________________
आशीर्वचन
साधना का त्रिवेणी संगम
0 साध्वी श्री चांदकंवर (मोमासर) श्री केसरीमलजी सुराणा एक निष्काम सेवी, कर्मठ बल पर ही सुराणाजी ने अपने संघर्षमय जीवन में सफलता साधक एवं निस्पृह समाज-सेवक है। इनका जीवन धर्म- पाई है। साधना के मार्ग पर बढ़ने के लिए -(१) आत्मसंघ एवं समाज के प्रति पूर्णरूपेण समर्पित है। ये सच्चे ज्ञान, (२) आत्मविश्वास और (३) आत्म संयम एवं कठोर साधक के रूप में समाज में ख्यात हैं। साधना इन तीनों गुणों को समझना जरूरी है। आत्मज्ञान से का रहस्य क्या है, यह जानना हो तो हमारे सामने 'माया' ग्रन्थि को समझे, आत्मविश्वास से उन पर सुराणाजी का जीवन एक खुली पुस्तक के रूप में उपस्थित विश्वास करे और आत्मसंयम से माया ग्रन्थि का छेदन है। सचमुच में इनका जीवन साधनारत है। आनन्द, कर साधक सिद्धि को पा सकता है। कामदेव, शकडाल आदि श्रावकों को जो देवकृत उपसर्ग हुए, ये तीनों गुण सुराणाजी के जीवन का अभिन्न अंग उन सबको सहन करते हुए उन्होंने साधना में सफलता पाई हैं । इस त्रिवेणी संगम से उनका जीवन निखार पाया है । थी, ठीक उसी प्रकार के कष्टों का सामना कर साधना के
00
निस्पृह कार्यकर्ता
9 साध्वी श्री नगीना व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। समाज में जन्मता है सुराणाजी की । कर्तव्य की चेतना, सेवा की दिव्यता, है, बढ़ता है, फलता व फूलता है। समाज से बहुत कुछ उनके व्यक्तित्व की प्रत्यक्ष अनुभूति है । सुराणाजी भरेप्राप्त करता है। उसकी कार्यक्षमता की अभिव्यक्ति का पूरे, समृद्ध परिवार में जन्म लेकर भी केवल परिवार आधार भी समाज ही है । समाज के विशाल कक्ष में बैठ- के सीमित घेरे में बँधे नहीं। भूमि के अणु-अणु को सरसब्ज कर व्यक्ति अपनी क्षमता का खुलकर उपयोग कर सकता बनाने वाली उन्मुक्त सरिता कब तक एक जगह रुक है। जो व्यक्ति अपने लिए औरों के हितों की उपेक्षा कर सकती है? देता है, वह दुर्बलता से ग्रस्त होता है। ऐसे व्यक्ति सादे भेष में लिपटा सादा जीवन, कर्तव्य की रेखाओं विरल होते हैं जो औरों के लिए अपने हितों की उपेक्षा से अंकित जीवन, परहित में निरत जीवन, परोपकार की कर दें । स्वत्व को ममत्व में रूपान्तरित कर उस ममत्व बलिवेदो पर समर्पित जीवन, किसके लिए अनुकरणीय की तूलिका से समाज को विकासशील रेखाओं व सुनहरे नहीं होता ? ऐसे साहसी, वीर, कर्मनिष्ठाशील, निस्पृह रंगों से रंगीन बना दें। ऐसे व्यक्तित्वों में एक कड़ी जुड़ती कार्यकर्ता पर समाज को गर्व होना स्वाभाविक है।
10
फलदार वृक्ष
साध्वी श्री कंचनकुमारी (राजनगर) ठाणं स्थान ४ सूत्र २८ में उपकार पद में कहा गया है प्रकार के होते हैं-१. पत्तों वाले, २. पुष्पों वाले, ३. तथा व्यक्ति की वृक्ष से तुलना की गई है जैसे 'तओ रुक्खा फलों वाले । इसी प्रकार पुरुष भी तीन प्रकार के होते पण्णत्ता, तं जहा-पत्तोबगे, पुष्फोवगे, फलोवगे । एवा तओ हैं-१. कुछ पुरुष पत्तों वाले वृक्षों के समान अल्प उपपुरिसजाता पण्णता, तं जहा पत्तो वा रुक्ख समाणे, पुप्फो कारी २. कुछ पुरुष पुष्पों वाले वृक्ष के समान 'विशिष्ट वा रुक्ख समाणे, फलो वा रुक्ख समाणे । अर्थात् वृक्ष तीन उपकारी' ३. कुछ पुरुष फलों वाले वक्ष के समान 'विशिष्ट
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org