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आचार्य रामचन्द्र-गुणचन्द्र एवं उनका नाट्यदर्पण
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.................... . ..... ...... गई है। पुन: रूपक के प्रथम भेद नाटक का स्वरूप, नायक के चार भेद, वृत्त (चरित) के सूच्य, प्रयोज्य, अम्यूह्य (कल्पनीय) और उपेक्षणीय नामक चार भेद तथा कुल अन्य भेदों के साथ काव्य में चरित निबन्धन विषयक शिक्षाओं का विवेचन किया गया है । तत्पश्चात् अंक-स्वरूप, उसमें आदर्शनीय तत्व, विषकम्भ, प्रवेशक, अंकास्य, चूलिका और अंकावतार नामक पाँच अर्थोपक्षेपक, बीज, पताका, प्रकरी, बिन्दु और कार्य नामक पाँच फल-हेतु ; आरम्भ, प्रयत्न, प्राप्त्याशा, नियताप्ति और फलागम नाम पांच अवस्थाएँ ; मुख, प्रतिमुख, गर्भ, विमर्श और निर्वहण नामक पाँच सन्धियाँ एवं उनके कुल ६५ (१२+१३+१३+१३+१४=६५) भेदों का सांगोपांग निरूपण किया है ।
द्वितीय विवेक में नाटक के अतिरिक्त प्रकरण, नाटिका, प्रकरणी, व्यायोग, समवकार, भाण, प्रहसन, डिम, उसृष्टिकांक, ईहामृग, और वीथि नामक शेष ११ रूपकों का लक्षणोदाहरण सहित विस्तृत विवेचन किया गया है। पुन: वीथि के १३ अंगों का भी सलक्षणोदाहरण विषय प्रतिपादन किया गया है।
तृतीय विवेक में सर्वप्रथम भारती, सात्त्वती, कौशिकी और आरभटी नामक चार वृत्तियों का विवेचन किया किया गया है। पुन: रस-स्वरूप, उसके भेद, काव्य में रस का सन्निवेश, विरुद्ध रसों का विरोध और परिहार, रसदोष, स्थायीभाव, ३६ व्यभिचारीभाव, वेपथु, स्तम्भ, रोमांच, स्वरभेद, अश्रु, मूर्छा, स्वेद और विवर्णता नामक आठ अनुभाव तथा वाचिक, आंगिक, सात्त्विक और आहार्य नामक चार अभिनयों का विस्तृत विवेचन किया गया है।
चतुर्थ विवेक में समस्त रूपकों के लिए उपयोगी कुछ सामान्य बातों को प्रस्तुत किया गया है। इसमें सर्वप्रथम नान्दी-स्वरूप, कविध वा-स्वरूप, उसके प्रावेशिकी, नष्कामिकी, आक्षेपिकी, प्रासादिकी और आन्तरी नामक पाँच भेदों का सोदाहरण प्रतिपादन, पुरुष और स्त्री पात्रों के उत्तम, मध्यम और अधम भेदों का कथन, मुख्य नायक का स्वरूप और उसके तेज, विलास, शोभा, स्थैर्य, गाम्भीर्य, औदार्य और ललित नामक आठ गुणों का विवेचन, प्रतिनायक, नायक के सहायक, नायिका-स्वरूप, नायिका के मुग्धा, मध्या और प्रगल्भा नामक तीन सामान्य भेद तथा प्रोषितपतिका और विप्रलब्धा आदि प्रसिद्ध आठ भेद और स्त्रियों के यौवनबलजन्य हाव-भाव आदि आंगिक, विभ्रम-विलास आदि दस स्वाभाविक तथा शोभा-कान्ति आदि सात अयत्नज को मिलाकर कुल बीस अलंकारों का विवेचन किया गया है। पुन: नायिकाओं का नायक के साथ सम्बन्ध, नायिकाओं की सहायिकाएँ, पात्रों द्वारा भाषा प्रयोग के औचित्य का विस्तृत विवेचन, पात्रों के लिए पात्रों द्वारा सम्बोधन में प्रयुक्त नामावली तथा पात्रों के नामकरण में ज्ञातव्य बातों आदि का विवेचन किया गया है। अन्त में प्रथम और द्वितीय विवेक में कहे गये १२ रूपकों के अतिरिक्त सट्टक, श्रीगदित, दुमिलिता, प्रस्थान, गोष्ठी, हल्लीसक, शम्पा, प्रेक्षणक, रसक, नाट्य-रासक, काव्य, भाण और भाणिका नामक १३ अन्य रूपकों का सलक्षण विवेचन प्रस्तुत किया गया है।
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