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३२ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड . ...... ...........................................................
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नहीं समझा। हम सिरियारी में ही रुक गये। जब मैं समय वास्तव में मेरे बड़े भाई मेरे भाई ही नहीं मेरे पिता पर राणावास नहीं पहुंचा तो भाई साहब बहुत चिन्तित तुल्य भी हैं । हो गये । उन्होंने सब ओर पूछताछ की, किसी ने वता ४. संस्था के प्रति लगन दिया कि उनके छोटे भाई मांडा से कल ही रवाना हो एक बार की बात है कि मैं बीमार हो गया । गये हैं तो उनकी चिंता और बढ़ी। उन्होंने डॉ० वी० सारे घर वाले चिन्तित थे। भाई साहब को मालूम होते एन० वशिष्ठ, रूपजी माली आदि को मुझे ढूंढ़ने भेजा। ही तुरन्त पधारे । आपके असीम वात्सल्य और भ्रातृ-प्रेम रूपजी माली मुझे ढूंढते हुए सिरियारी आये, मुझे देखकर पर मैं श्रद्धानत हुए बिना नहीं रह सका। मेरी भावना थी सारी स्थिति बताई और कहा कि आप राणावास नहीं कि मुझे आप शीघ्रातिशीघ्र आचार्यश्री के दर्शन करवाएँ। पहुंचे, इस चिन्ता से आपके भाई साहब को बुखार आ आपने मेरी भावना का आदर करते हुए कहा-एक बार गया है, और दस्तें भी लगनी शुरू हो गई हैं। मैं तत्काल तो मुझे संस्था के किसी विशेष कार्य के लिए जाना होगा। रूपजी के साथ रवाना होकर राणावास पहुँचा । तब कहीं क्योंकि मैं चन्दे का संकल्प लेकर चला हूँ। करीब दो माह जाकर भाई साहब को शान्ति हुई। राम सदृश ऐसे बड़े के बाद वापस आकर मुझे दर्शन करवाए। यह है संस्था भाई को पाकर कोन छोटा भाई गर्व नहीं अनुभव करेगा। के प्रति रही उनकी लगन का एक उदाहरण !
खीर वापस कर दो
0 मुनि श्री जसकरण (सुजान) वि० सं० २००२ की हमारे राणावास पावस प्रवास बोडिंग से । केसरीमलजी ने कहा-खबरदार ! बोडिंग की की घटना है, एक दिन केसरीमल ने गोचरी की अरज कोई भी चीज नहीं लेनी चाहिये, वरना लोग कहेंगे की । भण्डारीजी के मकान में हमारा चातुर्मास था। केसरीमलजी तो बोडिंग के माल-मसाले खाते हैं । सन्तों ठीक उसके सामने ही केसरीमलजी और उनकी धर्मपत्नी के सामने ही अपनी पत्नी को डांटने-फटकारने लगे और रहते थे । मैं गोचरी के लिए गया, उन्होंने अपने हाथ से कहा-यह खीर तत्काल वापस लौटा दो, भविष्य में कोई सन्तों को आहार बहाया और अपनी पत्नी से कहा भी चीज बोडिंग की मत लेना । मैंने सोचा, ऐसे निःस्वार्थ और क्या है ? उन्होंने कहा, खीर है। केसरीमलजी ने व्यक्ति ही संस्था के काम को सुचारु रूप से चला पूछा-खीर कहाँ से आई ? प्रत्युतर में धर्मपत्नी ने कहा, सकते हैं ।
मरना एक बार है
0 मुनि श्री पूनमचन्द भगवान महावीर ने भगवती में स्थान-स्थान पर यही सच्ची स्थायी दवाई है। वैसे ही हुआ मन के मनोरथ श्रावकों के वर्णन में श्रावकों को प्रियधर्मी, दृढ़धर्मी आदि पूरे हुए। विशेषणों से सम्बोधित किया है। जिन-शासन में आज भी दूसरा चातुर्मास सं० २०२६ में मेरा हुआ। तब भी ऐसे अनेक श्रावक हैं, उनमें एक श्री केसरीमलजी सुराणा उनकी सहनशीलता का संस्मरण स्मृति-पटल पर है। प्रसिद्ध हैं।
देवेन्द्रमुनि को साथ ले जोजावर बाल मुनि से मिलने के
लिए गया । तब आप एवं दूसरे अनेक भाई भी पैदल सेवा वि० सं० २००४ के चातुर्मास में सतरंगी तपस्या में साथ थे । वापस लौटते समय रास्ते में गर्मी के कारण प्रारम्भ हुई, जिसमें केसरीमलजी ने भी योगदान दिया। आपको वमन होने लग गई। शाम का समय था, सबने शायद तेले की तपस्या में रात्रि को अचानक शारीरिक आग्रह किया कि गाड़ी में चढ़ जायें, किन्तु नहीं चढ़े। तकलीफ हो गयी, डाक्टर ने इंजेक्शन लेना जरूरी पदल सेवा में ही धीरे-धीरे चलते रहे और राणावास बताया किन्तु आपने दृढ़ता का परिचय देते हुए कहा, पैदल ही चलकर आये। उनका कहना था, वेदनीय कर्मों मरना एक बार है। मन इच्छित तपस्या करके रहूँगा, के बन्ध हैं, घबराने से आत्मकल्याण कैसे होगा? .
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