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अपभ्रंश के प्रबन्धकाव्य
शैली और शिल्प की है, जिसने अपभ्रंश काव्यों से बहुत कुछ ग्रहण कर उसे अपने ढंग से अभिनव वातावरण में विकसित किया है। सन्दर्भ ग्रन्थ १. कोछड़, हरिवंश
: अपभ्रंश साहित्य २. जैन, हीरालाल
: णायकुमारचरिउ (भूमिका) ३. भायाणी, एच०सी०
: पउमचरिउ (भूमिका) ४. जैन, देवेन्द्रकुमार
: अपभ्रंश भाषा और साहित्य ५. शास्त्री, देवेन्द्रकुमार
: भविसयत्तकहा तथा अपभ्रंश कथाकाव्य ६. जैन, राजाराम
: महाकवि रइधू और उनका साहित्य ७. सिंह, नामवर
: हिन्दी के विकास में अपभ्रंश का योग ८. उपाध्याय, संकटाप्रसाद
: कवि स्वयम्भू है. जैन, विमलप्रकाश
: जम्बूसामिचरिउ (प्रस्तावना) १०. जैन, प्रेमचन्द
: अपभ्रंशकथाकाव्यों का हिन्दी प्रेमाख्यानकों के शिल्प पर
प्रभाव ११. शास्त्री, नेमिचन्द्र
: प्राकृत भाषा और साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास
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