________________
तेरापंथ का राजस्थानी गद्य साहित्य
५४३
................................................................. ...... १. मुनि वेणीरामजी
२. मुनि हेमराजजी ३. मुनि जीवराजजी
. ४. मुनि चांदमलजी ५. मुनि चौथमलजी
६. मुनि धनराजजी ७. मुनि चन्दनमलजी
८. मुनि सोहनलालजी'
मुनि नथमल मुनि नथमलजी हिन्दी, संस्कृत और प्राकृत के मनीषी विद्वान् हैं । आपने इन भाषाओं में अनेक ग्रन्थ लिखे हैं और लगभग ५-७ दर्जन ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। आपने राजस्थानी में लिखा, पर वह बहुत अल्प है। आप द्वारा लिखित दो-एक गद्य मैं प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिनमें इतनी तीखी अभिव्यंजना है कि वह पाठक के मन पर सीधी चोट किये बिना नहीं रहती।
(क) दुर्जन व्यक्ति मिले हुए दिलों को तोड़कर सबके मन में संशय का बीज बो देता है। जब सब बिछुड़ जाते हैं, तब उसका मन आनन्दित हो जाता है । इससे उसका अपना कोई स्वार्थ नहीं भी सधता फिर भी वह दूसरों को कष्ट देकर मुदित होता है। इन तथ्यों की अभिव्यंजना निम्नोक्त रूपक में कितने मार्मिक ढंग से हुई है, वह द्रष्टव्य है
........"एक दुरजण आदमी बाग में गयो-सिंज्यारी सी बात ही हाल सूरज आथम्यों कोनी हो। कंवल रा फुल खिल रया हा-वां पर भंवरा नाच रया हा-सूरज री किरण्यां पड रही हो। वीं ने (दुरजन ने) आ बात आछी कोनी लागी । वो सूरज ने बोल्यो-सूरज ! तूं तो बण्यो बणायो मुरख है। देख-कंवल थारै पर रीसकर लाल मुंडो कर राख्यो है । तो ही तूं वी रै कनै जावै ।
___ कंवल ने कह्यो-सूरज थां स्यू उपरलो हेज दिखाव और मायनें स्यूं के कर हैं तूं कोनी जाण । देख-थारी जड़ काट-पाणी और कादो सुखावै ।
भंवरे ने इसी ट पाई-रै भंवरा ! ओ कंवल थारै वास्ते कोनी खिल्यो है, सूरज रे वास्ते-खिल्यो है-तु आ बात मत भूल ज्याई।
दिन ढलतो हो-तीनों रा मन फाट्म्या । तीनू न्यारा-न्यारा होग्या। सूरज जाकर पाणी में डूबग्यो। कंवल आपरो मूढो लुको लियो । भंवरो कठेई दूर भाजग्यो । वीं रो कालजो ठरग्यो । वो तो सेर घी पीयोडो सो होग्यो।
अब दिन चढ़तो हो । ई वगत वीं खोटे आदमी री बात कुण मानै ।............
(ख) गुण के साथ दोष और फूल के साथ कांटा होता ही है। यह नैसगिक है। ऐसी कोई वस्तु नहीं है, जिसमें गुण ही गुण हों, दोष न हों, और संसार में ऐसा भी कुछ नहीं है जिसमें केवल दोष ही हों, गुण न हों। गुण और दोष साथ-साथ चलते हैं
(१) दिल तो है पण दर्द कोनी। दर्द कोनी जदि दिल है नहीं तो आज तांइ रे तो इ कोनी, कदेई टूट जातो।............
(२) मर्द तो है पण रीस कोनी। रीस कोनी जदि मर्द है-नहीं तो आज तांइ रे तो इ कीनी, पेल्ही मरज्यातो।"
(३) बडो सीधो है पण कनै सत्ता कोनी । सत्ता कोनि जदि सीदो है नहीं तो आज तांइ रे तोदू कोनीपेल्ही सीदाई पूरी हो ज्याती।............
(४) बडो सादो है पण कनै धन कोनी । धन कोनी जदि सादो है-नहीं तो आज तां रे तोइ कोनी—सादगी कदेई टूट ज्याती।...........
१. जैन धर्म : बीज और बरगद, पृ० ४१.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org