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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
ज्येष्ठा नक्षत्र का जन्म
सत्कांतिकीतिविभूति-समेतो, वित्तान्वितोऽत्यंतलसत्प्रतापः ।
श्रेष्ठ प्रतिष्ठो वदतां वरिष्ठो, ज्येष्ठोद्भवः स्यात्पुरुषो विशेषात् ॥ अर्थात् ज्येष्ठा नक्षत्र के अन्दर जन्म लेने वाला व्यक्ति श्रेष्ठ, प्रभावशाली, कीतिवान्, वैभवयुक्त, धनवान्, प्रतापी, श्रेष्ठवक्ता, कंट्रोल पावर से युक्त और साहसी होता है । लग्न तथा ग्रहों पर फलित इस प्रकार है
मकर लग्न कठिनमूर्तिरतीवशठ-पुमान्निजमनोगतकृद् बहुसंततिः ।
सुचतुरोऽपि च लुब्धतरोवरो, यदि नरो मकरोदयसंभवः ।। अर्थात् मकर लग्न वाला व्यक्ति दिल का कठोर, लग्नेश का मालिक शनि, लग्न पर बृहस्पति की पूर्ण दृष्टि, शनि बृहस्पति परस्पर दृष्टि सम्बन्ध बना। यह श्रेष्ठ योग, शनि कठोर, बृहस्पति कोमल, शनि के प्रभाव से हृदय कठोर, अत्यन्त शठ याने अपनी मर्जी का काम करने वाला, अधिक चतुर-अपने कार्य के अन्दर निपुण, बहुत पुत्रों वाला, अधिक लोभी, बृहस्पति पूर्ण दृष्टि से सन्तान घर को देख रहा है, राहु सन्तान घर के अन्दर है यह स्व-सन्तान को ब्रक लगाता है, बृहस्पति की दृष्टि यही शिक्षा केन्द्र स्थापित करवाना, छात्रावास बहु सन्तान योग घटित हो रहा है।
"वृषभ मकर कन्या कर्क सस्थे च राजे भवति विपुल लक्ष्मी ।" ___ अर्थात्-वृषभ का राहु बुद्धि घर के अन्दर, विपुल लक्ष्मी संग्रह तो होती है मगर बुद्धि घर के अन्दर राहु दिमाग के अन्दर तेजी लाकर अस्थिरता पैदा करता है । सूर्य धन भवन में
धनसुतोत्तमवाहनवजितो, हतमतिः सुजनोज्झितसौहृदः।
परग्रहोपगतो हि नरो भवेत्, दिनमणिद्रविणे यदि संस्थितः ।। अर्थात्-अष्टमेश का मालिक होकर सूर्य का धन भवन के अन्दर बैठना खुद के कोष से ममता हटाता है, धन, पुत्र, वाहन से रहित, क्रोध से बुद्धि को चलायमान करता है, मित्रता से परे यह सूर्य धन भवन में अन्दर अपना प्रभाव रखता है। चन्द्र एकादश स्थान में
सम्मान नाना धन वाहनाप्तिः कीति-श्वसद्भोगगुणोपलब्धिः ।
प्रसन्नानो लाभविराजमानो, ताराधिराजे मनुजस्य नूनम् ॥ अर्थात् चन्द्र स्त्री घर का मालिक लाभ भवन के अन्दर केतु के साथ ग्रहण योग वह चन्द्र नीच घर का स्त्री का आराम रखता है मगर गृहस्थ से विरक्त चन्द्र ने केमुद्रम योग भी बनाया है, यही कारण है कि आप रूप में रह रहे हैं, चन्द्र लाभस्थान के अन्दर अनेक प्रकार के बालक, धन, वाहन का उपयोग करने का योग, यश, श्रेष्ठ वातावरण, गुणवान् सदैव प्रसनचित्त रखता है। भौम चतुर्थ भाव के अन्दर ::
“दुःखं सुहृद्वाहनतो प्रवासी, कलेवरे दग्बलताबलत्वम् । प्रसूतिकाले किल मंगलाख्ये, रसातलस्थे फलमुक्तमायें ।
(दशमे अंगारको यस्य स जातो कुलदीपकः).. . दशवें घर के अन्दर मंगल बैठना तथा दृष्टि डालना श्रेष्ठ माना है। यह अपने कुल के अन्दर दीपक के समान कुल वंश को उज्ज्वल करने का योग है।
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