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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
५. राघवाभ्युदय,
७. निर्भयभीम व्यायोग
६. सुधाकलश,
११. वचनमाला नाटिका ।
६. रोहिणीमृगांक प्रकरण,
८. कौमुदीमिश्रानन्द प्रकरण,
१०. मल्लिकामकरन्द प्रकरण और
कुमारविहारशतक, द्रव्यालंकार और यदुविलास
उनके अन्य प्रमुख ग्रन्थ हैं। एतदतिरिक्त कुछ छोटे-छोटे स्तव भी पाये जाते हैं । इस प्रकार उनके उपलब्ध ग्रन्थों की कुल संख्या डॉ० के० एच० त्रिवेदी ने ४७ स्वीकार की है। गुणचन्द्र का नाम प्रायः महाकवि रामचन्द्र के साथ ही लिया जाता है। इनके स्वतन्त्र व्यक्तित्व एवं कृतित्व के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी नहीं मिलती है । अतः केवल इतना ही कहा जा सकता है कि गुणचन्द्र, रामचन्द्र के समकालीन और आचार्य हेमचन्द्र के शिष्यों में एक थे I
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नाट्यदर्पण - यह नाट्य विषयक प्रामाणिक एवं मौलिक ग्रन्थ है। इसमें महाकवि रामचन्द्र गुणचन्द्र ने अनेक नवीन तथ्यों का समावेश किया है। आचार्य भरत से लेकर धनंजय तक चली आ रही नाट्यशास्त्र की अक्षुण्ण- परम्परा का युक्तिपूर्ण विवेचन करते हुए आचार्य रामचन्द्र ने प्रस्तुत ग्रन्थ में पूर्वाचार्य स्वीकृत नाटिका के साथ प्रकरणिका नाम की एक नवीन विधा का संयोजन कर द्वादश रूपकों की स्थापना की है। इसी प्रकार रस की सुख-दुःखात्मकता स्वीकार करना इस ग्रन्थ की सबसे बड़ी विशेषता है। नाट्यदर्पण में नो रसों के अतिरिक्त तृष्णा, आर्द्रता, आसक्ति, अरति और सन्तोष को स्थायीभाव मानकर क्रमश: लौल्य, स्नेह, व्यसन, दुध और सुधरस की भी संभावना की गई है । इसमें शान्तरस का स्थायीभाव शम स्वीकार किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ में ऐसे अनेक ग्रन्थों का उल्लेख मिलता है, जो अद्यावधि अनुपलब्ध हैं । कारिका रूप में निबद्ध किसी भी गूढ़ विषय को अपनी स्वोपज्ञ विवृत्ति में इतने स्पष्ट और विस्तार के साथ प्रस्तुत किया है कि साधारण बुद्धि वाले व्यक्ति को भी विषय समझने में कठिनाई का अनुभव नहीं करना पड़ता है । इसलिए इस ग्रन्थ की कतिपय विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए आचार्य बलदेव उपाध्याय ने लिखा है कि "नाट्यविषयक शास्त्रीय ग्रन्थों में नाट्यदर्पण का स्थान महत्त्वपूर्ण है। यह वह श्रृंखला है तो धनंजय के साथ विश्वनाथ कविराज को जोड़ती है। इसमें अनेक विषय बड़े महत्त्वपूर्ण हैं तथा परम्परागत सिद्धान्तों से विलक्षण हैं, जैसे रस का सुखात्मक होने के अतिरिक्त दुःखात्मक रूप " इसके अतिरिक्त आचार्य उपाध्याय ने प्राचीन और अधुनालुप्तप्रायः रूपकों के उद्धरण प्रस्तुत करने के कारण इसका ऐतिहासिक मूल्य भी स्वीकार किया है । इन विशेषताओं के कारण नाट्यदर्पण अनुपम एवं उत्कृष्ट कोटि का ग्रन्थ है ।
प्रस्तुत गन्थ में दो भाग पाये जाते हैं- प्रथम कारिकाबद्ध मूल ग्रन्थ और द्वितीय उसके ऊपर लिखी गई स्वोपज्ञ विवृत्ति । कारिकाओं में ग्रन्थ का लाक्षणिक भाग निबद्ध है तथा विवृत्ति में तद्विषयक उदाहरण एवं कारिका का स्पष्टीकरण । यह ग्रन्थ चार विवेकों में विभाजित किया गया है ।
इसके प्रथम विवेक में मंगलाचरण और विषय प्रतिपादन की प्रतिज्ञा के पश्चात् १२ रूपकों की सूची गिनाई
२. स्थायीभावः श्रितोत्कर्षो विभावव्यभिचारिभिः ।
स्पष्टानुभावनिश्येयः सुखदुःखात्मको रसः ॥
१. वही, पृ० २२१-२२२, नलविलास नाटक के सम्पादक जी० के० गोण्डेकर एवं नाट्यदर्पण के हिन्दी व्याख्याकार सिद्धान्तशिरोमणि आचार्य विश्वेश्वर ने उक्त ग्रन्थों की भूमिका में रामचन्द्र के ज्ञात ग्रन्थों की कुल संख्या ३६ मानी है ।
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हिन्दी नाट्यदर्पण २,७
३. वही, पृ० ३०६
४. उपाध्याय, आचार्य बलदेव, संस्कृत शास्त्रों का इतिहास, प्रका० शारदा मन्दिर, वाराणसी, १९६९, ०२३५ ५. वही, पृ० २३५.
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