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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
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रेल की सुविधाओं को छोड़कर कुछ नहीं था। बिजली भी मुश्किल से वहाँ २० वर्ष के अनवरत प्रयत्न के बाद अब पहुँच सकी है । ऐसी स्थिति में सुमति शिक्षा सदन का प्राथमिक एवं उच्च प्राथमिक विद्यालय, आर्टस एवं कामर्स महाविद्यालय, विशालतम छात्रावास, पुस्तकालय वाचनालय, गौशाला, कृषि-वाटिका, बाल- मन्दिर एवं कन्या माध्यमिक विद्यालय उनके जीवन-संघर्ष की अद्विती देन हैं। इसके लिए उनको न जाने कितनी तपस्या करनी पड़ी है और कितनी आलोच्य स्थिति से अपनी पटरी को पार करनी पड़ी है। निश्चित रूप से संस्था के पीछे सर्वस्व त्याग कर सका साधना ही सुराणाजी की सफलता का मूल कारण है, जिससे यह संस्था समाज की
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काका साहब ( सुराणाजी का लोकप्रिय नाम) ने अपने जीवन का अधिकांश भाग राणावास में उन नन्हें बच्चों के जीवन-निर्माण में लगाया है जो भावी समाज के निर्माता हैं । राणावास जैसे छोटे-से ग्राम ( वह भी ग्राम से दूर रेलवे स्टेशन पर ) विद्या प्रचार हेतु एक आदर्श विद्यालय व छात्रावास तेरापंथ समाज मानव हितकारी संघ की संरक्षता में कायम किया जिसमें सहस्रों छात्र सुशिक्षा प्राप्त कर अपने जीवनोपयोगी काम में लगे हैं और देश, समाज व परिवार की सेवा में अपना योगदान दे रहे हैं । सुराणाजी ने केवल छात्रों की शिक्षा से ही सन्तोष नहीं किया अपितु अखिल भारतीय महिला शिक्षण संघ की स्थापना कर छात्राओं के लिए कन्या विद्यालय व छात्रावास का निर्माण कराया। इस विद्यालय व छात्रावास की सेवा में केवल सुराणाजी ही नहीं अपितु उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सुन्दरदेवी सुराणा दिन-रात लगी रहती हैं। छात्राओं की शिक्षा समस्त जैन समाज के दृष्टिकोण से दी जाती है और संस्था समस्त जैन समाज की संर
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एकनिष्ठ श्रद्धा का प्रतीक बन गई हैं ।
सुराणाजी द्वारा प्रज्वलित शिक्षा की ज्योति से राणावास में और संस्थाओं का अभ्युदय भी हुआ है, उसमें मरुधर विद्यापीठ, सर्वोदय छात्रावास एवं कन्या- शिक्षणसंस्थान मुख्य हैं। इससे राणावास का नाम आज शिक्षाजगत् में उभरकर राजस्थान की एक छोटी-सी शिक्षा-नगरी के रूप में विश्वस्त हो चला है निःसन्देह यह काका साहब (श्री केसरीमलजी सुराणा ) की अनवरत शिक्षा सेवा एवं तदर्थ तपस्या का उच्चतम कीर्तिस्तम्भ है। श्री केसरीमल सुराणा की यह शैक्षणिक देन तेरापंथ जगत् के लिए एक ऐसी उपलब्धि है जो तेरापंथ के सामाजिक इतिहास में सदैव जाज्वल्यमान एवं प्रकाशमान रहेगी ।
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अदभुत व्यवस्था-शक्ति के प्रतीक श्री रिखबराज कर्णावट, जोधपुर
क्षता में चलती है । सुराणाजी की ही सूझ-बूझ है कि जैन समाज के सभी सम्प्रदायों के आचार, क्रिया व मान्यताओं का सामंजस्य वहाँ प्रकट हुआ है । जैन समाज के सभी सम्प्रदायों का कभी विलीनीकरण होकर वे एक सूत्र में समान प्रकट होंगे तो इस संस्था को प्रथम कड़ी कहलाने का सौभाग्य प्राप्त होगा और सुराणाजी व उनके इस काम में सहयोगी गौरवान्त्रित होंगे ।
सुराणाजी का सारा जीवन शिक्षा प्रसार हेतु समर्पित रहा है। उनमें अद्भुत व्यवस्था शक्ति है । व्यवस्थापक के नाते उनको अनेक बार कठोर रुख अपनाना पड़ता है. फिर भी उनकी हार्दिक सरलता व अन्तरंग बेलाग प्रेम के कारण कोई विरला व्यक्ति ही होगा जो लम्बे समय तक उनसे नाराज रहा हो। सुराणाजी का व्यक्तिगत जीवन अत्यन्त त्याग एवं तपोमय है । संयम साधना में वे सतत लगे हुए हैं। प्रत्यक्ष में देखने पर वेशभूषा व आचरण से वे साधु, सन्त अथवा यति की तरह लगते हैं । वास्तव में वे गृहस्थ रूप में यति जीवन ही जी रहे हैं। ये धन्य हैं।
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