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किसी भी संस्था का इतिहास अवलोकन किया जाय तो पायेंगे कि उस इतिहास में एक पुरुष का कर्तत्व सन्निहित है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के साथ महामना मदनमोहन मालवीय, शान्तिनिकेतन के साथ महर्षि रवीन्द्रनाथ टैगोर, हन्डी के साथ हरिभाऊ उपा ध्याय का नाम ऐसा जुड़ा हुआ है कि उन महानुभावों का इतिहास उस संस्था का इतिहास और संस्था का इतिहास उनका जीवनवृत्त बन गया है। जो महापुरुष संस्था के प्रारम्भ से अपने खून-पसीने से उसका सिंचन करते हैं, वे ही संस्था के जन्मदाता हैं, वे ही संस्था के प्राण हैं-आधार हैं । जब तक संस्था का संचालन मुख्यतया एक व्यक्ति के हाथ में होता है, संस्था का विकास एवं प्रगति अच्छी होती है । यदि संचालन कार्य कई व्यक्तियों के हाथ में होता है तो राजनीति पनप जाती है और आपसी खींचातानी प्रारम्भ हो जाती है ।
भाई साहब केसरीमलजी साहब सुराणा श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी मानव हितकारी संघ ( पूर्व का नाम श्री जैन श्वेताम्बर तेरापंथी शिक्षण संघ) के जन्म से जुड़े हुए हैं। संघ में कई अध्यक्ष और कई मन्त्री बने परन्तु सतत सींचन खून-पसीने का संघ की जड़ों में भाईसाहब द्वारा ही हुआ । जो संस्था ३० वर्ष पूर्व पाँच छात्र - विद्यार्थी एवं एक अध्यापक से प्रारम्भ हुई थी, वह वटवृक्ष की तरह फैलाव प्राप्त कर चुकी है ।
विद्यार्थियों एवं छात्रों के चारित्रिक विकास की ओर भाई साहब का पर्याप्त ध्यान रहता है । दिन-रात उनका यही प्रयास रहता है कि छात्रों एवं विद्यार्थियों के जीवन में किसी प्रकार के अवगुण प्रवेश नहीं करें और स्कूली शिक्षा के साथ-साथ उनके जीवन में नैतिक एवं आध्यात्मिक पुट लगता रहे ताकि उनका भावी जीवन भारत के सुनागरिक रूप में बीते ।
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संस्था के प्राण
श्री जबरमल भण्डारी, जोधपुर
श्री केसरीमलजी एक गृहस्थ साधु हैं। उन्होंने अपना सर्वस्व देकर, एकनिष्ठ कार्यकर्ता के रूप में शिक्षा क्षेत्र में अवतरण किया । मारवाड़ कांठा प्रान्त को, जो शिक्षा में पिछड़ा क्षेत्र था, उन्होंने अपना कार्यक्षेत्र चुना। आपने तेरापंथ शिक्षण संघ के अलावा बालिकाओं के शिक्षण के लिये राणावास में अखिल भारतीय महिला शिक्षण संप भी स्थापित किया। इस तरह आपने यहाँ स्त्री-शिक्षा के अभाव को दूर किया । आप असाम्प्रदायिक विचारों के हैं, आपने जैनों के तीनों सम्प्रदायों से सहयोग प्राप्त कर स्त्रीशिक्षा का केन्द्र स्थापित कर दिया है । आज राणावास भाई साहब केसरीमलजी साहब के प्रयासों से ही 'विद्याभूमि' वन गया है।
भाई साहब डिगरियाँ प्राप्त विद्वान नहीं है, परन्तु वे अपने कृतित्व के द्वारा अनुभवों के आधार पर एक वरिष्ठ शिक्षा - शास्त्री के रूप में प्रतिष्ठित हैं। आप जब कभी किसी सभा, बैठक आदि में अपने विचार रखते हैं तो मालूम होता है कि कोई विशेषज्ञ बोल रहा है। आपके स्वयं के विकास का कारण आपके स्वयं का चारित्रिक बल है ।
आप एक त्यागी कर्मयोगी हैं । एक दिन में १७ सामायिक करते हैं, बारह घन्टे मोन करते हैं। दोनों समय प्रतिक्रमण करते हैं। खाने-पीने का पूरा संयम रखते हैं। उनकी दिनचर्या बड़ी नियमित है । वे तेरापंथ श्रावक समाज के विशिष्ट श्रावक हैं । आप श्रावक प्रतिमा भी धार चुके हैं। वे तेरापंथ शासन एवं शासनपति के प्रति समर्पित हैं, आस्थावान हैं । समय-समय पर वे पूज्य शासनपति का सान्निध्य प्राप्त करते रहते हैं और स्वयं के भावी जीवन के लिए बुराक प्राप्त करते रहते हैं और अपने विचार पूज्य गुरु चरणों में निवेदन भी करते रहते हैं । साधु-सतियों के सिवा राणावास चातुर्मास करते हैं उनके
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