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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड
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वर्णन, २. लोक-विभाजन, ३. धर्म-प्रतिपादन, ४. दार्शनिक खण्डन-मण्डन, ५. अलौकिक तथ्यों की योजना, ६. पूर्वभवस्मरण तथा ७. स्वप्नदर्शन आदि । अलौकिक तथ्यों के संयोजन के लिए देवता, यक्ष, गन्धर्व, विद्याधर, नाग, राक्षस आदि भी सहायक के रूप में उपस्थित किये जाते हैं । तथा अनेक लोककथाएँ धार्मिक चौखटे में जड़ दी जाती है। इस प्रकार अपभ्रंश के प्रबन्धकाव्य धर्म, कथा और काव्य इन तीनों के सम्मिश्रण से युक्त होते हैं । इस प्रकार के प्रबन्धकाव्यों की परम्परा अपभ्रंश तक ही सीमित नहीं रही । राजस्थानी एवं गुजराती से होते हुए हिन्दी में भी ऐसे प्रबन्धकाव्य लिखे गये हैं, जिनमें काव्य और पौराणिक रूढ़ियों का प्रयोग हुआ है। धार्मिक प्रबन्धकाव्य
__ अपभ्रंश की जिन रचनाओं में पौराणिकता और काल्पनिकता की अपेक्षा धार्मिकता अधिक उभरती है वे धार्मिक प्रबन्धकाव्य हैं। कथा की एकरूपता इनमें भी मिलती हैं। अधिकांश चरित्रग्रन्थ इस कोटि में आते हैं। इनकी रचना जैनधर्म के किसी विशेष व्रत अथवा सिद्धान्त प्रतिपादन के लिए होती है। कुछ काव्यों में धार्मिक-महापुरुषों के जीवनगाथा की ही प्रधानता होती है । इस कोटि के कुछ प्रबन्धकाव्यों का परिचय द्रष्टव्य है।
जसहरचरिउ--यह महाकवि पुष्पदन्त की रचना है । इसमें यशोधर राजा की जीवन कथा वणित है। सम्पूर्ण कथानक में पाँच-सात जन्म-जन्मान्तरों के वृत्तान्त समाविष्ट हैं । कथानक का विशेष अभिप्राय है कि जीवहिंसा सबसे अधिक घोर पाप है। उसके परिणाम कई जन्मों तक भोगने पड़ते हैं । अत: जीवहिंसा की क्रिया एवं भावना से भी बचना चाहिए । कथा के इसी उद्देश्य को ध्यान में रखकर यशोधरचरित नाम से ५०-६० रचनाएँ संस्कृत-प्राकृत एवं अपभ्रंश में लिखी गयी हैं।
णायकुमार चरिउ-इस चरित के लेखक भी पुष्पदन्त हैं तथा यह कथा भी धार्मिक उद्देश्य से लिखी गयी है। इस ग्रन्थ के नायक नागकुमार हैं, जो एक राजपुत्र हैं, किन्तु सौतेले भ्राता श्रीधर के विद्वेषवश वे अपने पिता द्वारा निर्वासित नाना प्रदेशों में भ्रमण करते हैं तथा अपने शौर्य, नैपुण्य व कला-चातुर्यादि द्वारा लोगों को प्रभावित करते हैं । अन्त में पिता द्वारा आमन्त्रित होने पर पुनः राजधानी को लौटते हैं। फिर जीवन के अन्तिम चरण में जिनदीक्षा लेकर मोक्ष प्राप्त करते हैं। किसी भी धर्म की प्रभावना के लिए इससे अधिक आकर्षक और मनोरम जीवनचरित दूसरा नहीं हो सकता। सूक्ष्मदृष्टि से विचार करें तो नागकुमारचरित की कथा रामकथा का ही रूपान्तर हैं।
___ जंबूसामिचरिउ-कहाकवि बीर द्वारा रचित जंबूसामिचरिउ प्रसिद्ध धार्मिक प्रबन्ध काव्य है। इसमें महाकाव्य के सभी गुण विद्यमान हैं । इनका कथानक बड़ा रोचक है । कथा बड़ी लम्बी एवं अवान्तरकथाओं से गुंथी हुई है। जम्वू नामक श्रेष्ठिपुत्र कुमारावस्था में ही संसार से विरक्त होकर मोक्षफल की आकांक्षा करने लगता है। इसकी सूचना मिलते ही उसकी वाग्दता चार घोष्ठिकन्याएं केवल एक दिन के लिए उसे विवाह कर लेने के लिए प्रेरित करती हैं। विवाहोपरान्त मधुरात्रि में चारों वधुएँ और जम्बू सुहागशय्या पर परस्पर वार्तालाप करते हैं । वधुएं सांसारिक सुखों के गुण गाती हैं और जम्बू आत्मिक सुख के । अन्ततोगत्वा, प्रातःकाल जम्बू की ही जीत होती है और वह अपने स्वजनों सहित दीक्षित हो जाता है।
इन रचनाओं के अतिरिक्त विशुद्ध धार्मिक वातावरण से युक्त अन्य प्रबन्ध भी अपभ्रंश में उपलब्ध हैं । सुन्दरसणचरिउ (नयनंदि), करकंडुचरिउ (कनकामर), जिणदत्तचरिउ (लक्ष्मण), सिद्धचक्कमहाप्य (रइधू) आदि उनमें प्रमुख हैं। वस्तुवर्णन अलंकार, छन्द, रस आदि काव्य उपकरणों की इनमें विविधता है। उदाहरण के लिए कुछ काव्यचित्र द्रष्टव्य हैं। उद्यानक्रीड़ा करते हुए जम्बूकुमार किसी कामिनी के यौवन की प्रशंसा करते हुए कहता है
अन्भसियउ हंसहि गमणु तुज्झु कलचंठिहिं कोमललविउ बुज्छु । पडिगाहिउ कमलहि चलणलासु तरुपल्लवेर्हि करयलविलासु । सिक्खिउ वेल्लिहिं भूवंकुडतु सीसत्तभाउ सच्चु वि पवत्तु ।
-ज० सा० च०४।१७
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