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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण
(१) आचार्यश्री द्वारा लिखा गया पत्र
'लाडांजी अस्वस्थ है आ तो ठीक है, पर बी वेदनां में जकी सहनशीलता रो बै परिचय दियो है बी के वास्ते मन बहुत प्रसन्नता है। मैं ई वास्ते ही तो 'सहिष्णुता री प्रतिमूर्ति' ओ शब्द बांके नाम के साथ जोड्यो है। इस्यू अठे चार तीर्थ में प्रसन्नता हुई है और मैं समझू हूंब भविष्य में भी इसी सहनशीलता रो परिचय देसी।
ओ मनै विश्वास है अठे का जो शब्द हे बारै वास्ते बहुत बड़ी दवा को काम कर है और ई विश्वास स्यू ही मैं बार-बार कुछ केयो है, कुछ लिख्यो है, कुछ विचार रख्यो है और जिती बार ही बै विचार बढ़ पहुंच्या है बांस्यू बाने बल मिल्यो है और दर्शण हुणा तो हाथ की बात कोनी । आयुस्य बल होसी तो दर्शण होसी, पण दर्शण की इच्छा स्यूं भी अधिक बांरी जकी दृढ़ता है बा सारै नै बल दे रही है।"
-आचार्य तुलसी (२) शिष्य द्वारा आचार्य को लिखा गया पत्र
आचार्य श्री राजस्थान से दूर दक्षिण यात्रा पर थे। साध्वीश्री लाडांजी अत्यन्त अस्वस्थ अवस्था में बीदासर (राजस्थान) में स्थित थीं। एक बार आपने गुरुदेव को लिखा
'म्हारे ऊपर गुरुदेव री पूर्ण कृपा तथा माइतपणो है । यात्रा री ई व्यस्तता रै माय नै भी म्हार जिसी चरण-रज ने बार-बार याद करावै तथा बठे विराज्या ही मन बडो पोख दिराव है।....." म्हारो मन पूर्ण समाधिस्त तथा प्रसन्न है। मन एकदम मजबूत है। सरीर री लेशमात्र भी चिन्ता कोनी । आपनै म्हार प्रति जको विश्वास है वीरै अनुरूप ही काम हुवै दीस्यो ही परिचय छू जद ही म्हारी कृतार्थता है। म्हैं पल-पल आ ही कामना करूंहूँ कै म्हारी आत्मशक्ति और मनोबल दिन-दिन बढ़ता रेवै । ई अवसर पर मांजी महाराज री सेवा मिली है, ओ म्हारो परम सौभाग्य है।
-साध्वी लाड (३) सेवाभावी मुनि चंपक द्वारा मातुश्री साध्वी बदनांजी को लिखा गया पत्र 'महासक्ति मां!
सादर चरण वन्दना ।.....""अॐ नित नू 0 आगडा-ठाट लाग रहा है । ............ आपरै सुखसाता रा समाचार सुणकर जाणे एकर स्यां तो बीदासर ही पूग गया, इसे लाग्यो। ..........."हांसी में धूवर तो लारो ही कोनी छोड्यो। ११ दिन तांई लगातार एग सरीखी धूवर पडी । कदेई-कदेई तो दिन मैं दो-दो बज्यां तांई बूंवर खिडती ।..........."मांजी ! म्हैं तो ईसी धुंबर ६० वर्षा में ही कदेई कोनी देखी।
.........""मैं स माजी धाको सोक धिकाउंहूं। कदेइ एक मजल लारै तो कदेई दो मजल आगे । जियां तियां पूगू हूं।..........."गोडा दूख है। सरीर में सोजो रेवं है। दरद-फरद देखता तो भलाइं आज ही बैठ ज्यावो, पण देखू हूँ अबक-अबकै री दिल्ली यात्रा तो आचार्यश्री साग-साग कर ल्यू । आगै स म्हारै अन्तराय टूटी हुसी तो फेर हुसी।
आपरो
सेवाभावी चंपक इस प्रकार तेरापंथ के साधु-साध्वियों की कुछ न कुछ राजस्थानी कृति मिल जाएगी। प्रकाशित कृतियां बहुत कम हैं। राजस्थानी साहित्य निर्माता के रूप में इन मुनियों के नाम उल्लेखनीय हैं
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