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रंग अनूठो ल्यावे
मुनि श्री विजय 'राज' ( कुण्डलियाँ)
काव्याञ्जलि
सुराणा परिवार में मल्ल केसरी नाम | जनम्यां राणावास में, सुशिक्षित अभिराम ॥ सुशिक्षित अभिराम कुशल कर्तृत्व दिखायो । राणावास ने केन्द्र बणाकर, शिक्षा बिगुल बजायो || कहे 'विजय' नव पीढ़ी रो निर्माण सनूरो सपनो । वाह काकासा, सेवाभावी जीवन झोंक्यो अपणो ॥ १ ॥
समाज री अनमोल धरोहर काम उठायो भारी । छोटो सो अंकुर पनपायो बणग्यो बड़लो भारी ॥ arrot बड़लो भारी, फल-फूलांरी अजब बहारी । फलगी आज्ञा काकासा री, लोग सरावे भारी || कहें 'विजय' गुरु तुलसी माथे हाथ जिणारे राखे । वह कर्मठ काकासा, 'पोबारा पचीस' फल चाखे ||३||
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घर का पूत कुंवारा फिरे, पाड़ोस्यां रा फेरा । इ उक्ति झेल चुनौति, पहली खुद ने हेर्या ॥ पहली खुद ने हेऱ्या, जीवन अपणो खूब सजायो । त्याग तपस्या संयम सादगी, स्यूं मोल बढ़ायो ॥ कहें 'विजय' पहली खुद सुधरे वो नर छाप लगावे । वो ही शिक्षा से अधिकारी, श्रद्धा पात्र कहावे ||२||
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उदीयमान प्रतिभावां ने बढ़णे रो मोको आयो । मदनमोहन मालवीय बण देश भ्रमण व्रत राख्यो । देश भ्रमण व्रत राख्यो, त्यागी हे चरणां लक्ष्मी झुक जावे । पाई रो लोभी रुपयो देकर भी मोद मनावे ॥ 'विजय' कहे के जादू फेरे पत्थर दिल पिघलावे । काकासा री करामात, वाणी व्यवहार रिझावे ||४|| मर जावूं मांगूं नहीं, अपने कुल के काज । परमारथ रे कारणे, मुझे न आवे लाज ॥ मुझे न आवे लाज, निस्वारथ सेवा मन भावे । सत्यं शिवं सुन्दरं रो बालक ने पाठ पढ़ावे ॥ 'विजय' कहे अनुशासन करड़ो, सब संकोच दिखावे । काकासारी वच्छलता भी रंग अनूठो ल्यावे ॥ ५ ॥
ध्यानी, मौनी, कर्मशील बण, अपणो फर्ज निभावे । धर्मयोग और कर्मयोग से सामंजस दिखलावे ॥ सामंजस दिखलावे गण-गणपति री गरिमा गावे । शिक्षा संस्कारी दिक्षा रो, जबरो पाठ पढ़ावे ॥ 'विजय' कहे सहयोग सनूरो सुन्दरदेवी छाजे । वाह, समाजसेवी कर्मठ तुलसी तेरापंथ गाजे ॥६॥
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