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________________ ३६० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : पंचम खण्ड . . . . . ........... ....... ..... ................ . . ....... ... .. व्याकरण पर टीका-ग्रन्थ है । इसका रचनाकाल निश्चित नहीं है, फिर भी युधिष्ठिर मीमांसक ने इसका समय १६वीं शती का अन्त या १७वीं शती का प्रारम्भ माना है।' ग्रन्थ सरल और सुबोध है । क्रियाचन्द्रिका खरतरगच्छीय गुण रत्न ने इस वृत्ति का प्रणयन वि० स० १६४१ में किया था। इसका हस्तलेख बीकानेर में विद्यमान है। क्रियाचन्द्रिका मेघविजयजी ने इसकी रचना की थी। इसका समय निश्चित नहीं है । दीपिका इसके रचनाकार विनयचन्द्रसूरि के शिष्य मेघरत्न थे । इसकी रचना वि०सं०१५३६ में की गई । इसका एक हस्तलेख लाद० संस्कृति विद्या मन्दिर अहमदाबाद में सुरक्षित है । प्रारम्भिक श्लोक इस प्रकार है नत्वापार्श्व गुरुमपि तथा मेघरत्नाऽभिधोऽहम् । टीकां कुर्वे विमल मनस, भारतीप्रक्रियां ताम् । धातुतरंगिणी तपागच्छीय आचार्य हर्षकीतिसूरि ने इस ग्रन्थ की रचना की थी। इसमें १८९१ धातुओं के रूप बताये गये हैं। इसकी वि० सं० १६१६ में लिखित एक प्रति लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्या मन्दिर अहमदाबाद में विद्यमान है। न्यायरत्नावली खरतरच्छीय आचार्य जिनचन्द्रसूरि के शिष्य दयारत्न मुनि ने सं० १६२६ में इसकी रचना की। इसमें सारस्वत व्याकरण के न्यायवचनों का विवरण है। वि० सं० १७३७ में लिखित इसकी एक प्रति लाद०भा० संस्कृति विद्यामन्दिर अहमदाबाद में विद्यमान है। पंचसन्धिटीका यह ग्रन्थ मुनि सोमशील द्वारा प्रणीत है। पाटन के भण्डर में इसकी प्रति प्राप्त है। प्रक्रियावृत्ति खरतरगच्छीय मुनि विशालकीति ने इस ग्रन्थ की रचना की थी। इसकी प्रति श्री अगरचन्द्र नाहटा के संग्रह में विद्यमान है। भाषाटीका . मुनि आनन्दनिधि ने १८वीं शताब्दी में इसकी रचना की। इसका हस्तलेख भीनसार के बहादुरमल बांठियासंग्रह में विद्यमान है। यशोनन्दिनी दिगम्बर मुनि धर्मभूषण के शिष्य यशोनन्दी ने इसका प्रणयन किया था। रूपरत्नमाला १४००० श्लोक परिमाण के इस ग्रन्थ की रचना तपागच्यछी भानुमेरु के शिष्य मुनि नयसुन्दर ने वि०स० १७७६ में की थी । ग्रन्थ में प्रयोगों की साधनिका है । इसकी प्रतियां बीकानेर व अहमदाबाद के ग्रन्थभण्डारों में विद्यमान है। - - . १. युधिष्ठिर मीमांसक-संस्कृत व्याकरण शास्त्र का इतिहास, भाग १, पृ० ५७५. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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