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समस्त शिक्षा जगत के लिए अनुपम एवं गौरवपूर्ण है।" संस्था के प्रांगण में सारी व्यवस्था स्वावलम्बी है। वह निर्विरोध स्वत: संचालित होती रहती है। इस संदर्भ में श्री जब्बरमल जी भण्डारी (जोधपुर) का मंत्री व अध्यक्ष के रूप में एक चौथाई शताब्दी तक आपको सहयोग मिला है, जिनका संघ ने गतवर्ष अभिनन्दन किया है, वह विशेष उल्लेखनीय है।
संस्था वही है जिसका योगदान व्यापक व चिर स्थायी रहे। इस परिप्रेक्ष्य में इस संस्था का बेजोड़ स्थान है। जो छात्र यहाँ से शिक्षा ग्रहण करके गया है वह इसको जीवन पर्यन्त अपनी मातृ संस्था Almamater मानता है। उसको गौरव होता है कि वह राणावास के सुमति शिक्षा सदन माध्यमिक विद्यालय तथा आदर्श निकेतन छात्रावास का छात्र रहा है। छात्र का जीवन प्राचीन गुरुकुल आश्रम की परम्परा से ओतप्रोत रहता है। श्रद्धास्पद चरित्र आत्माओं के दर्शन यदि उपलब्ध हो तो, छात्र जीवन का प्रमुख अंग है। प्रातः ४-३० बजे से रात्रि के १० बजे तक नियमित दिनचर्या से हर एक छात्र को अनिवार्य गुजरना पड़ता है। अनावश्यक आधुनिकता को प्रोत्साहन नहीं दिया गया है। छात्र का जीवन अधिकांशतः प्राकृतिक वातावरण से युक्त है। ऐसा भी कहा जाता है कि जिस छात्र को सुधारना है उसे राणावास भेज देना चाहिये । प्रतिद्वन्द्वात्मक वातावरण की अपेक्षा स्वस्थ सौहार्दपूर्ण वातावरण को प्रोत्साहन मिला है और वह व्याप्त रहा है, जिससे मानवी संस्कारों को बल मिल सके ।
यहाँ शिक्षाध्ययन के लिये कांठा प्रदेश, मारवाड़, थलो प्रदेश, मेवाड़, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मद्रास, कलकत्ता, आसाम, गुजरात, हरियाणा और नेपाल तक के दूर-दूर के छात्र बराबर आते रहते हैं। अस्तु वे आज सर्वत्र हैं। व्यवसाय के मार्ग में तो आगे है ही किन्तु अब सेवा मार्ग की ओर भी यहाँ की प्रतिभायें विखरती जा रही हैं। नियमित जीवन से परीक्षा परिणाम भी सदा अच्छे रहे हैं।
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राणावास की भूमि अब एक विद्याभूमि में परिवर्तित हो गई है। सार्वजनिक रूप से छात्रों को विद्यालय एवं छात्रावास में प्रवेश मिलता रहा है। जैन-अजैन सबको समान रूप से देखा जाता है। यहाँ तक कि एक तिहाई तो राजपूत जाति के छात्र सम्भवतः लाभान्वित होते हैं। आपकी यह मूल धारणा है कि प्रत्येक समाज व संस्था का कर्तव्य है कि सबको समान रूप से देख कर समान सुविधायें उपलब्ध कराई जाना चाहिए। इस विशाल हष्टिकोण में आपके व्यक्तित्व की अमिट छाप है।
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विद्याभूमि राणावास में स्थानीय मरुधरकेसरी उच्च माध्यमिक विद्यालय ने स्वस्थ स्पर्द्धा तथा प्रगतिशील वातावरण उपस्थित किया हैं । अखिल भारतीय जन महिला शिक्षा संघ के माध्यमिक विद्यालय में सैकड़ों छात्रायें अध्ययन करती है। जैन समाज के सब ही अंगों का समन्वयात्मक साम्राज्य दृष्टिगोचर होता है। नारी शिक्षा ने समाजसुधार व संस्कार-निर्माण में अपूर्व योगदान दिया है। इस पावन धरा में शिक्षा और संस्कार-निर्माण का साम्य योग पल्लवित हुआ है, इसके पीछे श्री सुराणा जी की शक्ति ही काम कर रही है।
किसी भी महान् कार्य की गरिमा के पीछे सम्बद्ध जीवनदानी कार्यकर्ता का उज्ज्वल व्यक्तित्व समाविष्ट रहता है । हमारे ग्रन्थ नायक एक कर्मठ व्यक्ति ही नहीं वरन् पूर्ण साधक हैं। मानव हितकारी संघ तथा महिला शिक्षण संघ दोनों की प्रवृत्तियों के नियमित समय देने के उपरान्त शेष सारा समय साधना में बीतता है। निद्रा आपकी दो या तीन घन्टे की मुश्किल से होती है। कभी-कभी तो निद्रा से भी वंचित रह जाना पड़ता है जब बैठकों में भाग लेना पड़ता है अथवा बाहर यात्रा में होते हैं । फिर भी प्रातः आप तरोताजा है। मैंने स्वयं देखा है। आपके सोने का समय रात्रि के ८-३० से ११ बजे तक है । तदुपरान्त सारी रात साधना में गुजारते हैं। यह साधना आपकी शक्ति का सम्बल है। निश्चित समय में ही आपको बोलना होता है। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती सुन्दर बाई पति सेवा में सद। जागरूक रहती है और भारतीय संस्कृति का अनुपम आदर्श प्रस्तुत करती है। माँ कस्तूरबा की तरह श्रीमती सुन्दरबाई ने अपने निजत्व को भुलाकर पति में विस्मृत होकर पग-पग पर सदा साथ और सम्बल दिया है, जो स्तुत्य व अभिनन्दनीय है।
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