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________________ न करने का व्रत लेता है, तथा व्रत के पालन के लिए उपर्युक्त अनिष्ट कार्य नहीं करता। ___ वाल्मीकीय रामायण में इष्टसिद्धि के लिए हवनादि का आश्रय लिया गया है, लेकिन जैन ग्रन्थों पउमचरियम् (जैन रामायण), उत्तर पुराण में अवलोकना, आकाशगामिनी, बहुरूपिणी आदि विद्याओं की सिद्धि का आश्रय लिया गया है। वाल्मीकि रामायण में इन्द्रजित् वध के उपरान्त रावण विजय-निमित्त हवन करने लगा है जबकि जैन ग्रन्थों पउमचरियम् , उत्तरपुराण में वह जैन तीर्थंकर के पास बहुरूपिणी विद्या सिद्ध करने जाता है। इसी प्रकार सीताहरण के लिए रावण अवलोकना विद्या की सहायता लेता है। विद्या सिद्धि में उपस्थित हुआ विघ्न महान् अनिष्ट का कारण बनता था इसलिए लोग विद्या-सिद्धि के लिए आत्म-संयम रखते थे तथा सिद्ध विद्या की रक्षा के लिए प्रतिक्षण तत्पर रहते थे। काव्यों का प्रमुख पात्र रावण आकाशगामिनी विद्या के नष्ट होने के भय से सीता के पास (प्रेम-विषयक प्रस्ताव रखने) नहीं आता । आनन्दरामायण वाल्मीकीय रामायण की तरह ही ब्राह्मण संस्कृति-प्रधान है इसलिए उपयुक्त कथाप्रसंगों, (इन्द्र तथा अहल्या का शाप, सगर-पुत्रों की मृत्यु, दण्डक को भार्गव ऋषि द्वारा शाप, इष्ट-सिद्धि के लिए हवन आदि) में वाल्मीकीय रामायण का ही आनन्द रामायण में अनुकरण किया गया है। वाल्मीकीय रामायण में राम, लक्ष्मण आदि को एकपत्नीव्रती तथा हनुमान को ब्रह्मचारी वणित किया गया है, जबकि जैन ग्रन्यों में तीर्थकर, चक्रवर्ती, बलदेव, वासुदेव, प्रतिवासुदेव आदि त्रिषष्टि महापुरुषों तथा विद्याधरों का चरित अधिकांशत: वणित होने के कारण उनके बहुपत्नीत्व का वर्णन किया गया है क्योंकि अधिक पत्नियां रखना उनके धन, सम्पत्ति, यश एवं सामाजिक गौरव का प्रतीक समझा जाता था। राजा-महाराजाओं के बहुविवाह तत्कालीन सुदृढ़ता के महत्त्वपूर्ण साधन बने हुए थे। जैन ग्रन्थ पउमचरियम्, जैन रामायण, उत्तरपुराण में राम की आठ हजार, लक्ष्मण की सोलह हजार तथा हनुमान की एक सहस्र पत्नियों का उल्लेख है। हनुमान की पत्नियों में वरुण की कन्या सत्यवती, चन्द्रनखा की पुत्री अनंगकुसुमा, नलनंदिनी, हरिमालिनी, सुग्रीव की पुत्री पद्मराजा आदि प्रधान हैं । रावण, जो लक्ष्मण (नारायण) के शत्रु अर्थात् प्रतिनारायण हैं, वे भी छः हजार से अधिक पत्नियों से युक्त वणित किए गए हैं। आनन्द रामायण में यद्यपि राम-लक्ष्मण को एकपत्नी-व्रती तथा हनुमान को ब्रह्मचारी वर्णित किया गया है, लेकिन राम के पास अनेक स्त्रियों का आकर काम-क्रीड़ा का प्रस्ताव रखना स्थल-स्थल पर वर्णित है। राम भी उन स्त्रियों से विवाह न करके कृष्णावतार में क्रीडा का आश्वासन दे देते हैं। उक्त प्रसंग में सामाजिक दृष्टि से राम का एकपत्नी-व्रत रूप आदर्श कतिपय शिथिल दृष्टिगत होता है लेकिन उक्त ग्रंथ में राम साधारण पुरुष न होकर विष्णु हैं, सीता लक्ष्मी है, संसार के समस्त पुरुष राम के अंश हैं तथा स्त्रियां सीता का अंश हैं।" राम (विष्णु) द्वारा उन स्त्रियों के साथ क्रीड़ा करना या उन्हें स्वीकार करने का आश्वासन देना उनके आंशिक रूप का उनमें समावेश हो जाना है। सामाजिक जीवन का वर्णन करते हुए जैन ग्रंथों तथा आनन्दरामायण में कथा के स्वरूप को परिवर्तित कर दिया गया है। सीताहरण को वाल्मीकीय रामायण में स्त्री (शूर्पणखा) द्वारा पर-पुरुष (राम-लक्ष्मण) के प्रति आसक्ति रूप अनैतिक कार्यों के प्रभाववश वर्णित किया है। लेकिन जैन ग्रंथों पउमचरियम् एवं जैन रामायण में (लक्ष्मण द्वारा शूर्पणखा के पुत्र शम्बूक के वध द्वारा) इसे सामाजिक परिवेश प्रदान किया गया है। आनन्द रामायण में सीता-हरण को सामाजिक तथा धार्मिक दोनों परिवेश प्रदान किए गए हैं। सामाजिक परिवेश के सन्दर्भ में १ पउमचरियम्, पर्व १४/५१३ २. वाल्मीकि रामायण, युद्धकाण्ड, सर्ग ८२ ३. पउमरियम्, पर्व ६६-६८; उत्तरपुराण, ६८/५१६-२६ ४. पउमरियम्, पर्व ४४, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, १०२४२.४५ ५. (क) पउमरियम्, पर्व १४/१५३, ४४/४५, ४६/३१-३२ : (ख) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पृ० २४६-७२ (ग) उत्तरपुराण, ६८/२१३ ६. पउमचग्यिम्, पर्व ३३-४२, उत्तरपुराण, पर्व ६८ ७. (क) वही, पर्व १६. पर्व ४२; (ख) विषष्टिशलाकापुरुषचरित, पृष्ठ २१७-२६ ८. पउमचरियम्, पर्व ८ ६. आनन्दरामायण, राज्यकाण्ड, सर्ग ४,११और १२ १०. 'पौरुषम् दृश्यते यच्च तच्च सर्वम् मांशजम् ।' आ०रा०, ७/१६/१२६ ११. पदव विश्वे स्त्रीरूपं दृश्यते तत्तावशंजम् । आ०रा० ७/18/१२८ १२. वा०रा० अरण्यकाण्ड, सर्ग १७, १८ १३. पउमरियम् पर्व ४३, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, पृ०२४०-४२ १४. धार्मिक : रावण द्वारा राम के हाथ से मरकर मोक्ष प्राप्त करने का प्रयास सीताहरण है। जैन साहित्यानुशीलन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012045
Book TitleDeshbhushanji Aacharya Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorR C Gupta
PublisherDeshbhushanji Maharaj Trust
Publication Year1987
Total Pages1766
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size56 MB
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