________________
श्रद्धा-सुमन
७३
.
व्यक्ति नहीं, एक संस्था
0 श्री अरविन्दकुमार नाहर, मद्रास
श्री सुराणाजी अपने आप में व्यक्ति ही नहीं, संस्था वजह से वे अपने अर्थ-संग्रह के लक्ष्य में आशातीतत हैं । जिस लगन, निष्ठा एवं नीति से सुराणाजी विद्याभूमि सफल हए एवं उनका यह अभियान आज भी जारी है। राणावास के शिक्षा केन्द्रों की देखभाल एवं सेवा कर रहे अपनी ही उनकी सूझ-बुझ है और अलग ही उनका अपना हैं, वह वास्तव में ही अद्वितीय है। मुझे तो ऐसा लगता ढंग है। शिक्षा केन्द्रों के सभी छात्र-छात्राओं को अपनी है-सम्भवतः उनका जन्म ही राणावास के शिक्षण केन्द्रों सन्तान समझ, वैसा ही प्यार देना उनकी सहज वृत्ति है । की स्थापना, विकास एवं संवर्द्धन के लिए हुआ है। त्यागी पति को भोगी पत्नी अथवा भोगी पति को चन्दा वसूल करना भी अपने आप में एक विशेष कला त्यागी पत्नी मिले तो मामला कुछ कठिनाई से जम पाता है। इस कला में सुराणाजी से अधिक निष्णात व्यक्ति है। यदि सहिष्णुता की कमी रहे तो मामला बिगड़ भी मुझे आज तक देखने को नहीं मिला । याद आ रही है- जाता है। श्री सुराणाजी इस सन्दर्भ में भी बहुत ही कुछ वर्ष पूर्व गंगाशहर में आचार्य प्रवर विराज रहे भाग्यशाली हैं जिन्हें उनकी त्याग-वृत्ति के अनुरूप ही थे। मेरा उनसे लगभग तीन वर्ष बाद साक्षात्कार हुआ। एक ऐसी धर्म-पत्नी मिली जो स्वयं त्याग, सादगी एवं उन्हें देखते ही मैं उनके करीब पहुंचा। यह पूछने के सेवा-भावना की साकार मूर्ति हैं। यह लिखना अतिपहले ही कि मेरे क्या हाल-चाल हैं, मेरी प्रेक्टिस कैसी शयोक्ति नहीं होगा कि उनके सहयोग के अभाव में है ? उन्होंने चन्दे से ही मेरे से बातचीत प्रारम्भ की और सुराणाजी साधना की वर्तमान मंजिल पर बहुत ही स्वीकृति प्रदान करने के बाद में ही मुझे उनका साथ कठिनाई से पहुंच पाते । धन्य है इस युगल को जो समाजछोड़ने की अनुमति मिली। सोते-उठते, जागते-बैठते सेवा का रस-पान करते हए साधनामय जीवन जी रहे हैं। उनकी यह धुन कम ही विश्राम करती है और इसी
श्रमण परम्परा के सूर्य - आचार्य राजकुमार जैन, नई दिल्ली
श्री सुराणाजी उदार दृष्टिकोण वाले, सरलस्वभावी, आपके साधु-जीवन की पूर्ण झांकी परिलक्षित होती है। उदारचेता एक ऐसे कर्मयोगी सन्त हैं जो निलिप्त, आप अपने जीवन में अहिंसा का आचरण इतनी सूक्ष्मता निःस्वार्थ, निर्लोभ और अपरिग्रहभाव से समाज के हित- एवं सावधानी से करते हैं कि उसे देखकर लोगों को साधन में तत्पर हैं। आप समताभाव की एक जीती- आश्चर्य होता है। आप व्रत-नियम आदि का पालन जागती मूर्ति और समन्वयवादी महान् सन्त पुरुष हैं । आप भी कठोरतापूर्वक करते हैं। यही कारण है कि आपके श्रमण परम्परा के एक ऐसे सूर्य हैं, जिसने समाज को अनुकरणीय आदर्श-जीवन से लोग प्रेरणा लेते हैं। आपका आलोक दिया और प्रगति-पथ पर अग्रसर होने की जीवन तप्त कंचन की भाँति पवित्र और निर्मल है। प्रेरणा दी। समाज में शिक्षा-प्रचार के माध्यम से अज्ञान समाज के लिए वह प्रेरणाप्रद होने से बहुमूल्य है। का नाश करने का आपने जो बीड़ा उठाया उसे पूरी निष्ठा ऐसी दिव्य विभूति हमारे लिए सदा सर्वदा वन्दएवं तत्परता के साथ पूर्ण किया। आपश्री का जीवन नीय है। इतना संयत, सदाचारपूर्ण एवं आडम्बर-विहीन है कि उसमें
.
-
0
.
00
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org