________________
शिक्षा में सृजनात्मकता
४१
.
'सृजनात्मकता का विकास कैसे करें ? जैसा कि पूर्ववर्ती अनुच्छेदों में स्पष्ट किया जा चुका है सृजनात्मकता का विकास सम्भव है क्योंकि यह किसी न किसी मात्रा में प्रत्येक व्यक्ति में विद्यमान रहती है। विद्यालय तथा कक्षा में विभिन्न विषयों के अध्यापन के दौरान सृजनात्मकता के विकास हेतु उपयुक्त अवसर ढूंढ़े जा सकते हैं। इस दिशा में विदेशों में कई प्रयोग किए गए हैं । टारेन्स द्वारा किये गए एक प्रयोग से निम्नांकित सिद्धान्त निरूपित किये जा सकते हैं :-१ १. कक्षा में बालकों द्वारा पूछे गये प्रश्नों के प्रति चाहे वे प्रश्न कितने ही असामान्य क्यों न हों अध्यापक
का रुख आदरपूर्ण होना चाहिए क्योंकि प्रश्न ही वह माध्यम है जिसके द्वारा बालक अपने अप्रकट को
प्रकट करता है। २. बालकों द्वारा कक्षा में व्यक्त किए गए विचारों को प्रोत्साहित करना चाहिए। ३. बालकों को यह अनुभूति प्रदान करनी चाहिए कि उनके द्वारा पूछे गए प्रश्न अथवा व्यक्त किए गए विचार
अध्यापक की दृष्टि में मूल्यवान हैं। ४. सृजनात्मकता योग्यता के विकास में सहायक क्रियाकलाप तत्काल मूल्यांकनीय नहीं होते अत: ऐसे क्रियाकलापों
के लिए पर्याप्त समय देना चाहिए। ५. मूल्यांकन में कारण एवं परिणाम को संयुक्त करके देखा जाना चाहिए। सृजनात्मकता से सम्बद्ध विपरीत
विचारधारा कल्याणकारी एवं लाभप्रद होने के साथ-साथ कभी-कभी भयंकर भी हो सकती है अतः इस दिशा में आवश्यक निरीक्षण, निर्देशन एवं परामर्श की आवश्यकता है ।
हरबर्ट जे० क्लासमेयर ने इस सम्बन्ध में निम्नांकित सिद्धान्त निरूपित किए हैं :-२ १. विभिन्न साधनों के माध्यम से मौलिक अभिव्यक्ति को प्रोत्साहित करना । २. समरूपता के स्थान पर नम्यता (अनाग्रह) को प्रोत्साहित करना । ३. सृजनात्मकता को प्रदर्शित करने के लिए आवश्यक समय देना । ४. छात्रों की उत्पादन-क्षमता को प्रोत्साहित करना।
हिन्दी शिक्षण में सृजनात्मकता सृजनात्मकता के विकास की दृष्टि से अन्य विषयों की तुलना में भाषा अध्यापक कदाचित् अधिक लाभप्रद स्थिति में है। भाषा शिक्षक यदि अपने कक्षा-शिक्षण में जागरूक रहे तो वह निश्चय ही हर स्तर पर अपने छात्रों में सृजनात्मकता के विकास हेतु महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकता है। इसके लिए आवश्यक होगा कि :
१. कक्षा का वातावरण प्रजातान्त्रिक हो । २. अध्यापक स्वयं सृजनात्मकतासम्पन्न हो । ३. छात्रों के अटपटे एवं असंगत उत्तरों के प्रति धैर्य का परिचय दे। ४. उच्च सृजनात्मकता-सम्पन्न बालकों को विशेष निर्देशन देने को प्रस्तुत रहे। ५. विद्यालय-वातावरण में भी सृजनात्मकता को स्थान मिले। ६. प्रधानाध्यापक तथा अन्य अध्यापक बन्धुओं का सहयोग प्राप्त हो। ७. अनुभवों की विविधता के लिए अवसर जुटाए जावें ।
2
Torrance, E. P.: Rewarding Creative Behaviour, N. J. Prentice Hall Inc. Eoglewood Cliffs, 1965. Sharma, S. (Dr.): Hindi Shikshan men Srijanatmak Datta Karya'- A workshop ReportDeptt. of Extension Services, V. B. Teachers' College Udaipur, Rajasthan 1975.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org