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सन्देश
शुभकामना
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डा० राजनाथसिंह
(भू. पू.) कुलपति उदयपुर विश्वविद्यालय
उदयपुर-३१३००१ यह प्रसन्नता की बात है कि आप कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा का सार्वजनिक अभिनन्दन करने जा रहे हैं । सुराणा साहब से मेरा व्यक्तिगत परिचय तो नहीं है, किन्तु जो जानकारी मिली है उससे ज्ञात होता है कि उन्होने राणावास में शिक्षा के प्रचार-प्रसार में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त की है। अपनी निस्पृह सेवा कार्य के लिये उन्होंने शिक्षा को प्रमुख स्थान दिया, यह उनकी दूरदर्शिता का प्रमाण है । ऐसे कर्मठ और परहितकारी व्यक्ति का अभिनन्दन वस्तुतः मानवीय मूलभूत मूल्यों का अभिनन्दन है । इस कार्य की सफलता के लिये मेरी हार्दिक शुभकामनायें हैं । श्रीमान सुराणा साहब के सुदीर्घ व स्वस्थ जीवन के लिये मैं भगवान से प्रार्थना करता हूँ।
इस अवसर पर आप "सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ' भी प्रकाशित कर रहे हैं । इसकी मुझे प्रसन्नता है। यह एक शुभ प्रयास है। इस ग्रन्थ के प्रकाशन द्वारा जैन विद्या के कई पक्षों पर नवीन प्रकाश पड़ेगा, ऐसी मुझे आशा है। सुराणा साहब के अभिनन्दन समारोह को यह ग्रन्थ चिरस्थायी बनायेगा । इसी प्रकार श्रीमान सुराणा साहब के नाम से राजस्थान के विश्वविद्यालयों में जैन विद्या के अध्ययन के लिये यदि आप शोध छात्रवृत्ति आदि प्रदान करने की व्यवस्था करें तो अभिनन्दन के कार्य को एक नयी दिशा मिलेगी। शिक्षा जगत् में इसका समादर होगा।
-राजनाथसिंह
२४
A. B. Mathur, (Ex.) Director of Education.
JAIPUR
8 December 1980 The growth of higher education owes in no small measure to the munificence of the opulent section of the Rajasthani people. Shri Jain Terapanth Mahavidyalaya is a living example of the efforts made by Shri Kesari Malji Surana. Living a spartan life but devoting all their energies and resources to building up a number of education institutions, Shri Surana has set a glorious example.
I hope and trust Shri Surana ji will continue to look after the institution and see them grow to greater heights.
-A. B. MATHUR
२५
गोपीनाथ 'अमन'
४७, दरियागंज नई दिल्ली
दि. ३१-१०-१९८० कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा के अभिनन्दन ग्रन्थ के लिये संदेश भेजते हुए मुझे हादिक प्रसन्नता हो रही है । काकाजी ने भले ही साधुवेश धारण न किया हो मगर आप साधुपुरुष है। अपने समर्पित व्यक्तित्व द्वारा आपने समाज की बहुत सेवा की है। शिक्षा क्षेत्र में नैतिक क्रान्ति लाने का जो प्रयास काकाजी ने किया वह सराहनीय है।
आज नैतिक क्षेत्र में तेजस्विता की कमी अनुभव हो रही है । इसी कमी का आपने अनुभव किया, परिणामस्वरूप ३५ वर्ष पूर्व राणावास में प्राथमिक विद्यालय आरम्भ हुआ जो आज महाविद्यालय का रूप ले चुका है। यह आपके त्याग, तपस्या, लगन का परिणाम है । मैं तो यही प्रार्थना करता हूँ"तुम सलामत रहो हजार बरस"
-गोपीनाथ 'अमन'
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