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________________ जब से इस संस्थान का शुभारम्भ हुआ है। वैसे इस संस्थान के मूल में श्री सुराणाजी तो प्रधानतः हैं ही। स्व० श्री बस्तीमलजी छाजेड, श्री जसवन्ती सेडिया, श्री जबरमलजी भण्डारी, स्व० श्री डूंगरमलजी सांखला, श्री मिश्रीमलजी सुराना आदि-आदि समाज के वरिष्ठजन इसके प्रारम्भ से सम्पोषक रहे हैं । श्रद्धय समाजभूषण स्व० श्री छोगमलजी चोपडा का मार्गदर्शन इसमें मुख्यतः प्रेरक रहा। इन सब दिग्गज समाजसेवियों के मध्य, यदि मेरा अपना कहीं सांलग्न्य रहा है तो उसे मैं, श्री राम के लंका-प्रयाण के समय समुद्र पर बाँधे जाने वाले पुल में प्रदत्त गिलहरी - सहयोग से अधिक नहीं मानता। फिर भी मैं अपनी इस यत्किंचित संलग्नता को अपने लिए कम महत्त्वपूर्ण नहीं मानता एक युवक कार्यकर्ता के रूप में जो मेरे से अपेक्षित था, उसका उपयोग, बड़े ही वत्सलता भाव से सुराणाजी ने किया । यही वजह है कि मुझमें आज भी उनके प्रति अत्युच्च श्रद्धा का भाव विद्यमान है और संस्थान से भी उसी अनुपात में आज भी सांलग्न्य है । श्रद्धय सुराणाजी का जितना यह शैक्षिक पक्ष प्रशस्त है, उससे भी अधिक प्रशस्त इनका अध्यात्म पक्ष भी है । अनेक विधि त्याग प्रवाश्यानों से अपने को संवृत रखते हुए, दैनन्दिन चर्या में लौकिक प्रवृत्तियों से अपने को जितना निवृत एवं परिसीमित कर रक्खा है, उससे ऐसा कहा जा सकता है कि जो गृहस्थ के रूप में वस्तुतः एक 00 सुराणा परिवार के ही एक त्यागी पुरुष केसरीमलजी सुराणा को जब मैंने निकटता से जाना और देखा तो मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। सुनने मात्र से तो मुझे पूरा सन्तोष नहीं हुआ, लेकिन जब प्रत्यक्ष एवं निकटता से मुझे उनके दर्शन हुए तो मैं फूला नहीं समाया । अक्सर सुनने मात्र से मैंने बहुत त्यागियों के सेवाधियों के तपस्वियों के नाम सुने हैं। इनका भी नाम सुना था। सुनकर सहज उपेक्षा कर दी थी कि क्या कोरे इतने आदर्शों की बड़ी-बड़ी बातें आचरण में लाई जा सकती हैं ? वस्तुतः इस ओर ध्यान नहीं खींचा गया। साध्वीची राजीमतीजी का चातुर्मास Jain Education International श्रमण-का-सा जीवन जी रहे हैं । अभी कुछ वर्षों पूर्व इसी अनुक्रम में धावकों के लिए निर्धारित पडिमा विशेष की भी आपने आराधना की थी। इस प्रकार की संयतावस्था को अक्षुण्ण रखते हुए, शिक्षा संस्थान को उत्तरोत्तर विकासोन्मुख बनाने में अपने समय व शक्ति का जिस भांति नियोजन कर रहे हैं. यह हर समाज सेवी के लिए अनुकरणीय तो है ही, श्लाघनीय भी है । कन्या शिक्षा के प्रति भी आपके मन में उतनी ही तड़फ है। बावजूद विद्या- भूमि के बृहद् दायित्वों के उक्त महिला संस्थान जो कि समग्र जैन सम्प्रदायों द्वारा संचालित है, को भी प्रमुख कार्यदर्शी के रूप में उसी उत्कृष्ट भावना से अपनी सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं। एक श्रद्धालु श्रावक के रूप में तेरापंथ धर्मशासन एवं शास्ता के प्रति सदा से जो प्रगाढ़ आस्थावान रहे हैं । एक सुसंस्कारी एवं धर्मवत्सल उपासक के रूप में महामहिम आचार्य तुलसी की दृष्टि में आपका एक वरद स्थान सदा से रहा है । अविजेता लोहपुरुष श्री मन्नालाल सुराणा, जयपुर श्रद्धा-सुमन ६६ सुराणाजी के उत्सर्गप्रधान जीवन को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वे न केवल तेरापंथ धर्मसंघ या जैन समाज के ही विशिष्ट सेवी के रूप में हमें उपलब्ध हैं, बल्कि वे एक ऐसे सेवानिष्ठ भारतीय हैं जिनका जीवन एक संस्कार सर्जक के रूप में सदा-सदा अभिनन्दनीय रहेगा। जब राणावास में हुआ, उसके तीन वर्षों पहले उनका विचरण हमारे जयपुर में रहा। इधर केसरीमलजी सुराणा भी अनेकों बार मुझे साग्रह बुला रहे थे। दोनों अवसर थे। मैं अपने परिवार एवं कई साथियों के साथ राणावास गया। मुझे खुद ही आश्चर्य होने लगा - एक त्यागी के यहाँ अतिथि होने का असंभावित अवसर मुझे मिला। खैर ! बाहर की आवभगत तो प्रत्येक व्यक्ति कर देता है किन्तु उनका आन्तरिक संकल्प देखकर तो मैं गद्गद् हो गया। अकेला एकमात्र लोहपुरुष किस तरह अपनी अध्यात्म वर्मा को सुरक्षित रखता हुआ बाहरी For Private & Personal Use Only - www.jainelibrary.org.
SR No.012044
Book TitleKesarimalji Surana Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia, Dev Kothari
PublisherKesarimalji Surana Abhinandan Granth Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages1294
LanguageHindi, English
ClassificationSmruti_Granth & Articles
File Size34 MB
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