ष अनुभव किया है। युद्धजन्य उन्माद एवं उसके परिणामों की भयंकरता से वे भलीभांति परिचित हैं। उनका चिन्तन देश-काल की सीमाओं से परे है किन्तु किसी भी युद्धोन्मादी समर्थ राष्ट्र या उससे उत्प्रेरित हिंसक आक्रमण का वे खुलकर विरोध करते हैं। उनका विरोध इतना रचनात्मक होता है कि वह राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान में अपना साम्प्रदायिक हित भी गौण कर देते हैं। उन्होंने यह अनुभव किया कि दिगम्बर जैन धर्मानुयायियों को परमपावन सिद्धक्षेत्र श्री सम्मेदशिखर जी पर पर्याप्त सुविधाएं एवं औचित्यपूर्ण पूजा उपासना का अधिकार नहीं है। ऐसी स्थिति में आप अध्यात्मयोगी का परिवेश ग्रहण कर शान्त नहीं बैठे रहे, वरन् उनकी हुंकार एवं सिंहगर्जना से दिगम्बर समाज संगठित हो गया और उनके अनुभवी मार्गदर्शन में दिगम्बर जैन समाज पहली बार संगठित होकर अहिंसक आन्दोलनकारी के रूप में लाखों की संख्या में प्रधानमन्त्री निवास की ओर चल दिया। उन्होंने जब यह अनुभव किया कि राष्ट्र पर विदेशी आक्रमण के बादल मंडरा रहे हैं तो उन्होंने अपने पूर्वाग्रहों को छोड़कर राष्ट्रीय विपत्ति में शासन से तादात्म्य स्थापित कर लिया। उन्होंने अपने तपोबल से राष्ट्रीय सुरक्षा में जो योगदान किया था वह इतिहास के पन्नों में साधु संस्था के योगदान को अजर-अमर कर गया है। देश के स्वर्णिम इतिहास में इसे एक सुखद संयोग ही मानना चाहिए कि एक ओर तो राजनीति के क्षेत्र में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री लालबहादुर शास्त्री अपने मनोबल और शस्त्र-बल की पृष्ठभूमि में देश की सुरक्षा के लिये आक्रामक की चुनौती का मुंहतोड़ प्रत्युत्तर दे रहे थे और दूसरी ओर आचार्यश्री देशभूषण जी अपनी धर्मसभाओं में देश की अस्मिता की रक्षा के लिए जैन शूरवीरों सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य, सम्राट् खारवेल, सेनापति चामुंडराय, अप्रतिम दानी भामाशाह आदि के चरित्र-गौरव का पुन:-पुनः उल्लेख करके समाज को जागृत कर राष्ट्रीय सुरक्षा में योगदान के लिए प्रेरित कर रहे थे। २८ नवम्बर १६६५ को आचार्यश्री की जन्म जयन्ती में युद्ध
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भूतपूर्व प्रधानमन्त्री लोकनायक श्री लालबहादुर शास्त्री को अध्यात्म-पुरुष आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी द्वारा आशीर्वाद देते समय
लिए गए चित्र की अनुकृति
आचाचरत्न श्री वेशभूषण जी महाराज अभिनन्दन अन्य
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