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भारतीय योग और जैन चिन्तन-धारा
डॉ० छगनलाल शास्त्री [सरदार शहर, जिला चूरू (राज.)]
भारतीय चिन्तन-धारा निश्चय ही बड़ी सूक्ष्म रही है। वह क्रमशः स्थूल से सूक्ष्म की ओर गतिमान होती गई। मांसल जीवन की सामयिक उपयोगिता स्वीकारने के बावजूद जीवन के चरम सत्य का साक्षात्कार करने के लिए भारतीय मानस सदैव आकुल रहा । अतएव–'ऋणं कृत्वा घृतं पिबेत्, यावज्जीवेत् सुखं जीवेत् । भस्मीभूतस्य देहस्य, पुनरागमनं कुतः ।' अर्थात् पास में कुछ न हो तो ऋग करके घी पीए, जब तक जीए, सुख से जीए । मृत देह के जला दिए जाने के बाद फिर क्या बचा रहता है, फिर कौन वापिस आता है ? चार्वाक की यह बात सुनने में बड़ी मीठी थी, प्रिय भी लगी पर उद्बोध-प्रवण मानव अन्तत: इससे तृप्त नहीं हुआ, अन्तर्बुभुक्षा, जिज्ञासा, चाह बनी ही रह गई।
बृहदारण्यकोपनिषद् के द्वितीय अध्याय, चतुर्य ब्राह्मण में वणित याज्ञवल्क्य-मैत्रेयी-संवाद से यह स्पष्ट है।
याज्ञवल्क्य संन्यासी होने को उद्यत हैं । उनके दो पत्नियाँ थीं--पैत्रेयी और कात्यायनी । वे मैत्रेयी से कहते हैं
"मैनेयि इति ह उवाच याज्ञवल्क्य उद्यास्यन्वा अरंऽहमस्मात् स्थानाद् अस्मि हन्त तेऽनया कात्यायन्या अन्तं करवाणीति ।"
अर्थात् मैं ऊर्ध्वगमन करना चाहता हूँ- गार्हस्थ्य से ऊँचा उठ संन्यास लेना चाहता हूँ। अत: अपनी सम्पत्ति का तुम्हारे और कात्यायनी के बीच बँटवारा कर दूं।
याज्ञवल्क्य बड़े सम्पन्न थे। उनके पास अपरिमित धन-धान्य, सम्पत्ति और वैभव था। मैत्रेयी ने इसके उत्तर में जो कहा, वास्तव में बड़ा मार्मिक है
“सा ह उवाच मैत्रेयी । यन्तु म इयं भगोः सर्वा पृथिवी वित्तन पूर्णा स्यात्, कथं तेनामृता स्यामिति । नेति ह उवाच याज्ञवल्क्यो ययैवोपकरणवतां जीवितं तयैव ते जीवितं स्याद् अमृतत्वस्य तु नाशास्ति वित्त नेति ।"
अर्थात् मैत्रेयी ने कहा-भगवन् ! यदि यह सारी पृथ्वी धन से परिपूर्ण हो, मुझे प्राप्त हो जाए तो क्या मैं उससे अमर हो सकती हूँ ? याज्ञवल्क्य ने कहा-मैत्रेयी ! ऐसा नहीं होता। पुष्कल साधन-सामग्री-सम्पन्न जनों का जैसा जीवन होता है, तुम्हारा भी उससे वैसा हो जायेगा पर उससे अमृतत्व की आशा नहीं की जा सकती।
इस पर उबुद्धचेता मन्त्रेयी अपने आपको स्पष्ट करती है"सा ह उवाच मैत्रेयी येनाहं नामृता स्याम् किमहं तेन कुर्याम् । यदेव भगवान् वेद तदेव मे बहीति ।"
अर्थात् भगवन् ! जिससे अमृतत्व की उपलब्धि न हो, उसे लेकर मैं क्या करूं । अमरत्व के सम्बन्ध में जो आप जानते हैं, मुझे बतलाएँ।
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