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बालि आदि) के जैन धर्म में दीक्षा लेने का वर्णन किया गया है। जैन धर्म के अनुसार सांसारिक प्रलोभनों से विरक्त होने के लिए कतिपय कारणों का उपस्थित होना आवश्यक है। दशरथ की विरक्ति के लिए कंचुकी की वृद्धावस्था', वेदवती की विरक्ति के लिए स्वयम्भू (भावी रावण) द्वारा उसका अपमान', सीता की विरक्ति के लिए सीता-त्याग, राम की विरक्ति के लिए लक्ष्मण की मृत्यु को कारण रूप में प्रस्तुत किया गया है। हिंसा-प्रतिपादित कार्यों, कामभोग की तृष्णा के कारण लक्ष्मण (नारायण) तथा रावण (प्रतिनारायण) की दीक्षा का उल्लेख ग्रन्थ में नहीं है। इन्हें कवि ने मृत्यु द्वारा नरक की प्राप्ति कराई है। जैन ग्रन्थों-पउमचरियम् (जैन रामायण) में मेघनाद, कुम्भकर्ण आदि पात्रों की वाल्मीकीय रामायण में लिखित वर्णन के समान मृत्यु न कराकर उन्हें बन्दी बनाया गया है, जो बाद में बन्धन से मुक्त होकर जैन धर्म में दीक्षा ले लेते हैं। दीक्षा को ही जीवन का आदर्श माना गया है। यही कारण है कि पउमचरियम में हनुमान के द्वारा सीता के पास सन्देश भेजते समय राम अन्तकाल में सांसारिक प्रलोभनों से विरक्त होकर जैन धर्म में दीक्षा लेने की शिक्षा देते हैं ।
आनन्द रामायण में जीवन के अन्त में साधारण पात्रों (कुम्भकर्ण, मेघनाद, रावण, दशरथ, बालि आदि) की मृत्यु तथा दैवी पात्रों (राम, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, सीता, हनुमान आदि) के दैव रूप धारण करने का उल्लेख है।
भारतीय संस्कृति ब्राह्मण (वैदिक) तथा श्रमण दोनों प्रकार की संस्कृतियों से सम्मिश्रित है। वैदिक अर्थात् ब्राह्मण संस्कृति में कर्मकाण्ड एवं सहिष्णुता की प्रवृत्ति है लेकिन श्रमण संस्कृति अर्थात् मुनि संस्कृति में अहिंसा, निरामिषता तथा विचार-सहिष्णुता का प्राधान्य है। वैदिक संस्कृति में याज्ञिक कर्मकाण्ड द्वारा विभिन्न देवताओं को प्रसन्न करने तथा उनसे सांसारिक याचना करने के विधान पाये जाते हैं । याचना करना ब्राह्मणों का धर्म है अतः यह परम्परामूलक ब्राह्मण संस्कृति है। श्रमण संस्कृति में श्रमण शब्द की व्याख्या में ही इसका आदर्श सन्निहित है : जो श्रम करता है, तपस्या करता है, पुरुषार्थ पर विश्वास करता है वह श्रमण कहलाता है। अपने पुरुषार्थ पर विश्वास करने वाले तथा पुरुषार्थ द्वारा आत्म-सिद्धि करने वाले क्षत्रिय होते हैं। अत: श्रमण संस्कृति पुरुषार्थमूलक श्रमण संस्कृति है। वैदिक एवं श्रमण संस्कृति के वैभिन्न्य के कारण वाल्मीकीय रामायण में ब्राह्मणों, ऋषियों को प्राधान्य दिया गया है लेकिन जैन ग्रन्थों-पउमचरियम, जैन-रामायण तथा उत्तर पुराण में श्रमणों को प्राधान्य दिया गया है। वाल्मीकि रामायण में अहल्या तथा इन्द्र गौतम ऋषि द्वारा शापग्रस्त होते हैं। लेकिन पउमरियम् एवम् जैन रामायण में इन्द्र श्रमण रूप में स्थित नन्दिमाली को बांधने के कारण रावण द्वारा पराजित होते हैं।" इसी प्रकार वाल्मीकीय रामायण में सगर के पुत्र कपिल मुनि की क्रोधाग्नि' से भस्म होते हैं। जबकि जैन ग्रन्थ पउमरियम् एवं जैन रामायण में नागेन्द्र की क्रोधाग्नि से। वाल्मीकीय रामायण में राजा दण्डक भार्गव ऋषि की पुत्री से बलात्कार करने के कारण भार्गव ऋषि द्वारा शाप ग्रस्त होते हैं । १४ जैन ग्रन्थों-पउमचरियम् (जैन रामायण) में दण्डक तथा जटायु की अभिन्नता का प्रतिपादन किया गया है, जो श्रमणों को यन्त्रों में पेर कर अनादर करने के कारण उनका (श्रमणों का) कोप भाजन बनता है।
जैन धर्म में लोग केवल श्रमणों का सम्मान ही नहीं करते थे वरन् उनके पास लिए गए व्रत का आजीवन पालन करते थे। वाल्मीकि रामायण में रावण रम्भा के शाप (न चाहने वाली स्त्री के साथ रमण करने से उसके सात टुकड़े हो जायेंगे) के कारण सीता के साथ रमण नहीं करता ६ लेकिन जैन ग्रन्थ पउमचरियम् तथा जैन रामायण में रावण अनन्तवीर्य नामक मुनि के पास न चाहने वाली स्त्री के साथ रमण
१. पउमचरियम्, पर्व २६; त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित पृ० २०५-०७ २. पउमचरियम्, पर्व १०३ ३. पउमचरियम्, पर्व ११०-१५ ४. पउमचरियम्, पर्व ११४, त्रिषष्टि शलाकापुरुषचरित; पृ० ३५०, उत्तरपुराण, पर्व ६८ ५. वही, पर्व ६१, वही पृष्ठ २६७-६६ ६. वही, पर्व ४६/३२-३४ ७. आनन्दरामायण, सारकाण्ड, सर्ग,८,११.. ८. वही, पूर्णकाण्ड, सर्ग ६ ९. जैन साहित्य का इतिहास, भाग १, पृ० ५,६, १०. आनन्दरामायण, सारकाण्ड, ३/१६-२१ ११. पउमरियम, पर्व १३; त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पृष्ठ १६०-६१ १२. वाल्मीकीय रामायण, बालकाण्ड, सर्ग ३८-४४ १३. पउमरियम्, ५/१७२-७३ १४. वाल्मीकीय रामायण, उत्तरकाण्ड, सर्ग ७३-८१ १५. पउमचरियम्, पर्व ४१ १६. वा०रा०, उत्तरकाण्ड, सर्ग २१
आचार्यरत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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