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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
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भी है कि सामाजिक क्षेत्र में उतरने वाले व्यक्ति को जिस स्थिति में हूँ उसका सारा श्रेय एक मात्र आपको ही कठिनाइयों और परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है । आपके है यदि ऐसा कहूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। आपके इस समक्ष भी कोई कम बाधाएँ नहीं आई, किन्तु इन विकट अमूल्य सहयोग को मैं जिन्दगीभर नहीं भुला सकता। क्षणों में आपकी सफलता का राज था-अटूट आत्म- यद्यपि आपकी इच्छा थी कि राणावास विद्यालय की विश्वास और सतत गतिशीलता, जो आपके जीवन के व्यवस्था का भार सम्भालू । आपकी भावना और अनुग्रह अभिन्न सत्र हैं, जिन्होंने आपको सफलता की मंजिल तक
का आदर करते हुए इसके लिए मैंने अपने आपको तैयार
का आदर करते टा दमके पहुँचा दिया है।
भी कर लिया था पर समाज ने मुझे पारमार्थिक शिक्षण ___ मैं अपना सौभाग्य मानता हूँ कि मुझे बचपन से ही संस्था का भार सौंप दिया, इसलिए मैं अपनी सेवाएँ आपका सान्निध्य मिलता रहा है। सामाजिक और व्यावहा- राणावास केन्द्र को देने से वंचित रहा। फिर भी मुझे रिक क्षेत्रों में कार्य करने के संस्कार की उपलब्धि के पीछे विश्वास है कि मैं जहाँ भी रहूँगा, जो भी करूंगा, उन समय-समय पर आपके द्वारा मिलने वाला प्रशिक्षण ही सबमें आपके द्वारा किये गये अनुभवों की रेखाएं मुखरित प्रेरक बनकर मेरा मार्ग प्रशस्त कर रहा है। आज मैं होती रहेंगी।
संस्कार-सर्जक D श्री मोतीलाल एच० रांका, कोयम्बटूर
लगभग दो दशक या इससे कुछ अधिक पूर्व, जो सम्पूर्ति के लिए कृतसंकल्प हो यह व्यक्ति न केवल आगे स्थान एक जंगल से अधिक कुछ नहीं था और यदि कुछ ही आया, बल्कि एक गृहस्थयोगी की तरह, जो इस था तो एक छोटा-सा देहात । वही स्थान एक दिन लक्ष्य के प्रति समर्पित हो गया। उल्लेखनीय यह भी है बहदाकार शिक्षोपवन बन जायेगा, जिस किसी ने भी कि इन्हें इस लक्ष्य की सम्पूर्ति में अपनी धर्मशीला सहउस स्थान को उस समय देखा है, कभी यह कल्पना भी धर्मिणी का भी महद् योग मिला। नहीं की होगी। जो कल्पना में भी नहीं था, वह आज वहाँ यह सर्वसामान्य तथ्य है कि ऐसा कोई भी प्रयोग या साकार है। उस दिन जितना उस क्षेत्र का विकास संकल्प तब तक सफल नहीं हो पाता, जब तक उस यज्ञ अज्ञात था, उतना ही अज्ञात यह भी था कि कौन ऐसा में अपना सर्वस्व आहूत न कर दे, श्रद्धेय श्री केसरीमलजी शिल्पी सर्व सामान्य को उस क्षेत्र में सुलभ हो सकेगा कि ने वही किया। अपनी न्यूनतम आवश्यकताओं के सम्पूर्त्यर्थ, जो एक दिन इस छोटे से क्षेत्र को “विद्या-भूमि" के रूप जितना आवश्यक था, उसके अतिरिक्त अपनी सारी में विकसित कर, एक आदर्श संस्कार-क्षेत्र बना देगा। सम्पदा का, संस्थान के हित में त्याग, कितना
उक्त कल्पना को मूर्तरूप प्रदान करने वाले हैं, अप्रतिम उदाहरण इन्होंने समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया हमारे अभिनन्दनीय वरिष्ठ बन्धु केसरीमलजी सुराणा, है। परिमाणतः देश के हर क्षेत्र में जहाँ भी ये गये, जिनके कि अभिनन्दन का सुयोग पाकर, हम अपने को हर बन्धु ने स्वेच्छा से अपना योगदान इस शिक्षण धन्य एवं गौरवान्वित अनुभव कर रहे हैं।
संस्थान के लिए प्रदान करने की पहल की। राणावास के ही जो जन्मजात हैं। अपने यौवन में, देश के हर क्षेत्र से प्राप्त योगदान से, यह शिक्षा इस क्षेत्र से सुदूर आन्ध्र प्रदेश के जो एक कुशल व्यव- एवं संस्कार केन्द्र उत्तरोत्तर जो विस्तार पा सका, आज सायी रहे । कितना बृहद् परिवर्तन एवं परिवर्द्धन जीवन यह संस्थान देश के बहकाय संस्थानों में एक महाका; यह मानना चाहिए कि वह व्यक्ति अपने व्यापार- विद्यालयस्तरीय शिक्षालय एवं सैकड़ों बालकों की बहल जीवन से, सहसा मुक्त होकर, अपने जीवन का आवास व्यवस्था से युक्त एक आदर्श संस्कार केन्द्र के यह सर्वोपरि लक्ष्य बना सका कि हमारी भावी पीढ़ी रूप में विकसित हो सका। सुशिक्षित एवं सुसंस्कारी बने । उस पुनीत लक्ष्य की श्रद्धय सुराणाजी से मेरा सम्पर्क उस समय से है,
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