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श्री जैन तेरापंच महाविद्यालय, राणावास
महाविद्यालय पत्रिका 'अनुशीलन' - महाविद्यालय की विभिन्न प्रवृत्तियों में पत्रिका प्रकाशन की प्रवृत्ति एक विशेष महत्त्व रखती है । महाविद्यालय पत्रिका में जहाँ एक और विद्याथी वर्ग एवं अन्य कर्मचारी वर्ग की सृजन शक्ति प्रतिबिम्बित होती है, वहाँ दूसरी ओर विभिन्न गतिविधियों से सम्बन्धित उपलब्धियों की झलक भी दृष्टिगत होती है।
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वस्तुतः पत्रिका चिन्तन-मनन, पठन-पाठन, लेखन भाषण की ओर विद्यार्थी वर्ग को उन्मुख करने में श्लाघनीय योगदान देती है ।
यह हर्ष एवं गौरव का विषय है कि इस महाविद्यालय की वार्षिक पत्रिका 'अनुशीलन' का प्रकाशन - कार्य सदैव - सराहना का विषय रहा है । महाविद्यालय सत्र १९७६-७७ से पत्रिका का निरन्तर प्रकाशन कर रहा है। सत्र १६७६८० में इसका चतुर्थ अंक प्रकाशित हुआ है-
पत्रिका में हिन्दी, राजस्थानी एवं अंग्रेजी भाषा में रचित रचनाओं को स्थान दिया जाता है। पत्रिका की सम्पूर्ण प्रकाशन सामग्री का क्रम विभाजन इस प्रकार है ।
(१) सम्पादकीय (२) संदेश, शुभकामनाएँ, सम्मतियां एवं प्राचार्य की कलम आदि से (आवश्यकतानुसार ) (३) हिन्दी अनुभाग, (४) चित्रावली, (५) अंग्रेजी अनुभाग, (६) प्रतिवेदन अनुभाग, (७) विज्ञापन अनुभाग । पत्रिका की प्रकाशन सामग्री के अन्तर्गत कुछ स्थायी स्तम्भ इस प्रकार हैं
(१) वंदना, (२) आचार्य श्री तुलसी से सम्बन्धित रचना, (३) कर्मयोगी श्रीयुत केसरीमलजी सुराणा पर एक रचना, (४) राणावास से सम्बन्धित एक रचना (५) महाविद्यालय से सम्बन्धित एक रचना ।
पत्रिका में प्रकाशित रचनाओं में विद्यार्थी वर्ग एवं अन्य कर्मचारियों द्वारा रचित रचनाओं में एक सन्तुलन रखा जाता है। विद्यार्थियों को अधिक से अधिक प्रोत्साहित करना उद्देश्य रहता है ।
हिन्दी अनुभाग एवं अंग्रेजी अनुभाग में प्रतिवर्ष १८ से २४ तक एवं ८ से १२ तक की संख्या में रचनाओं का क्रमशः समावेश किया जाता है, जिसमें कविता, निबन्ध, कहानी, हास्य कणिकाएँ आदि विभिन्न प्रकार की पठन सामग्री होती है ।
चित्रावली के अन्तर्गत आचार्य श्री तुलसी, अध्यक्ष जी, मन्त्री जी, कर्मयोगी श्रीयुत केसरीमलजी सुराणा एवं प्राचार्य जी, संकाय सदस्य आदि के चित्र प्रतिवर्ष दिये जाते हैं। शेष चित्र महाविद्यालय की विभिन्न गतिविधियों के होते हैं।
प्रतिवेदन अनुभाग में प्राचार्य प्रतिवेदन एवं महाविद्यालय की समस्त प्रवृत्तियों के प्रतिवेदन प्रस्तुत किए जाते हैं।
महाविद्यालय पत्रिका के प्रकाशन व्यय की पूर्ति की दृष्टि से विज्ञापन अनुभाग का विशेष महत्व है। विज्ञापन ही पत्रिका की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ बनाते हैं। विज्ञापनों की प्राप्ति हेतु विभिन्न व्यावसायिक संस्थानों से सम्पर्क किया जाता है। विज्ञापन प्राप्ति में विभिन्न महानुभावों का भी सहयोग लिया जाता है। श्रीयुत पारसचन्द जी भण्डारी, बालोतरा, श्रीयुत रमेश जी तेला, बम्बई, श्रीयुत जयप्रकाश जी गादिया, रामसिंह जी का गुड़ा, श्रीयुत अमरसिंह कछवाहा, उप-पुलिस अधीक्षक नागौर, श्रीवृत नेमीचन्द जी टांक, राणावास आदि का इस सन्दर्भ में अब तक श्लाघनीय सहयोग रहा है। कुछ व्यावसायिक प्रतिष्ठान ऐसे भी हैं, जिन्होंने विज्ञापन हेतु स्थायी कोष निर्मित कर दिया है। इन प्रतिष्ठानों का विज्ञापन प्रतिवर्ष दिया जाता है।
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उल्लेखनीय बिन्दु - (१ ) पत्रिका का प्रकाशन प्रतिवर्ष सत्र की समाप्ति से पूर्व कर दिया जाता है । ग्रीष्मावकाश में विद्यार्थी अपने घर जाते समय पत्रिका प्राप्त कर लेता है ।
(२) हिन्दी व राजस्थानी भाषा में विद्यार्थियों द्वारा रचित रचनाओं की एक प्रतियोगिता का आयोजन होता
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