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जैन गणित : परम्परा और साहित्य ४१५ -.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-.-..
क्षेत्रगणित-नेमिचन्द्रकृत । इसका उल्लेख जिनरत्नकोश (पृ० ६८) में दिया हुआ है।
इष्टपंचविशतिका-मुनि तेजसिंहकृत । यह लोंकागच्छीय मुनि थे। गणित पर इनका यह छोटा-सा ग्रन्थ २६ पद्यों में प्राप्त है।
गणितसार-टीका-सिद्धसूरिकृत । ये उपकेशगच्छीय मुनि थे। इन्होंने श्रीधरकृत गणितसार पर टीका लिखी थी।
गणितसार-वृत्ति (सं० १३३०, ई० १२७३)-सिंहतिलकसूरिकृ त । ये ज्योतिष और गणित के अच्छे विद्वान् थे। इनके गुरु का नाम विबुधचन्द्रसूरि था। इन्होंने श्रीपतिकृत 'गणितसार' पर (सं० १३३०, ई० १२७३) में वृत्ति (टीका) लिखी है। इसमें लीलावती और त्रिशतिका का उपयोग किया गया है।
ज्योतिष पर इन्होंने 'भुवनदीपकवृत्ति' लिखी । मंत्रराजरहस्य, वर्धमानविद्याकल्प परमेष्ठिविद्यायंत्रस्तोत्र, लघुनमस्कारचक्र, ऋषिमंडलयंत्रस्तोत्र भी इनके ग्रन्थ हैं।
सिद्ध-भू-पद्धति-अज्ञातकर्तृक यह प्राचीन ग्रन्थ है। यह क्षेत्रगणित विषयक ग्रन्थ है।
इस पर दिगम्बर वीरसेनाचार्य ने टीका लिखी थी। इनका जन्म वि० सं० ७६५ एवं मृत्यु सं०८८० हुई । ये आर्यनंदि के शिष्य, जिनसेनाचार्य के गुरु तथा गुणभद्राचार्य (उत्तरपुराण-कर्ता) के प्रगुरु थे।
इन्होंने दिगम्बर आगम ग्रन्थ 'षट्खण्डागम' (कर्मप्राभृत) के पाँच खंडों पर 'धवला' नामक टीका सं०८७३ में लिखी । इस व्याख्या में इन्होंने गणित सम्बन्धी अच्छा विवरण दिया है। इससे इनकी गणित में अच्छी गति होना प्रकट होता है। इसके अतिरिक्त वीरसेनाचार्य ने 'कसायपाहुड' पर 'जयधवला' नामक विस्तृत टीका लिखना प्रारम्भ किया, परन्तु बीच में ही उनका देहान्त हो गया।
गणितसूत्र-अज्ञातकर्तृक । किसी दिगम्बर जैन मुनि की कृति है। इसकी हस्तप्रति जैन सिद्धांत भवन आरा में मौजूद है।
यंत्रराज (श० ११६२, ई० १२७०)-महेन्द्रसूरिकृत-यह ग्रहगणित सम्बन्धी उपयोगी ग्रन्थ है।
गणितसारकौमुदी (ई०१४वीं शती प्रारम्भ)-ठक्कुर फेरूकृत । यह जैन श्रावक थे। मूलत: राजस्थान के कन्नाणा के निवासी और श्रीमालवंश के धंधकुल में उत्पन्न हुए थे। इस ग्रन्थ की रचना सं० १३७२ से १३८० के बीच हुई थी । यह अप्रकाशित है।
ठक्कुर फेरू दिल्ली के सुलतान अलाउद्दीन खिलजी के कोषाधिकारी (खजांची) थे।
गणितसारकौमुदी प्राकृत में है। इसकी रचना भास्कराचार्य की लीलावती और महावीराचार्य के गणितसारसंग्रह पर आधारित है। विषय विभाग भी लीलावती जैसा ही है। क्षेत्रव्यवहारप्रकरण के नामों को स्पष्ट करने के लिए यंत्र दिये हैं। यंत्रप्रकरण में अंकसूचक शब्दों का प्रयोग है। तत्कालीन भूमिकर, धान्योत्पत्ति आदि विषय नये हैं।
ठक्कुर फेरू के अन्य ग्रन्थ-वास्तुसार, ज्योतिस्सार, रत्नपरीक्षा, द्रव्यपरीक्षा (मुद्राशास्त्र), भूगर्भप्रकाश, धातूत्पत्ति युगप्रधान चौपई हैं । पहली सात रचनाएँ प्राकृत में हैं । अन्तिम रचना लोकभाषा (अप्रभ्रंश बहुल) में है।
लीलावतीगणित (१६८२ ई०)-कवि लालचन्दकृत । ये बीकानेर के निवासी थे। इनका दीक्षानाम लाभवर्द्धन था। इनके गुरु शांतिहर्ष और गुरुभ्राता जिनहर्ष थे। हिन्दी पद्यों में लीलावतीगणित की रचना सं० १७३६ (१६८२ ई०) में बीकानेर में की थी। अन्य रचनाएँ गणित पर 'अंकप्रसार' तथा 'स्वरोदयभाषा', 'शकुन दीपिकाचौपई' भी हैं।
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