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वनवास-आदि प्रसंगों में भी इनका सम्मान वाल्मीकि रामायण के उल्लेख के समान साधारण पुरुषवत् न करके शलाकापुरुषवत् किया गया है तथा इनके निवास के लिए यक्षाधिप द्वारा भवन का निर्माण भी किया गया है।'
उक्त ग्रन्थों में बलदेव तथा नारायण के सम्बन्ध की तरह ही राम को लक्ष्मण का बड़ा भाई माना गया है तथा नारायण-प्रतिनारायण की तरह ही लक्ष्मण व रावण को एक-दूसरे का शत्रु माना गया है। काव्य के अन्त में जहां वाल्मीकि रामायण में राम द्वारा गवण का वध होता है वहां उक्त ग्रन्थों में लक्ष्मण द्वारा रावण का वध होता है। बालिका वध भी ग्रन्थ में लक्ष्मण द्वारा ही कराया गया है।'
ब्राह्मण धर्म-प्रधान होने पर भी वाल्मीकि रामायण से परवर्ती होने के कारण आनन्द रामायण में ब्रह्मा, विष्णु, महेश, शक्ति तथा गणेश को प्रधान देव माना गया है तथा अवतारवाद का प्रचलन होने के कारण राम को विष्णु का पूर्ण अवतार माना गया है। आनन्दरामायण में जन्म के समय राम विष्णु के रूप में, लक्ष्मण शेषनाग के रूप में, भरत शंख के रूप में तथा शत्रुघ्न चक्र के रूप में प्रकट होते हैं, तथा माता कौशल्या द्वारा प्रार्थना करने पर बालभाव धारण करते हैं। काव्य के अन्य प्रसंग यथा विष्णु-रूप राम के चरण-स्पर्श से अहल्या का मूर्त रूप धारण करना, राम द्वारा किए गए शम्बूक-वध से अकाल मृत्यु को प्राप्त ब्राह्मण पुत्र का जीवित हो जाना, (वनवास के लिए) नारद द्वारा वन गमन की सूचना देना,दण्डकारण्य में ऋषियों द्वारा उनकी उपासना, वन से प्रत्यागमन के समय अनेक रूप धारण कर प्रजा से मिलना, अनेक रूप धारण कर वाल्मीकि तथा विश्वामित्र के यज्ञ में एक साथ जाना" उनके विष्णु रूप को प्रकट करते हैं। काव्य में कुछ ऐसे प्रसंग भी हैं जो लक्ष्मण के शेषनाग-रूप को प्रकट करते हैं । यथा बालि-बध के प्रसंग में राम की बल परीक्षा करते हुए सर्प के ऊपर उगे हए सात ताल वक्षों को काटने में शेषावतारी लक्ष्मण के अंगूठे को दबाकर सर्प को सीधा करना,१२ तथा मेघनाद-वध के बाद उसकी (मेघनाद की) भजा का पृथ्वी पर यह लिखना कि शेष के हाथ से मरकर मैंने मुक्ति पाई है, लक्ष्मण के शेषनाग रूप को प्रकट करते हैं ।
राम-लक्ष्मण के अतिरिक्त अन्य पात्रों यथा सीता को शक्ति का प्रतीक तथा लक्ष्मी का अवतार" (राजा पद्माक्ष लक्ष्मी को पुत्री के रूप में प्राप्त करने के लिए तप करते हैं तथा पद्मा (सीता) के रूप में लक्ष्मी को प्राप्त करते हैं) तथा हनुमान को ग्यारहवां रुद्रावतार माना गया है।५ लक्ष्मी का अवतार होने के कारण सीताहरण तथा त्याग के समय वास्तविक सीता-हरण या त्याग नहीं होता अपितु तामसी सीता का हरण तथा तमोगुणमयी एवं रजोगुणमयी सीता का त्याग होता है और सात्त्विक सीता राम के वामांग में विलीन हो जाती है। काव्य के प्रसंग यथा सीता द्वारा शतस्कन्ध रावण एवं मूलकासुर के वध में सीता को शक्ति (चण्डी) का प्रतीक माना गया है।८ लक्ष्मी का अवतार होने के कारण आनन्द रामायण में रावण द्वारा सीता के समक्ष काटे गये राम के मायामय शीर्ष की सूचना ब्रह्मा द्वारा सीता को पहले दे दी जाती है। जबकि वाल्मीकि रामायण में उक्त घटना के बाद सरमा द्वारा सीता से रहस्य प्रकट किया जाता है। रुद्र-अवतार होने के कारण लंका दहन के समय राक्षसों द्वारा पूर्ण बल प्रयोग करने पर भी हनुमान की पूंछ को काटने में असमर्थ होना तथा कठिनाई से जला पाना,२१
१. पउमचरिय, ३५,२२-२६ २. (क) वही, पर्व ७३; (ख) उत्तरपुराण, ६८/६२७-३०; (ग) जैन रामायण में वणित हेमचन्द्र कृत विषष्टिशलाकापुरूषचरित, पृ० २६४-६६ ३. गुणभद्र कृत उत्तरपुराण ६८/४४०-४६३ ४. आनन्दरामायण, १/२/४ ५. वही, १/२/५ ६. वही, १//३/२१ ७. वही, ७/१०/१०३-२० ८. वही, १/६/१.३ है. वही, १/७/१६-२३ १०. वही, १/१२/८४ ११. वही, राज्यकाण्ड, २१/४३-७६ १२. वही, सारकाण्ड, ८३५-३६ १३. वही, सारकाण्ड, ११/२०७-८ १४. वही, सारकाण्ड, ३/११८-६६ १५. वही, सारकाण्ड, सगं ११, १/१२/१४७-४६ राज्यकाण्ड सर्ग, १३, १६ १६. वही, जन्मकाण्ड, ३/१७; १/७/६७-६८ १७. वामांगे मे सत्त्वरूपा । आनन्दरामायण, १/७/६८ १८. वही, राज्यकाण्ड, सर्ग ६ १६. वही, सारकाण्ड, ११/२२१ २०. वाल्मीकीय रामायण, युद्धकाण्ड २१. आनन्दरामायण, १/८ १७८-६८
आचार्य रत्न श्री देशभूषण जी महाराज अभिनन्दन ग्रन्थ
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