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कर्मयोगी श्री केसरीमलजी सुराणा अभिनन्दन ग्रन्थ : प्रथम खण्ड
मुख से भाई साहब की चारित्रात्माओं के प्रति भक्ति एवं भाई साहब ने करीब एक करोड़ रुपया दान-दाताओं से श्रद्धा का वर्णन सुन कौन रोमांचित नहीं होता है । भाई प्राप्त किया है । दानदाता भी सहर्ष देते हैं क्योंकि उन्हें साहब साधु-साध्वियों के दास हैं।
विदित है कि उनका दिया हुआ पैसा फिजूल खर्च नहीं स्वयं के आत्मोत्थान के लक्ष्य के साथ-साथ आपका किया जायगा। लक्ष्य, बालकों के चरित्र-निर्माण का भी है। मानव हित- मैंने करीब १३ वर्ष लगातार भाई साहब के साथ संघ कारी संघ की शैक्षणिक प्रवृत्तियों के साथ दूसरी मानव के मन्त्री पद एवं अध्यक्ष पद पर रहते काम किया। उनकी हितकारी प्रवृत्तियों का भी भाई साहब के दिल में ख्याल बना जैसी आत्मीयता मैंने विरले ही पायी। वे बड़े सहृदय हैं। रहता है । वर्तमान में मानव हितकारी संघ द्वारा एक औष लोगों को मैंने कहते सुना है कि वे कठोर हैं, परन्तु मैंने धालय रामसिंहजी के गुढ़ा में आरम्भ किया गया है। उनमें पायी कठोरता जहाँ कठोरता की आवश्यकता थी
भाई साहब के पास महानुभावों से संघ के लिए पैसा और कोमलता जहाँ कोमलता की आवश्यकता है । संचालन निकलवाने की अजब-गजब की तरकीब है। वे कहते हैं करने वाले को केवल कोमलता से काम नहीं चल सकता, 'मैं समाज का भिखारी हूँ, मुझे संघ के लिये पैसा मांगने मौकों-मौकों पर उसे कठोर भी रहना पड़ता है। यह भी में लाज नहीं आती।' कोई महानुभाव चन्दा देने से इनकार सुनने को मुझे मिलता था कि केसरीमलजी अपनी बात को भी कर दे तो भी भाई साहब उसका पीछा नहीं छोड़ते हैं, नहीं छोड़ते, मगर मेरा अनुभव है कि जब मैंने उन्हें धैर्य से उसे राजी कर पर्याप्त मात्रा में चन्दा ले ही लेते हैं। कई सब पहलुओं पर समझाया, हानि-लाभ की ओर उनका बार गालियाँ भी सुनने को मिलीं परन्तु आप हताश नहीं ध्यान दिलाया, उन्होंने फौरन अपनी बात छोड़ दी। वे हुए । आप हताश होना जानते ही नहीं । गालियाँ देने वाले संस्था के पैसे को किसी सूरत में बरबाद नहीं होने देते । गालियां देते हैं---आप हंसते रहते हैं, हाथ फैलाया रखते हैं वे कभी भी स्वयं के लिए संस्था का पैसा खर्च नहीं करते। उस गाली देने वाले से कुछ न कुछ लेकर ही उठते हैं। जिसका प्रभाव अन्य कार्यकर्ताओं पर पड़ता है और सब आपने भारत के कोने-कोने में जहाँ तेरापंथी श्रावक हैं, नैतिकता से काम करते हैं और इसी कारण संस्था का दौरा किया है और सहयोग प्राप्त किया है। आज तक आर्थिक पहलू सुदृढ़ है ।
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एक युग-द्रष्टा, एक युग-गौरव
। प्रो० बी० एल० धाकड़, उदयपुर
श्रद्धेय श्री सुराणाजी ने दृढ़ संकल्प होकर सर्वस्व ने शिक्षा-जगत की सेवा में निरन्तर बल दिया। यही जनहित कार्य के लिये समर्पण किया। व्यावसायिक वर्ग में आपके जीवन की सफलता की सच्ची कहानी है। जन्म लेकर जो समर्पण-भावना आपने प्रस्तुत की, उसके शिक्षा-सेवा के स्वरूप को अपने मस्तिष्क में चिन्तनअनुरूप अपनी सम्पत्ति को जनहित के दृष्टिकोण से शिक्षा- मनन कर निष्कर्ष निकाला कि बालकों में चारित्रिक धराकार्य में भेंट किया । सिर्फ सम्पत्ति ही नहीं, अपना अमूल्य तल के निर्माण को सर्वप्रथम प्राथमिकता देनी चाहिये । जीवन अपने संकल्प की साधना में जुटा दिया। आपकी आपने राणावास की भूमि का तीन दशाब्दी पूर्व चयन दृष्टि में सर्वोच्च सेवा सच्ची शिक्षा में ही निहित है। जब किया, वहाँ पर माध्यमिक विद्यालय के साथ छात्रावास कोई व्यक्ति निर्धारित लक्ष्य के मार्ग पर कटिबद्ध होकर का निर्माण किया । वह छात्रावास आपके जीवन का केन्द्रआगे बढ़ता जाता है तो अन्ततोगत्वा उसका मार्ग आगे की बिन्दु बना और वह निरन्तर प्रगति करता गया । आज के ओर प्रशस्त होता जाता है। प्रारम्भिक बाधायें अपने आप नवयुवकों को धर्म-प्ररित अनुशासन में ढाला । सैकड़ों टलती जाती हैं और सफलता उनके चरण को स्पर्श करती विद्यार्थी इस वातावरण में पल कर निकले हैं और उनके है । आपकी तथा आपकी श्रीमतीजी की एक ही विचारधारा जीवन पर आपकी तथा संस्था की स्थायी छाप भी पड़ी
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