________________
कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
.-.
-.-.-.-.-.
-.-...-...-.-.-.-.-.-.
-.-.-.
-.-.-.-.
कृपापात्र गुरुवर के
मारवाड़ रत्न । साध्वी श्री लाड़ाजी
साध्वी श्री सुबोधकुमारी श्रावक तुम संजोर श्रावकाचार निभाते।
(दोहे) त्याग और वैराग्य भावना खूब बढ़ाते ॥१॥ कर्मठ श्रावक केसरी, नीति निपुण निष्णात । आस्था और प्रतीति तुम्हारी संघ पर भारी।। मारवाड़ का रत्न है, संयम तप साक्षात ॥१॥ हो स्वर्णिम इतिहास भावना मेरी प्यारी ॥२॥ संघ संघपति के प्रति, सदा समर्पित भाव । लघु रत्नों की माल श्रावक प्रभुवर वाणी। हर क्षण जागृति में रहे, उनका सहज स्वभाव ॥२॥ त्याग तितिक्षा भाव बढ़ाओ कहते ज्ञानी ॥३॥ अनुशासन में दक्ष है, गुरुभक्ति अनुरक्त। राणावास सुगाँव तुम्हारे से है विकसित। संयम जीवन जी रहे, मुश्किल ऐसा भक्त ॥३॥ छात्रावास का काम श्रवण करके मैं पुलकित ॥४॥ सुन्दरदेवी का पति, धुन का पक्का धीर । कृपापात्र गुरुवर के तुम सदा से भारी।। देवों के भी सामने, डरा नहीं वह वीर ॥४॥ बढ़े ज्ञान और ध्यान साधना सारी॥५॥
00
दो मुक्तक D साध्वी श्री चन्द्रकला
श्रावक केसरीमलजी उन्नत उच्चाचार। धार्मिक और विवेकयुत निर्मल जीवन सार॥ निर्मल जीवन सार साधना अच्छी करते। श्रावक विधि अनुसार कार्य में रत रहते ॥ न्याय-नीतिमय भाव प्रतिपल बढ़ते ।
पग-पग पापभीरुता सब में भरते रहते ॥
(२)
श्रावक रूप चंद की भांति है तव सुन्दर जीवन । संघ संघपति के प्रति श्रद्धामय तल्लीन । श्रद्धामय तल्लीन बने रहते हैं हरदम । श्रमजीवी संतोष कौन है तुम सम ॥ गुरु की कृपा अपार तुमने जीवन में पायी। बढ़ो द्रौपदी चीर गुणों की लडियाँ विकसायी॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org