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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
(१) वीरान सी इस भूमि को, किया किसने आबाद, राणावास इतना पहले, किसको था याद ?
किसके श्रम से वह विद्याभूमि, बन गया है आज, सोच-समझकर उत्तर का, लगाना आप अन्दाज ।
युगों-युगों
छाजेड़जी की प्ररणा का, बीड़ा किसने उठाया, तन-मन-धन सारा दे, काम किसने कराया ?
धनिकों से चन्दे में, कौन धन वहाँ लाया, उत्तर सोच-समझकर देना, सम्प्रति या बाद ।
(३) भिक्षक सा वेश पहने, फिरा कौन घर-घर, कष्टों से नहीं घबराया, है कौन वह निडर ?
जीवन-दानी वह कहलाता, किसको नहीं खबर सही व सच्ची बताना, हैं आप सभी आजाद ।
तक कई
करेंगे
धारे-धीरे शिक्षण क्षेत्र, किसने इतना बढ़ा दिया, महाविद्यालय स्तर तक, किसने उसको चढ़ा दिया ?
शान्ति निकेतन सा स्वरूप, किस 'टैगोर' ने ला दिया, गुरु तुलसी महती कृपा का, किस पर ऐसा हाथ ।
याद - श्री मांगीलाल सुराणा
श्री 'केसरी सुराणा' उसका तो नाम है, हाथ जोड़कर हमारा उनको प्रणाम है।
बड़ी-बड़ी संस्थाओं का, उनके पास काम है, युगों-युगों तक 'काका' को, कई करेंगे याद ॥
कर्मठ काको केसरी
0 साध्वी श्री भीखाँजी (लाडनू) कट्टर मन्दिरमार्गी, काको हो विख्यात । कट्टर तेरापंथ रो श्रावक अब साक्षात् ॥१॥ कर्मठ काको केसरी वण्यो केसरी सिंह। संस्था संचालन करे वण काको निर्वीह ॥२॥ कठिन साधना कर रह्यो कठिन त्याग-व्रत-नेम । त्याग-तपस्या स्यूं मिल्यो जन जन हार्दिक प्रेम ॥३॥ शिक्षा शान्त सुधा सरस पिवे पिलावे मिष्ट । साध्वी "भीखाँ" तप्त है, लख कर जीवन शिष्ट ॥४॥
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