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स्वरूप को प्राप्त करता है। चलने में चरणों का प्रमुख स्थान है। ठीक वैसे ही आत्म-स्वरूप को प्राप्त करने में चरणकरणानुयोग का है। अपेक्षा से उसके ७० भेद होते हैं, जिसे चरणतरी भी कहा गया है।
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चय समणधम्म संजम वेधावच्वं च वंभगुत्तीओ। नाणाइतियं तवो कोह- निग्गहाई चरणमेयं ॥
पाँच महाव्रत, दश श्रमणधर्म, सतरह संयम, दश वैयावृत्त्य, नव ब्रह्मचर्यगुप्ति, ज्ञानादि तीन रत्न, बारह प्रकार का तप, चार क्रोधादि निग्रह इस प्रकार ७० भेद होते हैं ।
जिसमें गुण
करण करण का शाब्दिक अर्थ जैसा टीकाकार ने किया है- वियते चरणस्य पुष्टीरनेनेति करण" जो चरण की पुष्टि करता है उसे करण कहते हैं कारित अनुमोदन रूपा करणं" करना, करवाना, अनुमोदन करने को भी करण कहा जाता है । अर्थात् मूल गुण की पुष्टि करने वाले तत्त्वों को करण कहा जाता है। वह पिण्डविशुद्धि रूप ७० प्रकार का होता है
अनुयोग और उनके विभाग
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पिण्डविशुद्धि के चार प्रकार हैं।
समिति के पाँच प्रकार हैं ।
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पिण्डविसोही समिई, भावणा पडिमा य इन्दियनिग्गहो । पडिलेहणं गुत्तीओ अभिग्गहं चेव करणं तु ॥
१. प्रवचनसारीद्वार, पृ० १३२.
२. प्रवचनसारोद्धार, पृ० १३८
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भावना के बारह प्रकार हैं । पडिमा के बारह प्रकार हैं ।
इन्द्रिय-निरोध पाँच प्रकार के हैं। प्रतिलेखना के पच्चीस प्रकार हैं ।
गुप्ति के तीन प्रकार हैं ।
अभिग्रह के चार प्रकार हैं ।
धर्मकथानुयोग में उत्तराध्ययन आदि आगम एवं ऋषिभाषित ग्रन्थ आते हैं । धर्मकथानुयोग में मुख्यतः विशिष्ट पुरुषों के जीवन एवं उनकी विशेषताओं का वर्णन मिलता है, जिनसे प्रेरित हो व्यक्ति दुर्गति से निवृत्त हो सम्यक् पथ का आवरण कर सके ।
गणितानुयोग
जिन आगम ग्रन्थों में भंग एवं गणित की प्रधानता है, उनको गणितानुयोग कहा गया है। गणितानुयोग में प्रधानतया सूर्यप्रज्ञप्ति आदि आगम आते हैं। गणितानुयोग के माध्यम से आयुष्य, गति, स्थिति आदि विभिन्न अवस्थाओं का ज्ञान होता है।
पिंडेसणा
द्रव्यानुयोग
और पर्याय अवस्थित हैं, उसे द्रव्य कहा गया हैं । द्रव्य की सत् असत् समस्त पर्यायों के
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