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________________ ८८ कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन प्रन्थ : प्रथम खण्ड ........................................................................... कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता। ऐसा ही एक सुविधाओं की इच्छा, सेवा और मात्र सेवा, सेवाभाव से, व्यक्तित्व है-जिन्हें जनमानस प्यार से 'काका साहब' नि:स्वार्थवृत्ति से, सम्पूर्ण समर्पण की भावना से । कहता है और जिनका पूरा नाम है-श्री केसरीमलजी आप गाली दीजिये कोई चिन्ता नहीं, ताने कसिये, सुराणा। उलाहना दीजिये उन्हें इन बातों की कोई चिन्ता नहीं, वे महात्मा गांधी की सेवाओं को, उनके प्यार को देखकर तो अपने धुन के धनी हैं : काम हाथ में ले लिया तो उसे जन-मानस ने उन्हें 'बापू' कहा और सुराणाजी की सेवाओं पूरा करना है ही, कहने वाले तो बुरा-भला कहते ही को देखते हुए जनता ने, दिद्यार्थियों ने प्यार से उन्हें 'काका रहेंगे। ऐसा साहस बहुत कम लोगों में देखने को मिलता साहेब' कहा । दोनों में बड़ी समानता है। है। फिर साहस के साथ उनकी सफलता का रहस्य है अपने वही महात्मा गाँधी-सा व्यक्तित्व, वैसी ही चश्मे से काम के प्रति सम्पूर्ण समर्पण के साथ निष्ठा व विश्वास । झांकती हुई प्यार, स्नेहपूर्ण वात्सल्यमयी आँखें, वही रंग, अपनी सेवाओं के कारण वे अभिनन्दनीय हैं, अनुकरवैसी ही वेश-भूषा, त्याग व संयममय जीवन, सरलता, णीय हैं। वर्षों तक विद्यार्थी के रूप में व उसके बाद मुझे सादगी। उनकी निकटता का सौभाग्य मिला है। मैं तो इतना ही ___स्वार्थवृत्ति से तो काम करने वाले मिल सकते हैं व्यक्त कर सकता हूँ कि वे सच्चे अर्थों में निःस्वार्थ कर्मयोगी हजारों, किन्तु निःस्वार्थ वृत्ति से एक भी कठिनाई से। हैं, कर्म ही उनकी आत्मा है, कर्म ही उनकी प्रसन्नता, कर्म काका साहब को न नाम की चिन्ता, न प्रतिष्ठा की भूख, ही उनका जीवन और कर्म ही उनका धर्म । उनका जीवन न मीठे चापलूसीपूर्ण शब्द की चाह, न अर्थ व अन्य सुख- भी पूर्ण सादगी से भरा है। मानव सेवा के मन्त्रदाता 0 श्री अशोककुमार भण्डारी (पेटलावद) अथर्ववेद (२/११/२) में कहा गया है कि सुख-दुःख, हानि-लाभ, सफलता-असफलता आदि का सामना दुनिया के लोगो याद रखो, पुरुषार्थवान धीरज वाले करना पड़ा, लेकिन कर्मयोगी अपने कदमों को हमेशा आगे व्यक्ति अपने सरल और निष्कपट स्वभाव के कारण अग्र- बढ़ाते रहे क्योंकि लक्ष्य जितना बड़ा होगा, विपदाएँ भी गामी होकर अपने संकट मिटा डालते हैं और हर क्षेत्र में, उसी अनुपात में आगे आयेंगी। जीवन में न जाने कितने हर कार्य में पूर्ण और निश्चित सफलता प्राप्त करते हैं। अवसर आते हैं जब मनुष्य को कड़वे घुट पीने पड़ते हैं। ऐसे ही महामानव कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा हैं। आपके जीवन से हम नव-युवकों को तो काफी कुछ मुझे भी इस संस्था में रहकर उन्हें बहुत नजदीक से देखने सीखना है। यदि हम नवयुवक जीवन में आई विपरीत का सौभाग्य प्राप्त हुआ है । आपकी नजर में समस्त मानव परिस्थितियों से हार बैठे या अपनी भावनाओं के प्रतिकूल जाति एक है। सभी एक पिता की सन्तान स्वयं सभी की घटनाओं से निराश हो बैठे तो फिर हमारे उद्धार का एक माता वसुन्धरा का सिद्धान्त बहुत ही भला लगा जो आपने ही रास्ता है-एक ही मार्ग है-आओ और जीवन-पथ अपनाया है। सभी परिवारी, स्वजन व कुटुम्बी हैं यह की कठोरता को स्वीकार कर आगे बढ़ो तभी हम सब भावना प्रबल रूप से देखने को मेरे अध्ययन काल में मिली उस मंजिल तक पहुंच सकते हैं, जिस पर हमें पहुंचना है। है। आपके जीवन का मुल मन्त्र है मानव-सेवा। हम युवकों को जीवन ऐसा बनाना है कि मंजिल हमारा संघर्षमय जीवन-पथ पर आगे बढ़ते समय आपको इन्तजार करे न कि हम मंजिल का। अपनी मंजिल तक कई बार अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पहुंचने के लिए प्रतीक के रूप में हैं कर्मयोगी श्री केसरीपड़ा है। रात और दिन, धूप-छांह, सर्दी-गर्मी की तरह मलजी साहब सुराणा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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